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बुधवार, 14 जुलाई 2021

सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

सब कोई सत्संग में आइए!
प्यारे लोगो !
पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मानस-ध्यान में कोई स्थूल-रूप मन में बनाकर देखा जाता है। अपने-अपने इष्टदेव के रूप को मन में बनाकर देखना, मानस-ध्यान कहलाता है। यदि विचार करेंगे तो मूल में गुरु आ जाते हैं; क्योंकि शिक्षा देनेवाले को गुरु कहते हैं। इसलिए हमने तो गुरु का रूप रख लिया है और आपलोगों को भी सलाह देता हूँ कि गुरु-रूप का ध्यान कीजिए। यदि गुरु में श्रद्धा नहीं है, किसी दूसरे इष्टदेव में श्रद्धा है तो जो कुछ करना है, सो कीजिए। लेकिन तब आपकी गुरु में श्रद्धा नहीं। मानस-ध्यान के बाद होता है, सूक्ष्म-ध्यान यानी विन्दु-ध्यान। विन्दु-ध्यान के आगे भी ध्यान है, वह है नादानुसंधान। नादानुसंधान के बाद कुछ नहीं बचता है। नादानुसंधान में बारीकी में ध्यान ले जाने से वह मिलता है, जो बारीक से बारीक शब्द है। उस बारीक शब्द को जानना चाहिए, जो परमात्मा से ही निकलता है-स्फुटित होता है। जो स्फोट-शब्द को जानेगा, वह परमात्मा-परमेश्वर को पाकर कृतकृत्य हो जाएगा। खाने-पीने का बन्धन रखना उत्तम है इसलिए सात्विक भोजन होना चाहिये। राजसी भोजन मन को चंचल करता है। तामसी भोजन मन को नीचे गिराता है। सात्विक भोजन में भी जैसे गाय का दूध है, गाय के दूध को बेसी औटने से राजस हो जाता है। मांस-मछली-अण्डाआदि तामस-भोजन है। साधक को राजस और तामस भोजन छोड़कर सात्विक भोजन करना चाहिए।
पहले के लोग हवा पीकर रहते थे। आजकल हवा पीकर नहीं रह सकते। ध्यान कीजिए, ध्यान में प्रणव-ध्वनि को ग्रहण कीजिए और मोक्ष प्राप्त कीजिए। मनुष्य जीवन का जो परम-लक्ष्य है मोक्ष, उसको प्राप्त कर लीजिए। सन्तमत का सार सिद्धान्त है- गुरु, ध्यान, सत्संग। सच्चे गुरु मिल जाये तो उनका सत्संग करो। कहीं रहो, उनके बताए कायदे पर चलो तो उनका संग होता रहेगा, सत्संग होता रहेगा। बिना संत्सग के बात ठीक-ठीक समझ में नहीं आएगी। गप्प-शप्प सत्संग नहीं है, ईश्वर-चर्चा सत्संग है। *‘धर्म कथा बाहर सत्संगा। अन्तर सत्संग ध्यान अभंगा।।’*  सप्ताह में एक बार मैं यहाँ (सत्संग-मंदिर में) आता हूँ। आपलोगों को देखता हूँ तो बड़ी प्रसन्नता होती है। जिनको श्रद्धा होती है, वे बड़े से भी बड़े लोग होते हैं, तो आ जाते हैं। ऐसे जो बड़े लोग हैं, उनको मैं धन्यवाद देता हूँ। जो प्रणाम करने योग्य हैं उनको प्रणाम करता हूँ। जो आशीर्वाद देने योग्य हैं, उनको मैं आशीर्वाद करता हूँ। जो सात दिन में यहाँ आते हैं, घर में सद्व्यवहार नहीं करते, तो वे सत्संग नहीं करते हैं। घर में रहना, पवित्रता से रहना, सद्व्यवहार से  रहना है। स्त्रियाँ बच्चों की सेवा करें, पति की सेवा करें, आपस में मेल रखें, झंझट नहीं करें। जहाँ तक हो सके अपने को सत्य पर रखना। अपने को सत्य पर रखे बिना सत्संग नहीं। सत्य पर अपने को रखिए तो अकेले में भी सत्संग होता है। सामूहिक सत्संग आप के घर में रोज हो सो नहीं हो सकता। जो कोई निजी उद्देश्य से सत्संग करते हैं यानी अपने उद्यम के लिए  सत्संग करते हैं तो वह सत्संग सत्संग नहीं है। स्त्रियाँ सत्संग करें, पुरुष सत्संग करें। किसी भी मजहब के लोगों को यहाँ मनाही नहीं है। सब कोई सत्संग में आइए। एक-न-एक दिन संसार छोड़ना है। शरीर छोड़ने के पहले संसार में कोई उत्तम  चिह्न-लकीर दे जाना अच्छा है। दूसरे संसार में भी आपकी उत्तमता का लोग गुण गावें और आप के मार्ग पर अपने को चलाकर बहुत पवित्र होते हुए शरीर छोड़ें। जो अपने खराब रास्ते पर रहते हैं, दूसरे को उस खराब रास्ते पर वे ले जाते हैं, इससे संसार में बहुत खराबी होती है। संसार को खराब मत करो, अपने खराब मत होओ। मेरे यहाँ आने के पूर्व जो आपलोग श्रीसंतसेवी जी से सत्संग-वचन सुन चुके हैं, उनसे सन्तमत का ही प्रचार हुआ है। सन्तमत के अनुकूल ही बातें होंगी। सब लोग उनकी उत्तम बातों पर चलिए। सब बातें उत्तम कही गई होंगी, ऐसा मेरा विश्वास है। -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ
प्रस्तुति : शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

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