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गुरुवार, 21 नवंबर 2019

वर्षों पूर्व की बात मुझे याद आती है! -महर्षि संतसेवी परमहंस | Maharshi=Santsevi=Paramhans | Santmat-Satsang | Kuppaghat-Bhagalpur

🙏🌹श्री सद्गुरवे नमः🌹🙏
🍁वर्षों पूर्व की बात मुझे याद आती है; 
परम पूज्य गुरुदेवजी (पूज्यपाद महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज) के निकट एक साधु बाबा पधरे थे। प्रणिपात के पश्चात् आसन ग्रहण करके उन्होंने कहा: ‘महाराज! बिना चमत्कार के नमस्कार नहीं।’ पूज्य गुरुदेव ने दया करके पूछा: ‘महाराज! आप चमत्कार किसे कहते हैं?’ साधु बाबा मौन रहे। आराध्यदेव ने कहने की कृपा की ‘महाराज! मैं तो सदाचार को चमत्कार मानता हूँ।’
सद्+आचार = सदाचार अर्थात् उत्तम आचरण। उत्तम आचरण मानव-जीवन को समुज्वल बनाता है। सत्याचारी अलौकिक शक्तिसंपन्न होते हैं। उनके सम्मुख सुरगण भी नमन करते हैं। सदाचरण-संपन्न जन मरकर भी अमर रहते हैं, किन्तु आचरणहीन जन जीवित ही मृत होते हैं। सत्याचार; सत्य+आचार ही सदाचार है और यह एक ऐसा चमत्कार है, जिससे सर्वेश्वर का साक्षात्कार होता है। यथार्थतः जहाँ सदाचार है, वहीं चमत्कार है। जहाँ सदाचार नहीं, वहाँ मात्र बाहरी दिखावे के चमत्कार का कोई महत्त्व नहीं। -महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज 
🙏🌸🌿।। जय गुरु ।।🌿🌸🙏
सौजन्य: *महर्षि मेँहीँ सेवा ट्रस्ट*
एस.के. मेहता, गुरुग्राम 
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रविवार, 10 जून 2018

उलटा नाम जपा जग जाना । बाल्मीकि भये ब्रह्म समाना॥ यह उल्टा नाम कौन सा है ? | महर्षि संतसेवी | Ulta naam kaun sa hai janiye | Maharshi Santsevi | Santmat-Satsang

उलटा नाम जपा जग जाना । बाल्मीकि भये ब्रह्म समाना॥

यह उल्टा नाम कौन सा है ? कितने लोग कहते हैं कि वाल्मीकि जी (रत्नाकर) इतने बड़े पापी थे कि वे 'राम-राम' नहीं कह सकते थे । इस हेतु ऋषि द्वारा राम-मन्त्र प्राप्त कर भी वे 'मरा-मरा' जपते थे । इस बात को कोई भोले भक्त भले हीं मान लें, किन्तु आज के बुद्धिजीवी वा तर्कशील सज्जन इसमें विश्वास नहीं कर सकते । वे कहेंगे, कोई कितना भी बड़े-से-बड़ा पापी क्यों न हो, वह दो अक्षर 'राम' का उच्चारण क्यों नहीं कर सकता ? वस्तुत: रहस्य क्या है, आइये, हम इस पर विचार करें।

वर्णात्मक नाम का उल्टा ध्वन्यात्मक नाम होता है और  सगुण नाम का उल्टा निर्गुण नाम होता है । वर्णात्मक नाम की उत्पत्ति पिण्ड में नीचे नाभि से होकर ऊपर होंठ पर जाकर उसकी समाप्ति होतीं है और ध्वन्यात्मक निर्गुण नाम की उत्पत्ति परमप्रभु परमात्मा से होकर  ब्रह्माण्ड तथा उससे भी नीचे पिण्ड में व्यापक है - अर्थात् वर्णात्मक नाम की गति नीचे से ऊपर की ओर और ध्वन्यात्मक निर्गुण नाम की गति ऊपर से नीचे की ओर है । इस तरह वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक नाम एक-दूसरे के उल्टे हैं । परमात्मा ने जो सृष्टि की, उसका उपादान कारण उन्होंने निर्गुण ध्वन्यात्मक ध्वनि वा निर्गुण रामनाम को हीं बनाया । इसी 'उल्टा नाम' अर्थात् ध्वन्यात्मक निर्गुण रामनाम का भजन कर रत्नाकर डाकू, वाल्मीकि ऋषि हुए थे, मात्र वर्णात्मक 'रामनाम' का उल्टा 'मरा-मरा' जप कर नहीं । आज भी जो कोई ध्वन्यात्मक निर्गुण रामनाम का भजन (ध्यान) करेंगे, तो वे शुद्ध होकर ब्रह्मवत् हो जाएंगे| -महर्षि संतसेवी परमहंस

शुक्रवार, 8 जून 2018

ईश्वर भक्ति में प्रधानता | Eshwar bhakti me pradhanta | महर्षि संतसेवी परमहंस | Maharshi Santsevi Paramhans | Santmat-Satsang

संतमत-सत्संग के द्वारा ईश्वर-भक्ति का प्रचार होता है। ईश्वर भक्ति में तीन बातों की प्रधानता होती है - स्तुति, प्रार्थना और उपासना। स्तुति कहते हैं यश-गान करने को। ईश्वर के यश-गान से उनकी महिमा-विभूति जानी जाती है। महिमा-विभूति जानने से उनके प्रति श्रद्धा होती है। श्रद्धा होने से उनकी भक्ति करने की प्रेरणा मिलती है। गो० तुलसीदासजी महाराज ने बतलाया -

जाने बिनु न होइ परतीती।
बिनु परतीति होइ नहिं प्रीति।।
प्रीति बिना नहीं भक्ति दृढ़ाई।
जिमि खगेस जल के चिकनाई।।

जिनकी हम भक्ति या सेवा करना चाहें, जब तक उनके गुणों को हम नहीं जानते हैं, तो उनके ऊपर हमारा विश्वास नहीं होता है। जब विश्वास नहीं होता है, तो उनके साथ प्रेम भी नहीं होता। प्रेम जब नहीं होगा, तो उनकी हम सेवा क्या कर सकेंगे? तब अगर हम सेवा भी करेंगे, तो वह दिखावटी सेवा होगी। जिस तरह से जल की चिकनाई नही ठहरती, उसी तरह वह भक्ति भी नहीं ठहर सकती। इसीलिए आवश्यक है, पहले हम ईश्वर-स्वरूप को समझ लें।

-महर्षि संतसेवी परमहंसजी महाराज

मंगलवार, 5 जून 2018

यह मानव शरीर बारम्बार मिलने को नहीं है | Yah maanav sharir barambar milne ko nahi hai | -महर्षि संतसेवी | Maharshi Santsevi | Santmat Satsang |

यह मनुष्य शरीर बारंबार मिलने को नहीं है। तुम्हारे किसी पुण्य के कारण प्रभु की कृपा हो गयी और तुमको उन्होंने मनुष्य का शरीर दे दिया। इस मनुष्य शरीर को पाकर तुम्हारी स्थिति क्या है? विचारो- सोचो,
'घटत छिन छिन बढ़त पल पल, जात न लागत बार।'  वे कहते हैं - एक ओर तो घट रहा है और दूसरी ओर बढ़ रहा है। यानी क्षण-क्षण घटने और बढ़ने का कार्य चल रहा है। अर्थात् जिस दिन किसी का जन्म होता है, वह उसका प्रथम दिन होता है। मान लीजिए कि कोई सौ वर्ष की आयु लेकर इस संसार में आया। जिस दिन उसकी उम्र 5 साल की हो गई तो उसके माता-पिता कहने लगे कि हमारा बच्चा 5 साल का हो गया लेकिन समझने की बात यह है कि जो बच्चा सौ साल का जीवन लेकर आया था उसमें उसके 5 साल घट गए, 95 साल ही बाकी बचे। जिस दिन उसकी उम्र 10 साल की हुई तो उसके माता-पिता समझने लगे कि हमारा बच्चा 10 साल का हो गया, लेकिन 100 में से 10 साल घट गए। जब वह 25 साल का हुआ, तो उसके जीवन के 75 साल बाकी बचे, 25  साल घट गए। इसी तरह आयु घटती जाती है है और उम्र बढ़ती जाती है। इसीलिए गुरु नानक देव जी महाराज कहते हैं- 'घटत छिन-छिन बढ़त पल-पल, जात न लागत बार'

जो समय बीत जाता है, कितना भी प्रयत्न करने पर वह फिर लौटकर नहीं आता है। हम एक बार जिस नदी के जल में डुबकी लगा लेते हैं, उस जल में हम दूसरी बार डुबकी नहीं लगा सकते, क्योंकि वह जल तो निकलकर आगे चला जाता है। तुरंत दूसरा जल वहाँ आता है जिसमें हम डुबकी लगाते हैं। उसी तरह हमारे जीवन के क्षण बीते चले जा रहे हैं ,बीतते चले जा रहे हैं। जो बीत गया वह वक्त फिर आने को नहीं है। गुरु नानक देव जी कहते हैं कि जिस वृक्ष से कोई फल टूटकर नीचे गिर जाता है किसी भी उपाय से वह उस डाल में नहीं लग सकता है। उसी तरह जीवन के जितने क्षण बीत गए हैं, वह फिर दोबारा आने को नहीं है। इसलिए हमारा जो बचा हुआ जीवन है, इसके लिए हम सोचें, विचारें और जो कर्तव्य करना चाहिए, वह करें। प्रभु ने कृपा करके हमको मानव तन दिया है। मानव किसको कहते हैं? मननशील प्राणी को मानव कहते हैं। -पूज्यपाद महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज

सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...