Sant Sadguru Maharshi Mehi Paramahansa Ji Maharaj is a great Sant of 20th century. He did not establish any new creed other than Santmat. He became a legendary Spiritual Master in the most ancient tradition of SANTMAT. Naturally a question arises, "What is Santmat ?" Is this a new creed? Who was the founder of Santmat? In His words, the definition of Santmat is as following:- "Stablemindedness or unfickleness of mind is the name of Shanti (peace or tranquility).
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बुधवार, 9 जून 2021
किसी जंगल मे एक गर्भवती हिरणी थी जिसका प्रसव होने को ही था | अब क्या होगा? क्या वो सुरक्षित रह सकेगी? क्या वो अपने बच्चे को जन्म दे सकेगी ? | प्रेरक कहानियाँ |
गुरुवार, 9 अगस्त 2018
एक नगर के राजा ने यह घोषणा करवा दी कि कल जब मेरे महल का द्वार खोला जायेगा ... | Gyanprad prerak kahani |
एक नगर के राजा ने यह घोषणा करवा दी कि कल जब मेरे महल का मुख्य दरवाज़ा खोला जायेगा, तब जिस व्यक्ति ने जिस वस्तु को हाथ लगा दिया वह वस्तु उसकी हो जाएगी !
इस घोषणा को सुनकर सभी नगर-वासी रात को ही नगर के दरवाज़े पर बैठ गए और सुबह होने का इंतजार करने लगे ! सब लोग आपस में बातचीत करने लगे कि मैं अमुक वस्तु को हाथ लगाऊंगा ! कुछ लोग कहने लगे मैं तो स्वर्ण को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग कहने लगे कि मैं कीमती जेवरात को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग घोड़ों के शौक़ीन थे और कहने लगे कि मैं तो घोड़ों को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग हाथीयों को हाथ लगाने की बात कर रहे थे, कुछ लोग कह रहे थे कि मैं दुधारू गौओं को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग कह रहे थे कि राजा की रानियाँ बहुत सुन्दर है मैं राजा की रानीयों को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग राजकुमारी को हाथ लगाने की बात कर रहे थे ! कल्पना कीजिये कैसा अद्भुत दृश्य होगा वह !!
उसी वक्त महल का मुख्य दरवाजा खुला और सब लोग अपनी अपनी मनपसंद वस्तु को हाथ लगाने दौड़े ! सबको इस बात की जल्दी थी कि पहले मैं अपनी मनपसंद वस्तु को हाथ लगा दूँ ताकि वह वस्तु हमेशा के लिए मेरी हो जाएँ और सबके मन में यह डर भी था कि कहीं मुझ से पहले कोई दूसरा मेरी मनपसंद वस्तु को हाथ ना लगा दे !
राजा अपने सिंघासन पर बैठा सबको देख रहा था और अपने आस-पास हो रही भाग दौड़ को देखकर मुस्कुरा रहा था ! कोई किसी वस्तु को हाथ लगा रहा था और कोई किसी वस्तु को हाथ लगा रहा था !
उसी समय उस भीड़ में से एक छोटी सी लड़की आई और राजा की तरफ बढ़ने लगी ! राजा उस लड़की को देखकर सोच में पढ़ गया और फिर विचार करने लगा कि यह लड़की बहुत छोटी है शायद यह मुझसे कुछ पूछने आ रही है ! वह लड़की धीरे धीरे चलती हुई राजा के पास पहुंची और उसने अपने नन्हे हाथों से राजा को हाथ लगा दिया ! राजा को हाथ लगाते ही राजा उस लड़की का हो गया और राजा की प्रत्येक वस्तु भी उस लड़की की हो गयी !
जिस प्रकार उन लोगों को राजा ने मौका दिया था और उन लोगों ने गलती की; ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी हमे हर रोज मौका देता है और हम हर रोज गलती करते है ! हम ईश्वर को हाथ लगाने अथवा पाने की बजाएँ ईश्वर की बनाई हुई संसारी वस्तुओं की कामना करते है और उन्हें प्राप्त करने के लिए यत्न करते है पर हम कभी इस बात पर विचार नहीं करते कि यदि ईश्वर हमारे हो गए तो उनकी बनाई हुई प्रत्येक वस्तु भी हमारी हो जाएगी !
।।जय गुरु।।
Posted by S.K.Mehta, Gurugram
गुरुवार, 19 जुलाई 2018
तब आप पर ईश्वर की कृपा हो जाती है | Tab aap par Eshwar ki kripa ho jati hai | भक्ति और आराधना का तात्पर्य ये कदापि नहीं है कि हम हाथ में माला लिए रहें | Santmat-Satsang
तब आप पर ईश्वर की कृपा हो जाती है!
भक्ति और आराधना का तात्पर्य ये कदापि नहीं है कि हम हाथ में माला लिए रहें। भगवान की प्रार्थना, उपासना, स्तुति का मतलब भी इतना ही नहीं है कि हम केवल अपने लिए और अपनों की सलामती के लिए ही कामना करते रहें, भगवान के नाम की माला हाथ में थामे हुए अगर केवल अपने विषय में, मालामाल होने की प्रार्थना करते रहें तो यह अनुचित हो जाएगा।
इससे मनुष्य आध्यात्मिक सम्पत्ति से कंगाल हो जाएगा। वेदों में स्पष्ट कहा गया है कि भगवान की भक्ति का सीधा सा अर्थ है उसकी आज्ञाओं का सहर्ष पालन करना और वही ईश्वरीय आज्ञाएं इंसान को सदगुरु प्रदान करते हैं।
इसलिए गुरु आज्ञा का कभी उलंघन न करें, सत्पुरुषों की न स्वयं निन्दा करें और न किसी के द्वारा किए जाने पर श्रवण करें, भगवान के अनेक नामों और स्वरूपों पर कभी भेद न करें।
जैसे शिव और विष्णु, राम और कृष्ण आदि उनमें कोई भेदभाव की दृष्टि न रखें, वैदिक विचारों की भी निन्दा अनुचित है, शास्त्रों का सम्मान करें और गुरु ज्ञानी जनों के प्रति अगाध श्रद्घा बनाए रखें। प्रेम भाव बनाए रखने से जीवन जगमगा उठता है।
ब्रह्मज्ञानी सदगुरु के द्वारा प्रदत्त सद्ज्ञान के प्रचार-प्रसार में, उनके द्वारा संचालित सेवा के महान कार्यों में सहयोगी बनकर जो व्यक्ति खड़ा हो जाता है, धर्म के प्रति जो कष्ट सहकर भी वफादारी निभाता है, उसके पुण्य के प्रताप से उसकी आने वाली सात पीढि़यां भवसागर से पार हो जाती हैं और वह भी तर जाता है।
इसलिए धर्म के पुण्य कार्यों में भागीदार बनना, सहयोग और सेवा प्रदान करना अपने जीवन का अंग बनाएं। गुरुचरणों में शीष नवाने वाले लोग, गुरु को मानने वाले लोग तो दुनिया में बहुत मिल जाएंगे। किंतु गुरु की आज्ञा का पालन करने वाले तो विरले ही होते हैं।
पर जो होते हैं उनके हृदय में स्वयं गुरु विराजमान हो जाते हैं, उन्हें ईश्वरीय असीम शक्तियों का अहसास होने लगता है, वे सुख-दुख, मान-अपमान, हानि-लाभ, जय- पराजय, यहां तक कि गुरुकार्यों की सम्पूर्णता के लिए अपना सर्वस्व लगाने से भी पीछे नहीं हटते। क्योंकि उन्हें गुरु का आदेश ईश्वर का संदेश प्रतीत होने लगता है।
गुरु भक्त आरूणी
ऐसा ही एक शिष्य था जिसे गुरु का आदेश ईश्वर का आदेश लगता था। इस शिष्य का नाम था आरुणि। एक बार गुरु ने आरूणी को आदेश दिया कि खेत में पानी लगाना है। पानी का बहाव तेज था, जिससे खेत की मेंड़ टूट गई। आरुणि ने भरसक प्रयत्न किया पानी रोकने का।
लेकिन जैसे ही वह फावड़े से खोदकर मिट्टी लगाता, वैसे ही पानी की तीव्र धरा उसे अपने साथ बहा ले जाती। आरुणि के लिए गुरु की आज्ञा सर्वोपरि थी, उसके महत्व को वह भलीभांति जानता था। पानी और मिट्टी के कीचड़ में वह स्वयं मेड़ बनकर लेट गया और लेटा ही रहा। सुबह से शाम, शाम से रात्रि और भोर होने लगी।
गुरु ने अपने अन्य शिष्यों से कहा आरुणि कहां है? सभी मौन थे, गुरु ने कहा वह तो खेत में पानी लगाने गया था। क्या वहां से लौटकर अभी तक नहीं आया। बिना कुछ कहे सबने जानकारी न होने की असमर्थता जताई। गुरु ने आदेश दिया चलो, मेरे साथ आरुणि अब तक खेत में क्या कर रहा है? और जाकर देखते हैं।
वह नशारा अद्भुत था, भोर का समय और गुरु स्वयं चलकर आरुणि की खोज कर रहे हैं। जाकर देखा आरुणि मिट्टी में धंसा हुआ है और अपनी देह से पानी के प्रवाह को रोक रहा है। मुंह में भी मिट्टी, आंखों में भी मिट्टी, सर्दी से शरीर सुन्न हो गया।
किंतु गुरु-आज्ञा की पालना के सामने ये शारीरिक, मानसिक वेदना क्या महत्व रखती हैं? कीचड़ में सने हुए आरुणि को आज उनके गुरु ने अपने सीने से लगा लिया और सिर पर हाथ रखकर कहने लगे। आरुणि! मेरे प्यारे! तुम ध्न्य हो, और तुम्हारी निष्ठा, तुम्हारी श्रद्घा, तुम्हारा प्रेम, तुम्हारा समर्पण भाव, तुम्हारी सेवा, तुम्हारी आज्ञा पालना केवल मैं नहीं ईश्वर भी देख रहे हैं, तुम्हें अवश्य ही इसका अभीष्ट फल प्राप्त होगा।
आरुणि की आंखों में आंसू हैं, पर गुरु उन प्रेम भाव में बहने वाले मोतियों को अपने हाथों में समेट रहे हैं और आरुणि के उपर हृदय से आशीर्वाद का अमृत बरसा रहे हैं। जो शिष्य गुरु के आदेश का प्राणपन से पालन करता है, प्रतिकूल स्थिति में भी विपदाओं की परवाह किए बिना, संकल्पित होकर सेवा कार्यों में लगा रहता है, उसके उपर ऐसे ही गुरु कृपा और प्रभु की दया बनी रहती है। ऐसे अनोखे शिष्य के लिए तो गुरु स्वयं चलकर उसके पास पहुंच जाते हैं।
।। जय गुरु महाराज ।।
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
मंगलवार, 17 जुलाई 2018
एक गरीब वृद्ध पिता के पास अपने अन्तिम समय में ... | Ek Gyanprad Kahani | Santmat-Satsang
एक गरीब वृद्ध पिता के पास अपने अंतिम समय में दो बेटों को देने के लिए मात्र एक आम था। पिताजी आशीर्वादस्वरूप दोनों को वही देना चाहते थे, किंतु बड़े भाई ने आम हठपूर्वक ले लिया। रस चूस लिया छिल्का अपनी गाय को खिला दिया। गुठली छोटे भाई के आँगन में फेंकते हुए कहा- ' लो, ये पिताजी का तुम्हारे लिए आशीर्वाद है।'
छोटे भाई ने ब़ड़ी श्रद्धापूर्वक गुठली को अपनी आँखों व सिर से लगाकर गमले में गाढ़ दिया। छोटी बहू पूजा के बाद बचा हुआ जल गमले में डालने लगी। कुछ समय बाद आम का पौधा उग आया, जो देखते ही देखते बढ़ने लगा। छोटे भाई ने उसे गमले से निकालकर अपने आँगन में लगा दिया। कुछ वर्षों बाद उसने वृक्ष का रूप ले लिया। वृक्ष के कारण घर की धूप से रक्षा होने लगी, साथ ही प्राणवायु भी मिलने लगी। बसंत में कोयल की मधुर कूक सुनाई देने लगी। बच्चे पेड़ की छाँव में किलकारियाँ
भरकर खेलने लगे।
पेड़ की शाख से झूला बाँधकर झूलने लगे। पेड़ की छोटी-छोटी लक़िड़याँ हवन करने एवं बड़ी लकड़ियाँ
घर के दरवाजे-खिड़कियों में भी काम आने लगीं। आम के पत्ते त्योहारों पर तोरण बाँधने के काम में आने लगे। धीरे-धीरे वृक्ष में कैरियाँ लग गईं। कैरियों से अचार व मुरब्बा डाल दिया गया। आम के रस से घर-परिवार के सदस्य रस-विभोर हो गए तो बाजार में आम के अच्छे दाम मिलने से आर्थिक स्थिति मजबूत हो गई। रस से पाप़ड़ भी बनाए गए, जो पूरे साल मेहमानों व घर वालों को आम रस की याद दिलाते रहते। ब़ड़े बेटे को आम फल का सुख क्षणिक ही मिला तो छोटे बेटे को पिता का ' आशीर्वाद' दीर्घकालिक व सुख- समृद्धिदायक मिला।
यही हाल हमारा भी है परमात्मा हमे सब कुछ देता है सही उपयोग हम करते नही हैं दोष परमात्मा और किस्मत को देते हैं। जय गुरु।
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
मंगलवार, 12 जून 2018
गुरु नानक के बालपन की एक घटना | Guru Nanak ke baalpan ki ghatna | Guru Nanak | Baba-Nanak | Santmat-Satsang
गुरु नानक के बालपन की एक घटना।
बालक नानक छोटे ही थे। छोटे छोटे पैरों से चलते हुए किसी अन्य मोहल्ले में पहुँच गये एक घर के बरामदे में बैठी एक औरत विलाप कर रही थी। विलाप बहुत बुरी तरह से हो रहा था। नानक के बाल मन पर गहरा असर हुआ ।नानक बरामदे में भीतर चले गये ।तो देखा कि महिला की गोद में एक नवजात शिशु था ।
बालक नानक ने महिला से बुरी तरह विलाप करने का कारण पुछा ।
महिला ने उत्तर दिया , " पुत्र हुआ है, मेरा अपना लाल है ये,
इसके और अपने दोनों के नसीबों को रो रही हूँ । कहीं और जन्म ले लेता , कुछ दिन जिन्दगी जी लेता । पर अब ये मर जायेगा । इसी लिए रो रही हूँ कि ये बिना दुनिया देखे ही मर जायेगा ।" नानक ने पुछा , " आपको किसने कहा कि ये मर जायेगा " ? महिला ने जवाब दिया , " इस से पहले जितने हुए , कोई नही बचा ।"
नानक आलती पालती मार कर जमीन पर बैठ गये और बोले, "ला इसे मेरी गोद में दे दो।"
महिला ने नवजात को नानक की गोद में दे दिया।
नानक बोले, "इसने तो मर जाना है न" ?
महिला ने हाँ में जवाब दिया तो नानक बोले , "आप इस बालक को मेरे हवाले कर दो, इसे मुझे दे दो"।
महिला ने हामी भर दी।
नानक ने पुछा "आपने इसका नाम क्या रखा है ? "
महिला से जवाब मिला "नाम क्या रखना था, इसने तो मर जाना है इस लिए इसे मरजाना कह कर ही बुलाती हूँ । "
"पर अब तो ये मेरा हो गया है न" ? नानक ने कहा।
महिला ने हाँ में सिर हिला कर जवाब दिया ।
"आपने इसका नाम रखा मरजाना, अब ये मेरा हो गया है, इसलिये मै इसका नाम रखता हूँ मरदाना (हिंदी में मरता न)।"
नानक आगे बोले, "अब ये है मेरा, मै इसे आपके हवाले करता हूँ । जब मुझे इसकी जरूरत होगी, मै इसे ले जाऊँगा"।
नानक ने बालक को महिला को वापिस दिया और बाहर निकल गये । बालक की मृत्यु नही हुई ।
छोटा सा शहर था, शहर के सभी मोहल्लों में बात आग की तरह फ़ैल गयी।
यही बालक गुरु नानक का परम मित्र तथा शिष्य था । सारी उम्र उसने बाबा नानक की सेवा में ही गुजारी । गुरु नानक के साथ मरदाना का नाम आज तक जुड़ा है तथा जुड़ा रहेगा।
।। जय गुरु ।।
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
शनिवार, 9 जून 2018
हम गुस्से में चिल्लाते क्यों हैं? | Ham gusse me chillate kyon hain | शायद यह पढ़ने के बाद हम में से कुछ लोग भी चिल्लाना अवश्य कम कर देंगे | Santmat-Satsang
हम गुस्से में चिल्लाते क्यों हैं ?
एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ बैठे थे।
अचानक उन्होंने सभी शिष्यों से एक सवाल पूछा।
बताओ जब दो लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं तो जोर-जोर से चिल्लाते क्यों हैं ?
शिष्यों ने कुछ देर सोचा और एक ने उत्तर दिया : हम अपनी शांति खो चुके होते हैं इसलिए चिल्लाने लगते हैं।
संत ने मुस्कुराते हुए कहा : दोनों लोग एक दूसरे के काफी करीब होते हैं तो फिर धीरे-धीरे भी तो बात कर सकते हैं।
आखिर वह चिल्लाते क्यों हैं ?
कुछ और शिष्यों ने भी जवाब दिया लेकिन संत संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने खुद उत्तर देना शुरू किया।
वह बोले : जब दो लोग एक दूसरे से नाराज होते हैं तो उनके दिलों में दूरियां बहुत बढ़ जाती हैं।
जब दूरियां बढ़ जाएं तो आवाज को पहुंचाने के लिए उसका तेज होना जरूरी है।
दूरियां जितनी ज्यादा होंगी उतनी तेज चिल्लाना पड़ेगा।
दिलों की यह दूरियां ही दो गुस्साए लोगों को चिल्लाने पर मजबूर कर देती हैं।
वह आगे बोले, जब दो लोगों में प्रेम होता है तो वह एक दूसरे से बड़े आराम से और धीरे-धीरे बात करते हैं।
प्रेम दिलों को करीब लाता है और करीब तक आवाज पहुंचाने के लिए चिल्लाने की जरूरत नहीं।
जब दो लोगों में प्रेम और भी प्रगाढ़ हो जाता है तो वह खुसफुसा कर भी एक दूसरे तक अपनी बात पहुंचा लेते हैं।
इसके बाद प्रेम की एक अवस्था यह भी आती है कि खुसफुसाने की जरूरत भी नहीं पड़ती।
एक दूसरे की आंख में देख कर ही समझ आ जाता है कि क्या कहा जा रहा है।
शिष्यों की तरफ देखते हुए संत बोले : अब जब भी कभी बहस करें तो दिलों की दूरियों को न बढ़ने दें।
शांत चित्त और धीमी आवाज में ही बात करें।
ध्यान रखें कि कहीं दूरियां इतनी न बढ़जाएं कि वापस आना ही मुमकिन न हो।
शायद यह पढ़ने के बाद हम में से कुछ लोग भी चिल्लाना अवश्य कम कर देंगे।
जय गुरु महाराज।
प्रस्तुति : शिवेन्द्र कुमार मेहता
शनिवार, 26 मई 2018
सठ सुधरहिं सतसंगति पाई | महर्षि मेँहीँ बोध-कथाएँ | अच्छे संग से बुरे लोग भी अच्छे होते हैं ओर बुरे संग से अच्छे लोग भी बुरे हो जाते हैं | Maharshi Mehi | Santmat Satsang
महर्षि मेँहीँ की बोध-कथाएँ!
सठ सुधरहिं सतसंगति पाई
हमारा समाज अच्छा हो, राजनीति अच्छी हो और सदाचार अच्छा हो – इसके लिए अध्यात्म ज्ञान चाहिए। अध्यात्म-ज्ञान सत्संग से होता है। इसीलिए सत्संग की आवश्यकता है –
‘सठ सुधरहिं सतसंगति पाई।
परस परसि कुधातु सुहाई।।’
(रामचरितमानस, बालकाण्ड)
अर्थात् सत्संग पाकर दुष्ट आदमी इस तरह सुधर जाते हैं, जिस तरह पारस के स्पर्श से लोहा सुहावना (सुन्दर सोना) हो जाता है।
इस कलिकाल में भगवान् बुद्ध हुए, ढाई हजार वर्ष से कुछ पहले की बात है। उनके समय में एक ब्राह्मण-पुत्र था। उसको गुरु ने दक्षिणा में एक हजार आदमियों को मारने के लिए कहा था। गुरु के मन में कुछ संदेह हो गया था, इसीलिए उसने ऐसी दक्षिणा मांगी थी कि वह अनेक को मरेगा, तो इसको भी कोई मार देगा। इसीलिए वह ब्राह्मण-पुत्र गुरु की आज्ञा से लोगों को मार-मारकर अँगुलियों की माला बना लेता था। इसीलिए उसका नाम ही ‘अंगुलिमाल’ हो गया।
उसके चलते लोगों में आतंक फैल गया; हाहाकार मच गया। सैकड़ों लोगों को उसने मारा। भगवान् बुद्ध को जब सुचना मिली कि ‘अंगुलिमाल’ नामक हत्यारा बड़ी निर्ममता से लोगों की हत्या कर रहा है, तो वे उनकी ओर चल पड़े। लोगों ने बहुत मना किया कि भगवन्! उस ओर मत जाएँ। अंगुलिमाल बहुत बड़ा हत्यारा है। वह आप पर भी प्रहार कर सकता है। भगवान् ने किसी की भी बात नहीं सुनी, सीधे अंगुलिमाल की तरफ चलते रहे। जब अंगुलिमाल ने भगवान् बुद्ध को अपनी ओर आते देखा, तो जोर से भगवान् से कहा, “तुम कौन हो, ठहरो!”
भगवान् ने कहा कि मैं तो ठहरा हुआ हूँ, तुम ठहरो। भगवान् बुद्ध धीरे-धीरे चल रहे थे ओर अंगुलिमाल तेजी से उनको पकड़ना चाहता था, फिर भी वह नहीं पकड़ पाता था। वह दौड़ते हुए रथ ओर दौड़ते हुए घोड़े को पकड़ लेता था; लेकिन भगवान् को नहीं पकड़ पा रहा था।
जब वह थककर रुक गया, तो भगवान् ने उसे स्पर्श करते हुए कहा कि अरे! यह क्या करते हो! लोगों की निर्ममतापूर्वक क्यों हत्या कर रहे हो? भगवान् का उस पर इतना प्रभाव पड़ा कि वह अपना हथियार फेंककर भगवान् के चरणों पर गिर पड़ा। भगवान् ने उसको समझाया, तो उसको अपने कर्मों से घृणा हुई ओर वह संन्यासी बन गया।
अच्छे संग से बुरे लोग भी अच्छे होते हैं ओर बुरे संग से अच्छे लोग भी बुरे हो जाते हैं।
इसलिए सत्संग अवश्य करो। सत्संग से अच्छे लोगों का संग होता है।
"शान्ति-सन्देश, जून-अंक, सन् १९९६ ई०"
सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang
सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...
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।। श्री सद्गुरुवे नमः ।। पूरा सतगुरु सोए कहावै, दोय अखर का भेद बतावै।। एक छुड़ावै एक लखावै, तो प्राणी निज घर जावै।। जै पंडित तु पढ़िया, ...
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संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस की 137वीं जयन्ती पर विशेष मानव कल्याण के लिए अवतरित महर्षि मेँहीँ विश्व के प्राय: हर देश के इतिहास में ऐसे ...
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सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...