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सोमवार, 5 अगस्त 2019

पाप पुण्य कर्म फल अलग-अलग | Santmat Satsang | Paap Punya Karma

🙏🌹 श्री सद्गुरवे नमः 🌹🙏
🍁ईश्वर-भक्ति का ज्ञान सबको देना चाहिए। एक ईश्वर की उपासना ठीक है। बहुदेव उपासना ठीक नहीं। बहुदेव उपासी ईश्वर को भूल जाता है। वही नास्तिक है। फिर ऐसा भ्रम कि अमुक जगह मरने से स्वर्ग और अमुक जगह मरने से नरक होगा, यह बात नहीं हो सकती। गंगा-स्नान करने से, आपके मृतक शरीर को गंगा के किनारे जलाने से अथवा आपकी हड्डियाँ या भस्म को गंगाजी में देने से स्वर्ग हरगिज नहीं हो सकता।

 
पाप करके पुण्य करें, इससे पाप नहीं कट सकता। पुण्य का फल अलग और पाप का फल अलग मिलेगा। आपने किसी से दो रुपया कर्ज लिया और किसी को दो रुपया दान दिया, इसलिए वह महाजन आपसे रुपया नहीं माँगे, यह कहाँ की बात है? वह तो कहेगा कि आपने दान अपने लिए किया, मुझे उससे क्या? मेरा रुपया दो।
युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष झूठ बोले, बल्कि उनकी प्रेरणा से झूठ बोले, फिर भी दो मुहूर्त तक नरक में रहना पड़ा। उसके लिए खातिरदारी नहीं हुई। जो कर्म कीजिएगा, उसका फल भोगना ही पड़ेगा। तब आप कहेंगे कि क्या कर्म-फल से कोई छूट नहीं सकता? सौर-जगत में रहने से सूर्य का प्रभाव पड़ेगा ही। यदि सौर जगत से कोई पार हो जाए तो उस पर सूर्य का प्रभाव नहीं पड़ता। उसी प्रकार कर्म मंडल में रहने से कर्म का फल भोगना ही पड़ेगा। कर्ममण्डल पार कर जाने से कर्मफल छूट जाएगा। इसीलिए मैंने पहले ही कहा कि अपने को इन्द्रियों से छुड़ाओ।

*चौथ चारि परिहरहु, बुद्धि मन चित अहंकार।*
*विमल विचार परमपद, निज सुख सहज उदार।।*
      -विनय-पत्रिका

विचार में अपने का ज्ञान होता है, किंतु पहचान नहीं। अपने को चतुष्ट्य अंतःकरण से छुड़ाओ, कर्ममण्डल से पार हो जाओगे। अपनी पहचान होगी और मोक्ष मिलेगा। फिर कर्मबंधन से छूटोगे। ‘कर्म कि होहिं स्वरूपहिं चिन्हें।’ लोक- लोकान्तर में जाने से मुक्ति नहीं मिलती। कभी न कभी फिर यहाँ आना ही पड़ेगा। इसलिए अपने को सब आवरणों से छुड़ाकर कैवल्यता प्राप्त करो और मोक्ष प्राप्त कर लो। फिर आवागमन से रहित हो जाओगे।

(प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम)

🙏🌸🌿 जय गुरु महाराज 🌿🌸🙏
सौजन्य: महर्षि मेँहीँ सेवा ट्रस्ट

सोमवार, 29 जुलाई 2019

अपराध रहित होकर भगवान का भजन करें! SANTMAT SATSANG

अपराध रहित होकर भगवान् का भजन करें;

अशेषसंक्लेशशमं विधत्ते गुणानुवादश्रवणं मुरारेः ।
कुतः पुनस्तच्चरणारविन्द परागसेवारतिरात्मलब्धा ॥

                    (भा. ३/७/१४)



जितने प्रकार के क्लेश होते हैं, वे सब केवल भगवान् का गुणानुवाद श्रवण करने मात्र से शान्त हो जाते हैं । ज्यादा कुछ नहीं कर सकते तो कथा सुन लें और अगर भक्ति आ गयी तो फिर कहना ही क्या? संसार का ऐसा कोई कष्ट नहीं है जो भगवान् की भक्ति से दूर न हो जाए। कहीं भगवान के चरणों में रति हो गयी फिर तो क्या कहना? निश्चित रूप से समस्त कष्ट केवल कथा सुनने मात्र से चले जाते हैं ।

शारीरा मानसा दिव्या वैयासे ये च मानुषाः ।
भौतिकाश्च कथं क्लेशा बाधन्ते हरिसंश्रयम् ॥
                     (भा. ३/२२/३७)

शरीर की जितनी बीमारियाँ हैं, मन के रोग, दैवी-कोप, भौतिक-पंचभूतों के क्लेश, सर्दी-गर्मी या सांसारिक-प्राणियों द्वारा प्राप्त कष्ट, सर्प, सिंह आदि का भय; ये सब भगवान् के आश्रय में रहने वाले पर बाधा नहीं करते ।
लेकिन ध्यान रहे कि कथा एवं हरिनाम निरपराध हो एवं गलती से भी कभी किसी वैष्णव का अपराध ना हो, वैष्णव का अपराध तो सपने में भी नहीं सोचना चाहिए।
नहीं तो सब बेकार है।

न भजति कुमनीषिणां स इज्यां हरिरधनात्मधनप्रियो रसज्ञः।
श्रुतधनकुलकर्मणां मदैर्ये विदधति पापमकिञ्चनेषु सत्सु॥
                  (भा. ४/३१/२१)
कोई कितनी भी आराधना कर रहा है, भजन कर रहा है लेकिन अगर अकिञ्चन भक्तों का अपराध करता है तो भगवान् उसके भजन को स्वीकार नहीं करते हैं। एक छोटे-से साधक-भक्त से भी चिढ़ते हों तो आपका सारा भजन नष्ट; फिर चाहे जप-तप कुछ भी करते रहो, उससे कुछ नहीं होगा क्योंकि भगवान् निर्धनों के धन हैं, गरीबों से प्यार करते हैं।

मनुष्य भक्तों का वैष्णवों का अपराध क्यों करता है?

मद के कारण। विद्या का मद (ज्यादा पढ़ गया तो छोटे लोगों को मूर्ख समझने लगता है); धन का मद (धन-सम्पत्ति ज्यादा बढ़ गयी तो दीनों का तिरस्कार करता है); अच्छे कुल में जन्म का मद (ऊँचे कुल में जन्म हो गया तो अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है और दीन-हीनों की उपेक्षा करता है); इसी तरह से कोई अच्छा कर्म कर लिया तो उसका मद, त्याग-वैराग्य कर लिया तो उससे मद हो जाता है, सांसारिक वस्तुओं में अहंता-ममता के कारण लोग ज्यादा अपराध करते हैं ।
इसलिए अपराध रहित होकर भगवान् का भजन करें, फिर देखें चमत्कार; किसी भी तरह का संकट, क्लेश आपको बाधा नहीं पहुँचा सकेगा।
।। जय गुरु ।।
सौजन्य: *महर्षि मेँहीँ सेवा ट्रस्ट*
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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भगवान ने हमें इतनी खूबसूरत जिंदगी प्रदान की हुईं है | पर हम कभी-कभी इसकी कीमत नहीं समझते हैं और... | Khoobsurat Jindgi

भगवान ने हमें इतनी खूबसूरत जिंदगी प्रदान की हुई है !

भगवान ने हमें इतनी खूबसूरत जिंदगी प्रदान की हुई है ! पर हम कभी-कभी इसकी कीमत नहीं समझते हैं और आधी जिंदगी यूँ ही बर्बाद कर देते हैं, जब होश आता है तो बहुत देर हो चुकी होती है!

हमें हमेशा अपने साथ-साथ दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए, दुसरों के लिए कुछ करने के बाद जो सुकून और चैन जीवन में मिलता है वो  कही नहीं मिलता है! सदा अच्छे विचार के साथ दिन की शुरुआत करनी चाहिए! सब कुछ तो भगवान ने पहले से निर्धारित कर के रखा है हमें तो बस कर्म करना है! कर्म करते जाओ फल तो भगवान देगा ही, कर्म से कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए! जीवन में घबराकर परेशान नहीं होना चाहिए! सुख और दुःख तो जीवन के दो हिस्से हैं एक आएगा तो दूसरा जायेगा दोनों सिक्के के दो पहलु है कभी भी एक साथ नहीं रह सकते! अगर हमने सुख को भोगा है तो दुःख को भी झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए! एक सुखी और शांत जीवन हमें तभी मिलेगा जब हम हर पल तैयार रहेंगे जीवन को जीने के लिए, कभी भी हिम्मत हार कर जिंदगी से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए डट कर सामना करना चाहिए जीवन अपने आप खूबसूरत बन जायेगा! ।। जय गुरु ।।

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

अहंकार से ज्ञान का नाश | Ahankar se gyan ka naash | कभी किसी को नहीं सताओ | गुप्तदान महादान | मृत्यु से कोई नहीं बच पाया | Santmat Satsang

अहंकार से ज्ञान का नाश;
अहंकार से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है। अहंकार से ज्ञान का नाश हो जाता है। अहंकार होने से मनुष्य के सब काम बिगड़ जाते हैं। भगवान कण-कण में व्याप्त है। जहाँ उसे प्रेम से पुकारो वहीं प्रकट हो जाते हैं। भगवान को पाने का उपाय केवल प्रेम ही है। भगवान किसी को सुख-दुख नहीं देता। जो जीव जैसा कर्म करेगा, वैसा उसे फल मिलता है। मनुष्य को हमेशा शुभ कार्य करते रहना चाहिए।

कभी किसी को नहीं सताओ :

धर्मशास्त्रों के श्रवण, अध्ययन एवं मनन करने से मानव मात्र के मन में एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सद्भावना एवं मर्यादा का उदय होता है। हमारे धर्मग्रंथों में जीवमात्र के प्रति दुर्विचारों को पाप कहा है और जो दूसरे का हित करता है, वही सबसे बड़ा धर्म है। हमें कभी किसी को नहीं सताना चाहिए। और सर्व सुख के लिए कार्य करते रहना चाहिए।

गुप्तदान महादान :
मनुष्य को दान देने के लिए प्रचार नहीं करना चाहिए, क्योंकि दान में जो भी वस्तु दी जाए, उसको गुप्त रूप से देना चाहिए। हर मनुष्य को भक्त प्रहलाद जैसी भक्ति करना चाहिए। जीवन में किसी से कुछ भी माँगो तो छोटा बनकर ही माँगो। जब तक मनुष्य जीवन में शुभ कर्म नहीं करेगा, भगवान का स्मरण नहीं करेगा, तब तक उसे सद्‍बुद्धि नहीं मिलेगी।

मृत्यु से कोई नहीं बच पाया :

धन, मित्र, स्त्री तथा पृथ्वी के समस्त भोग आदि तो बार-बार मिलते हैं, किन्तु मनुष्य शरीर बार-बार जीव को नहीं मिलता। अतः मनुष्य को कुछ न कुछ सत्कर्म करते रहना चाहिए। मनुष्य वही है, जिसमें विवेक, संयम, दान-शीलता, शील, दया और धर्म में प्रीति हो। संसार में सर्वमान्य यदि कोई है तो वह है मृत्यु। दुनिया में जो जन्मा है, वह एक न एक दिन अवश्य मरेगा। सृष्टि के आदिकाल से लेकर आज तक मृत्यु से कोई भी नहीं बच पाया।
   ।। जय गुरू महाराज ।।
सौजन्य: *महर्षि मेँहीँ सेवा ट्रस्ट*
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

बुधवार, 17 जुलाई 2019

कर्मयोग | KARMAYOG | मनुस्मृति में कहा गया है कि कितना भी विषय-भोग क्यों न किया जाय काम की तृप्ति नहीं होती | Santmat Satsang

कर्मयोग 

अध्याय तीन : कर्मयोग      श्लोक-39

आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा |
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च || ३९ ||

अनुवाद:

इस प्रकार ज्ञानमय जीवात्मा की शुद्ध चेतना उसके काम रूपी नित्य शत्रु से ढकी रहती है जो कभी भी तुष्ट नहीं होता और अग्नि के समान जलता रहता है |

तात्पर्य

मनुस्मृति में कहा गया है कि कितना भी विषय-भोग क्यों न किया जाय काम की तृप्ति नहीं होती, जिस प्रकार कि निरन्तर ईंधन डालने से अग्नि कभी नहीं बुझती | भौतिक जगत् में समस्त कार्यकलापों का केन्द्रबिन्दु मैथुन (कामसुख) है, अतः इस जगत् को मैथुन्य-आगार या विषयी-जीवन की हथकड़ियाँ कहा गया है | एक सामान्य वन्दीगृह में अपराधियों को छड़ों के भीतर रखा जाता है इसी प्रकार जो अपराधी भगवान् के नियमों की अवज्ञा करते हैं, वे मैथुन-जीवन द्वारा बंदी बनाये जाते हैं | इन्द्रियतृप्ति के आधार पर भौतिक सभ्यता की प्रगति का अर्थ है, इस जगत् में जीवात्मा की बन्धन अवधि का बढाना | अतः यह काम अज्ञान का प्रतीक है जिसके द्वारा जीवात्मा को इस संसार में रखा जाता है | इन्द्रियतृप्ति का भोग करते समय हो सकता है कि कुछ प्रसन्नता की अनुभूति हो, किन्तु यह प्रसन्नता की अनुभूति ही इन्द्रियभोक्ता का चरम शत्रु है |

ब्रह्मज्ञान से परिवर्तन | BRAHAMAGYAN SE PARIVARTAN | CHANGE FROM THEOLOGY | Santmat Satsang | Maharshi Mehi

ब्रह्मज्ञान से परिवर्तन
'मानव में क्रांति' और 'विश्व में शांति' केवल 'ब्रह्मज्ञान' द्वारा संभव है |

अन्तरात्मा हर व्यक्ति की पवित्र होती है, दिव्य होती है | यहाँ तक कि दुष्ट से दुष्ट मनुष्य की भी | आवश्यकता केवल इस बात की है कि उसके विकार ग्रस्त मन का परिचय उसके सच्चे, विशुद्ध आत्मस्वरूप  से कराया जाये |

यह परिचय बाहरी साधनों से सम्भव नहीं है | केवल 'ब्रह्मज्ञान' की प्रदीप्त  अग्नि ही व्यक्ति के हर पहलू को प्रकाशित कर सकती है | यही नहीं, आदमी के नीचे गिरने की प्रवृति को 'ब्रह्मज्ञान' की सहायता से उर्ध्वोमुखी या ऊँचे उठने की दिशा में मोड़ा जा सकता है | इससे वह एक योग्य व्यक्ति और सच्चा नागरिक बन सकता है |

             'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त करने के बाद साधना करने से आपकी सांसारिक जिम्मेदारियां दिव्य कर्मों में बदल जाती हैं | आपके व्यक्तत्व का अंधकारमय पक्ष दूर होने लगता  है | विचारों में सकारात्मक परिवर्तन आने लगता है और नकारात्मक प्रविर्तियाँ दूर होती जाती हैं | अच्छे और सकारात्मक गुणों का प्रभाव आपके अन्दर बढने लगता है | वासनाओं,भ्रांतियों और नकारात्मकताओं में उलझा मन आत्मा में स्थित होने लगता है | वह अपने उन्नत स्वभाव यानि समत्व, संतुलन और शांति की दिशा में उत्तरोत्तर बढता जाता है | यही 'ब्रह्मज्ञान' की सुधारवादी प्रक्रिया है |
           अगर हम जीवन का यह वास्तविक तत्व यही 'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें सच्चे सद्गुरु की शरण में जाना होगा | वे आपके 'दिव्यनेत्र' को खोलने की युक्ति बताकर, आप को ब्रह्मधाम तक ले जा सकते हैं, जहाँ मुक्ति और आनन्द का साम्राज्य है | सच्चा सुख हमारे अन्दर ही विराजमान है, लेकिन उसका अनुभव हमें केवल एक युक्ति द्वारा ही हो सकता है, जो पूर्ण गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती है | इस लिए ऐसा कहना अतिशयोक्ति न होगा कि सद्गुरु  संसार और शाश्वत के बीच सेतु का काम करते हैं | वे क्षनभंगुरता से स्थायित्व की ओर ले जाते हैं | हमें चाहिए कि हम उनकी कृपा का लाभ उठाकर जीवन सफल बना लें |
।।जय गुरुदेव।।
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...