महर्षि मेँहीँ की बोध-कथाएँ!
सठ सुधरहिं सतसंगति पाई
हमारा समाज अच्छा हो, राजनीति अच्छी हो और सदाचार अच्छा हो – इसके लिए अध्यात्म ज्ञान चाहिए। अध्यात्म-ज्ञान सत्संग से होता है। इसीलिए सत्संग की आवश्यकता है –
‘सठ सुधरहिं सतसंगति पाई।
परस परसि कुधातु सुहाई।।’
(रामचरितमानस, बालकाण्ड)
अर्थात् सत्संग पाकर दुष्ट आदमी इस तरह सुधर जाते हैं, जिस तरह पारस के स्पर्श से लोहा सुहावना (सुन्दर सोना) हो जाता है।
इस कलिकाल में भगवान् बुद्ध हुए, ढाई हजार वर्ष से कुछ पहले की बात है। उनके समय में एक ब्राह्मण-पुत्र था। उसको गुरु ने दक्षिणा में एक हजार आदमियों को मारने के लिए कहा था। गुरु के मन में कुछ संदेह हो गया था, इसीलिए उसने ऐसी दक्षिणा मांगी थी कि वह अनेक को मरेगा, तो इसको भी कोई मार देगा। इसीलिए वह ब्राह्मण-पुत्र गुरु की आज्ञा से लोगों को मार-मारकर अँगुलियों की माला बना लेता था। इसीलिए उसका नाम ही ‘अंगुलिमाल’ हो गया।
उसके चलते लोगों में आतंक फैल गया; हाहाकार मच गया। सैकड़ों लोगों को उसने मारा। भगवान् बुद्ध को जब सुचना मिली कि ‘अंगुलिमाल’ नामक हत्यारा बड़ी निर्ममता से लोगों की हत्या कर रहा है, तो वे उनकी ओर चल पड़े। लोगों ने बहुत मना किया कि भगवन्! उस ओर मत जाएँ। अंगुलिमाल बहुत बड़ा हत्यारा है। वह आप पर भी प्रहार कर सकता है। भगवान् ने किसी की भी बात नहीं सुनी, सीधे अंगुलिमाल की तरफ चलते रहे। जब अंगुलिमाल ने भगवान् बुद्ध को अपनी ओर आते देखा, तो जोर से भगवान् से कहा, “तुम कौन हो, ठहरो!”
भगवान् ने कहा कि मैं तो ठहरा हुआ हूँ, तुम ठहरो। भगवान् बुद्ध धीरे-धीरे चल रहे थे ओर अंगुलिमाल तेजी से उनको पकड़ना चाहता था, फिर भी वह नहीं पकड़ पाता था। वह दौड़ते हुए रथ ओर दौड़ते हुए घोड़े को पकड़ लेता था; लेकिन भगवान् को नहीं पकड़ पा रहा था।
जब वह थककर रुक गया, तो भगवान् ने उसे स्पर्श करते हुए कहा कि अरे! यह क्या करते हो! लोगों की निर्ममतापूर्वक क्यों हत्या कर रहे हो? भगवान् का उस पर इतना प्रभाव पड़ा कि वह अपना हथियार फेंककर भगवान् के चरणों पर गिर पड़ा। भगवान् ने उसको समझाया, तो उसको अपने कर्मों से घृणा हुई ओर वह संन्यासी बन गया।
अच्छे संग से बुरे लोग भी अच्छे होते हैं ओर बुरे संग से अच्छे लोग भी बुरे हो जाते हैं।
इसलिए सत्संग अवश्य करो। सत्संग से अच्छे लोगों का संग होता है।
"शान्ति-सन्देश, जून-अंक, सन् १९९६ ई०"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
धन्यवाद!