गुरु सेवा ते भगति कमाई, तब यह मानस देही पाई!
हे जीव! यह मनुष्य देह तुझे गुरु की सेवा तथा भक्ति की कमाई करने के लिए मिली है। इस देह के लिए देवी-देवता भी तरसते हैं। वह भी चाहते हैं कि हम मनुष्य शरीर को धारण करके गुरु की भक्ति कर सकें। हे जीव तू इस मूल्यवान शरीर को पाकर भजन के काम में आलस्य करता है तथा भजन के कार्य को कल पर छोड़ता है, सो यह तेरी उस व्यक्ति वाली मिसाल है जिसे एक साधु की सेवा करने से एक सप्ताह के लिए पारस मिला था परंतु उसने उससे कोई भी लाभ न लिया। एक व्यक्ति साधु-संतों की सेवा किया करता था। एक बार एक साधु उस के घर आया जिसके पास पारसमणि थी। उस व्यक्ति ने अपने नम्र स्वभावानुसार उस साधु की सेवा की। साधु ने प्रसन्न होकर कहा, 'यह पारसमणि मैं तुझे एक सप्ताह के लिए दे जा रहा हूँ इसमें यह गुण छिपा हुआ है कि यदि लोहा इससे छू जाए तो वह लोहा स्वर्ण में बदल जाता है। एक सप्ताह के भीतर तुम जितना चाहे सोना बना लेना परन्तु सात दिन व्यतीत होने पर यह वस्तु तुम से वापस ले ली जायेगी। यह कह कर साधु चला गया। तत्पश्चात वह व्यक्ति पारस को घर रख कर बाजार चला गया। लोहे का भाव पूछने लगा। मालूम हुआ कि लोहा दो रुपये सेर है। सोचने लगा शायद कल कुछ सस्ता हो जाए, आज महंगा है। यह सोचकर वापस आ गया। दूसरे दिन जब बाजार में गया तो पता चला आज भाव कल से अधिक है। वह पुन: लौट आया उसका विचार था कि लोहा सस्ता होने पर खरीदूंगा। अर्थात रोजाना बाजार में आता-जाता और लोहे का भाव पूछ कर वापस घर चला आता। सात दिन व्यतीत हो गए। साधु अपने वचनों के अनुसार आ गया उस व्यक्ति को उसी प्रकार कंगाल देखकर चकित हुए तथा कहा,' अरे मैंने तो तुझे पारस दिया था कि तू जितना चाहे सोना बना ले ताकि तेरी निर्धनता दूर हो जाए, क्या तुमने उससे कोई लाभ नहीं उठाया? वह व्यक्ति बोला महाराज! क्या करता कई बार बाजार गया परन्तु लोहे का भाव ही बहुत तेज रहा। इसलिए यह कार्य न हो सका। यह सुनकर साधु उस व्यक्ति की नादानी पर हंसा और कहने लगा, तुमने व्यर्थ ही लोहे का भाव पूछने में सात दिन गंवा दिए तथा अनमोल समय खो दिया। साधु पारस ले गया। इसलिए संत कहते हैं कि हे जीव! करोड़ों वर्षों से आवागमन के चक्कर में ठोकरें खाते हुए देख कर मालिक ने दया करके तुझे हीरे जैसा जन्म दिया था ताकि तू निम्न जन्म के कंगालपन से छूट जाए परंतु तूने यह अनमोल समय माया की गिनतियां करते हुए खो दिया तथा जो लाभ इस मानव जन्म से उठाना था वह न उठा सका।
।। जय गुरु ।।
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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