“एक विद्या है कि पण्डितों-अध्यापकों के पास मिलती है | दूसरी विद्या होती है, जो साधु-संतों के संग में मिलती है | स्कूल-कॉलेज की विद्या में संसार के प्रबन्ध का ख्याल ज्यादे होता है | और साधु-संतों के पास जाने से जो विद्या आती है, उसमें संसार का प्रबन्ध तो रहता ही है, लेकिन यह भी रहता है कि शरीर छोड़ने के बाद तुम्हारी क्या हालत होगी, यह भी सोचो | संसार में रहने के लिए बहुत अच्छा प्रबन्ध किया | कुछ दिन वा कुछ वर्ष रहे, चले गए | कहाँ चले गए, इसका कोई ठिकाना नहीं | शरीर छोड़ने पर तुम दु:ख में नहीं जाओ, इसका प्रबन्ध कर लिया तब तो ठीक है | लेकिन नहीं किया तो, अभी तुमको कुछ करना चाहिए | जाना ज़रूर है, लेकिन शरीर के बाद का जीवन बहुत लम्बा है, इसका प्रबन्ध करो | संसार का प्रबन्ध करना ही है और शरीर छूटने के बाद का भी प्रबन्ध सोचो, नहीं तो अपनी बहुत बड़ी हानि करते हो | बड़ी हानि से बचो और दूसरों को भी बचाओ |
ईश्वर के भजन से जीवन सुखमय होगा | अपने को भला बनाना ईश्वर-भजन से होगा | बहुत पढ़-लिख लिए; इससे अपनी पूरी भलाई हो, ऐसी बात नहीं | संसार में तुम अपने को सँभाल कर रखो कि तुम्हारी कोई निन्दा न करे | यदि तुम्हारा आचरण ठीक है और लोग तुम्हारी निन्दा करें, तो परवाह मत करो | और यदि तुमसे किसी तरह का काम हो गया है, तब जो तुमको कोई कुछ कहे, तो उसको अपना मित्र मानो | ईश्वर की ओर चलने के लिए पवित्र भाव से रहना होगा | संसार की कमाई में पाप-पुण्य का विचार नहीं होता, लेकिन ईश्वर-भजन में पाप-पुण्य का विचार करके चलना होगा | कोई चाहे कि ईश्वर भजन भी करेंगे और पाप भी करेंगे, तो उससे ईश्वर का भजन नहीं होगा | ईश्वर का भजन आजकल-आजकल कहकर मत टालो |” - महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
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