'घटत छिन छिन बढ़त पल पल, जात न लागत बार।' वे कहते हैं - एक ओर तो घट रहा है और दूसरी ओर बढ़ रहा है। यानी क्षण-क्षण घटने और बढ़ने का कार्य चल रहा है। अर्थात् जिस दिन किसी का जन्म होता है, वह उसका प्रथम दिन होता है। मान लीजिए कि कोई सौ वर्ष की आयु लेकर इस संसार में आया। जिस दिन उसकी उम्र 5 साल की हो गई तो उसके माता-पिता कहने लगे कि हमारा बच्चा 5 साल का हो गया लेकिन समझने की बात यह है कि जो बच्चा सौ साल का जीवन लेकर आया था उसमें उसके 5 साल घट गए, 95 साल ही बाकी बचे। जिस दिन उसकी उम्र 10 साल की हुई तो उसके माता-पिता समझने लगे कि हमारा बच्चा 10 साल का हो गया, लेकिन 100 में से 10 साल घट गए। जब वह 25 साल का हुआ, तो उसके जीवन के 75 साल बाकी बचे, 25 साल घट गए। इसी तरह आयु घटती जाती है है और उम्र बढ़ती जाती है। इसीलिए गुरु नानक देव जी महाराज कहते हैं- 'घटत छिन-छिन बढ़त पल-पल, जात न लागत बार'
जो समय बीत जाता है, कितना भी प्रयत्न करने पर वह फिर लौटकर नहीं आता है। हम एक बार जिस नदी के जल में डुबकी लगा लेते हैं, उस जल में हम दूसरी बार डुबकी नहीं लगा सकते, क्योंकि वह जल तो निकलकर आगे चला जाता है। तुरंत दूसरा जल वहाँ आता है जिसमें हम डुबकी लगाते हैं। उसी तरह हमारे जीवन के क्षण बीते चले जा रहे हैं ,बीतते चले जा रहे हैं। जो बीत गया वह वक्त फिर आने को नहीं है। गुरु नानक देव जी कहते हैं कि जिस वृक्ष से कोई फल टूटकर नीचे गिर जाता है किसी भी उपाय से वह उस डाल में नहीं लग सकता है। उसी तरह जीवन के जितने क्षण बीत गए हैं, वह फिर दोबारा आने को नहीं है। इसलिए हमारा जो बचा हुआ जीवन है, इसके लिए हम सोचें, विचारें और जो कर्तव्य करना चाहिए, वह करें। प्रभु ने कृपा करके हमको मानव तन दिया है। मानव किसको कहते हैं? मननशील प्राणी को मानव कहते हैं। -पूज्यपाद महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज
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