🙏🌹 श्री सद्गुरवे नमः 🌹🙏
🍁ईश्वर-भक्ति का ज्ञान सबको देना चाहिए। एक ईश्वर की उपासना ठीक है। बहुदेव उपासना ठीक नहीं। बहुदेव उपासी ईश्वर को भूल जाता है। वही नास्तिक है। फिर ऐसा भ्रम कि अमुक जगह मरने से स्वर्ग और अमुक जगह मरने से नरक होगा, यह बात नहीं हो सकती। गंगा-स्नान करने से, आपके मृतक शरीर को गंगा के किनारे जलाने से अथवा आपकी हड्डियाँ या भस्म को गंगाजी में देने से स्वर्ग हरगिज नहीं हो सकता।
पाप करके पुण्य करें, इससे पाप नहीं कट सकता। पुण्य का फल अलग और पाप का फल अलग मिलेगा। आपने किसी से दो रुपया कर्ज लिया और किसी को दो रुपया दान दिया, इसलिए वह महाजन आपसे रुपया नहीं माँगे, यह कहाँ की बात है? वह तो कहेगा कि आपने दान अपने लिए किया, मुझे उससे क्या? मेरा रुपया दो।
युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष झूठ बोले, बल्कि उनकी प्रेरणा से झूठ बोले, फिर भी दो मुहूर्त तक नरक में रहना पड़ा। उसके लिए खातिरदारी नहीं हुई। जो कर्म कीजिएगा, उसका फल भोगना ही पड़ेगा। तब आप कहेंगे कि क्या कर्म-फल से कोई छूट नहीं सकता? सौर-जगत में रहने से सूर्य का प्रभाव पड़ेगा ही। यदि सौर जगत से कोई पार हो जाए तो उस पर सूर्य का प्रभाव नहीं पड़ता। उसी प्रकार कर्म मंडल में रहने से कर्म का फल भोगना ही पड़ेगा। कर्ममण्डल पार कर जाने से कर्मफल छूट जाएगा। इसीलिए मैंने पहले ही कहा कि अपने को इन्द्रियों से छुड़ाओ।
*चौथ चारि परिहरहु, बुद्धि मन चित अहंकार।*
*विमल विचार परमपद, निज सुख सहज उदार।।*
-विनय-पत्रिका
विचार में अपने का ज्ञान होता है, किंतु पहचान नहीं। अपने को चतुष्ट्य अंतःकरण से छुड़ाओ, कर्ममण्डल से पार हो जाओगे। अपनी पहचान होगी और मोक्ष मिलेगा। फिर कर्मबंधन से छूटोगे। ‘कर्म कि होहिं स्वरूपहिं चिन्हें।’ लोक- लोकान्तर में जाने से मुक्ति नहीं मिलती। कभी न कभी फिर यहाँ आना ही पड़ेगा। इसलिए अपने को सब आवरणों से छुड़ाकर कैवल्यता प्राप्त करो और मोक्ष प्राप्त कर लो। फिर आवागमन से रहित हो जाओगे।
(प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम)
🙏🌸🌿 जय गुरु महाराज 🌿🌸🙏
सौजन्य: महर्षि मेँहीँ सेवा ट्रस्ट