गुरुभक्ति से ईश्वर प्राप्ति शीघ्र
सदगुरु से प्राप्त मंत्र को श्रद्धा-विश्वासपूर्वक जपने से कम समय में ही काम बन जाता है।
शास्त्रों में यह कथा आती है कि एक बार भक्त ध्रुव के संबंध में साधुओं की गोष्ठी हुई। उन्होंने कहा --
“देखो, भगवान के यहाँ भी पहचान से काम होता है। हम लोग कई वर्षों से साधु बनकर नाक रगड़ रहे हैं, फिर भी भगवान दर्शन नहीं दे रहे। जबकि ध्रुव है नारदजी का शिष्य, नारदजी हैं ब्रह्मा के पुत्र और ब्रह्माजी उत्पन्न हुए हैं विष्णुजी की नाभि से। इस प्रकार ध्रुव हुआ विष्णुजी के पौत्र का शिष्य। ध्रुव ने नारदजी से मंत्र पाकर उसका जप किया तो भगवान् ध्रुव के आगे प्रकट हो गये।” इस प्रकार की चर्चा चल ही रही थी कि इतने में एक केवट वहाँ आया और बोला: “हे साधुजनों ! लगता है आप लोग कुछ परेशान से हैं। चलिये, मैं आपको जरा नौका विहार करवा दूँ।” सभी साधु नौका में बैठ गये, केवट उनको बीच सरोवर में ले गया जहाँ कुछ टीले थे। उन टीलों पर अस्थियाँ दिख रहीं थीं। तब कौतूहल वश साधुओं ने पूछा- “केवट तुम हमें कहाँ ले आये? ये किसकी अस्थियों के ढ़ेर हैं ?” तब केवट बोला: “ये अस्थियों के ढ़ेर भक्त ध्रुव के हैं। उन्होंने कई जन्मों तक भगवान् को पाने के लिये यहीं तपस्या की थी। आखिरी बार देवर्षि नारद उन्हें गुरु के रूप में मिल गये और उनकी बतलायी युक्ति से उनकी तपस्या छः महीने में फल गई और उन्हें प्रभु के दर्शन हो गये। सब साधुओं को अपनी शंका का समाधान मिल गया। इस प्रकार सद्गुरु से प्राप्त मंत्र का विश्वासपूर्वक जप शीघ्र फलदायी होता है।
।। जय गुरु ।।
प्रस्तुतकर्ता: शिवेन्द्र कुमार मेहता
गुरुग्राम, हरियाणा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
धन्यवाद!