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सोमवार, 9 दिसंबर 2019

सत्संग-महिमा | SATSANG MAHIMA | Santmat Satsang | Maharshi Mehi Ashram | Kuppaghat-Bhagalpur

सत्संग-महिमा
☘शास्त्रों में सत्संग की महिमा खूब गाई गई है। 'श्रीरामचरितमानस' के सुंदरकांड में आता हैः

तात स्वर्ग आपवर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तुल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग।।

हे तात ! 'स्वर्ग और मोक्ष के सब सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा जाये तो भी वे सब सुख मिलकर भी दूसरे पलड़े में रखे हुए उस सुख के बराबर नहीं हो सकते, जो लव माने क्षण मात्र के सत्संग से होता है।'

एक क्षण के सत्संग से जो वास्तविक आनंद मिलता है, वास्तविक सत्य स्वरूप का जो ज्ञान मिलता है, जो सुख मिलता है वैसा सुख स्वर्ग में भी नहीं मिलता। इस प्रकार, सत्संग से मिलने वाला सुख ही वास्तविक सुख है।

'श्रीयोगवाशिष्ठ महारामायण' में ब्रह्मर्षि वशिष्ठजी महाराज मोक्ष के द्वारपालों का विवेचन करते हुए भगवान श्रीराम से कहते हैं-

"शम, संतोष, विचार एवं सत्संग – ये संसाररूपी समुद्र से तरने के उपाय हैं। संतोष परम लाभ है। विचार परम ज्ञान है। शम परम सुख है। सत्संग परम गति है।"

सत्संग का महत्त्व बताते हुए उन्होंने कहा हैः

विशेषेण महाबुद्धे संसारोत्तरणे नृणाम्।
सर्वत्रोपकरोतीह साधुः साधुसमागमः।।

'हे महाबुद्धिमान् ! विशेष करके मनुष्यों के लिए इस संसार से तरने में साधुओं का समागम ही सर्वत्र खूब उपकारक है।'

सत्संग बुद्धि को अत्यंत सात्त्विक बनाने वाला, अज्ञानरूपी वृक्ष को काटने वाला एवं मानसिक व्याधियों को दूर करने वाला है। जो मनुष्य सत्संगतिरूप शीतल एवं स्वच्छ गंगा में स्नान करता है उसे दान, तीर्थ-सेवन, तप या यज्ञ करने की क्या जरूरत है ?"

कलियुग में सत्संग जैसा सरल साधन दूसरा कोई नहीं है। भगवान शंकर भी पार्वतीजी को सत्संग की महिमा बताते हुए कहते हैं-

उमा कहउँ मैं अनुभव अपना।
सत हरि भजन जगत सब सपना।।

सभी ब्रह्मवेत्ता संत स्वप्न समान जगत में सत्संग एवं आत्म-विचार से सराबोर रहने का बोध देते हैं। मेरे गुरुदेव के उपदेश एवं आचरण में कभी-भी भिन्नता देखने को नहीं मिलती थी। वे सदैव आत्मचिंतन में निमग्न रहने का आदेश देते थे।

बुधवार, 4 दिसंबर 2019

भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध में अर्जुन से कहा था..... -महर्षि मेँहीँ | Maharshi Mehi | Krishna

🙏🌹श्री सद्गुरवे नमः🌹🙏


🍁भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध में अर्जुन से कहा था कि तुम किसको मारोगे? कुरुक्षेत्र के मैदान में जितने लड़ने आए हैं, ये पहले नहीं थे और पीछे नहीं रहेंगे, ऐसी बात नहीं। शरीर बदलता है, आत्मा अविनाशी है। इस शरीर में जीवात्मा है और शरीर के बंधन में है। शरीर के बंधन में रहने से क्या होता है, यह सबको मालूम है। कभी सुख, कभी दुःख दिन रात की तरह आता-जाता रहता है। कभी लगभग चौदह घंटे की रात और कभी चौदह घंटे का दिन होता है। लेकिन बराबर न रात रहती है, न दिन रहता है। उसी तरह दुःख कभी अधिक, कभी कम। कभी पाण्डव बड़े सुख में थे और कभी भीख भी माँगी, कभी नौकरी भी की। नौकरी में युधिष्ठिर ने भी मार खायी और द्रौपदी ने भी। महारानी सीता भी रोयीं। एक बार कौन कहे, दो-दो बार। 

सूरदासजी ने कहा- 
*ताते सेइये यदुराई।*
*सम्पति विपति विपति सों सम्पति देह धरे को यहै सुभाई।।* 
*तरुवर फूलै फलै परिहरै अपने कालहिं पाई।* 
*सरवर नीर भरै पुनि उमड़ै सूखे खेह उड़ाई।।* 
*द्वितीय चन्द्र बाढ़त ही बाढे़े घटत घटत घटि जाई।* 
*सूरदास सम्पदा आपदा जिनि कोऊ पतिआई।।* 
सम्पदा व आपदा, किसी का विश्वास नहीं करो कि यह सदा रहेगी। यह तो प्रत्यक्ष अपने देश में हुआ। अंग्रेज बात-की-बात में भाग गया। जमींदारों की जमींदारी चली गई। बहुत-बहुत जमीन भी अब किसी के पास नहीं रहने को। कभी भारत बड़ा धनी था और अब भारत ऋणी है; लेकिन सदा ऋणी रहेगा, ऐसा नहीं।
इस शरीर में कभी सुख, कभी दुःख होता है। सम्पत्ति में बाहर में तो अच्छा लगता है; लेकिन अंतर जलता रहता है। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है- 
*द्रव्यहीन दुख लहइ दुसह अति, सुख सपनेहु नहिं पाये।*
*उभय प्रकार प्रेत पावक ज्यों, धन दुख प्रद स्रुति गाये।।* 
धन होने और नहीं होने, दोनों तरहों में दुःख है। धन नहीं है, तो जलते हैं और धन हो गया, तो जैसे भूत चढ़ गया, चैन नहीं लेने देता। जो सब राष्ट्र वा एक ही राष्ट्र बड़ा धनवान है, तो चुपचाप रहे। लेकिन चुपचाप रहता कहाँ है? उसको भूत लगा है, अपने ऐश्वर्य को बढ़ाने के लिए। भारत कहता है कि हमारे पास धन नहीं है, इससे दुःखी हैं और अमेरिका कहता है-‘हमारे पास अमित धन है, धन के भोगों से बचाओ।’ वह भोग के मारे पागल हो रहा है। इस तरह धन सुख देनेवाला नहीं है। सुख कहने मात्र का है, यथार्थ में नहीं।
-संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज 

सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...