उलटा नाम जपा जग जाना । बाल्मीकि भये ब्रह्म समाना॥
यह उल्टा नाम कौन सा है ? कितने लोग कहते हैं कि वाल्मीकि जी (रत्नाकर) इतने बड़े पापी थे कि वे 'राम-राम' नहीं कह सकते थे । इस हेतु ऋषि द्वारा राम-मन्त्र प्राप्त कर भी वे 'मरा-मरा' जपते थे । इस बात को कोई भोले भक्त भले हीं मान लें, किन्तु आज के बुद्धिजीवी वा तर्कशील सज्जन इसमें विश्वास नहीं कर सकते । वे कहेंगे, कोई कितना भी बड़े-से-बड़ा पापी क्यों न हो, वह दो अक्षर 'राम' का उच्चारण क्यों नहीं कर सकता ? वस्तुत: रहस्य क्या है, आइये, हम इस पर विचार करें।
वर्णात्मक नाम का उल्टा ध्वन्यात्मक नाम होता है और सगुण नाम का उल्टा निर्गुण नाम होता है । वर्णात्मक नाम की उत्पत्ति पिण्ड में नीचे नाभि से होकर ऊपर होंठ पर जाकर उसकी समाप्ति होतीं है और ध्वन्यात्मक निर्गुण नाम की उत्पत्ति परमप्रभु परमात्मा से होकर ब्रह्माण्ड तथा उससे भी नीचे पिण्ड में व्यापक है - अर्थात् वर्णात्मक नाम की गति नीचे से ऊपर की ओर और ध्वन्यात्मक निर्गुण नाम की गति ऊपर से नीचे की ओर है । इस तरह वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक नाम एक-दूसरे के उल्टे हैं । परमात्मा ने जो सृष्टि की, उसका उपादान कारण उन्होंने निर्गुण ध्वन्यात्मक ध्वनि वा निर्गुण रामनाम को हीं बनाया । इसी 'उल्टा नाम' अर्थात् ध्वन्यात्मक निर्गुण रामनाम का भजन कर रत्नाकर डाकू, वाल्मीकि ऋषि हुए थे, मात्र वर्णात्मक 'रामनाम' का उल्टा 'मरा-मरा' जप कर नहीं । आज भी जो कोई ध्वन्यात्मक निर्गुण रामनाम का भजन (ध्यान) करेंगे, तो वे शुद्ध होकर ब्रह्मवत् हो जाएंगे| -महर्षि संतसेवी परमहंस
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