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बुधवार, 25 जुलाई 2018

रामकृष्ण ते को बड़ों, तिनहूं भी गुरु कीन | GURU | Ramkrishna | Vivekanand | 600 का नकली नोट क्यों नहीं आता, क्योंकि 600 का असली नोट ही नहीं बना |

रामकृष्ण ते को बड़ों, तिनहूँ भी गुरु कीन |
यह परमात्मा द्वारा निर्मित एक अटल नियम है | जिसे हम और आप चाह कर भी नहीं उलट सकते | ठीक वैसे ही जैसे किसी को अपनी नेत्रहीनता का उपचार कराना है, तो नेत्र चिकित्सक की ही पनाह लेनी होगी | यह नितांत अटूट नियम है | इतना अटूट कि अगर कल किसी नेत्र चिकित्सक को अपनी नेत्रहीनता के उपचार की जरूरत पड़े, तो वह भी यह उपचार स्वयं करने में असमर्थ है | उसे भी किसी अन्य नेत्र चिकित्सक की टेक लेनी ही पड़ेगी | यही कारण था सज्जनों, कि परम प्रभु श्री राम ने भी इस नियम को रजामंदी दी | गुरु वशिष्ठ के आश्रित हुए | द्वापर युगीन जगदगुरु श्री कृषण ने भी इन्ही पदचिन्हों का अनुसरण किया | वो स्वयं ऋषि दुर्वासा की शरणागत हुए -

रामकृष्ण ते को बड़ों, तिनहूँ भी गुरु कीन |

तीन लोक के नायका गुरु आगे आधीन ||

इस संदर्भ में कुछ लोग अक्सर एक प्रश्न उठा देते हैं | वह यह कि फिर मीरा, नामदेव, धन्ना आदि भक्तों ने बिना गुरु के प्रभु को कैसे पा लिया था? मीरा श्री कृषण से बातें किया करती थी | नामदेव ने 72 वार विट्ठल का  दर्शन किया था | धन्ना ने तो पत्थर तक में से भगवान को प्रकट कर लिया था | इनके पास तो कोई गुरु नहीं था | पर जो लोग ऐसा कहते हैं उनका ज्ञान अधूरा है | नि: सन्देह इन भक्तों के प्रेम व भावना के वशीभूत होकर भगवान इनके समक्ष प्रकट हो जाया करते थे | वे प्रभु के तत्त्वरूप का साक्षात्कार नहीं कर पाते थे | पर इससे इनका पूर्ण कल्याण नहीं हो पाया था | इसलिए बाद में इन सब ने भी पूर्ण गुरू की शरण ग्रहण की थी | इतिहास बताता है कि मीरा ने गुरु रविदास जी से, नामदेव ने विशोबा खेचर से व धन्ना ने स्वामी रामानंद जी से ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया था |
बस समझ लो! सृष्टि के आदिकाल से वर्तमान तक जिसने भी ईश्वर को पाया, गुरु के सान्निध्य में ही पाया | नरेंद्र - रामकृष्ण, दयानंद - विरजानंद, जनक - अष्टावक्र, एकनाथ - जनादर्न, प्लोटो - सुकरात आदि जोड़े, इस बात को सिद्ध करते हैं | अब जब इन सभी ने इस हिदायत को कान दिए थे, बंधुओं, हम कैसे अनसुना कर सकते हैं? कैसे इस अटल नियम से हटकर अपना अलग राग आलाप सकते हैं?
हो सकता है, इन दलीलों को सुनकर अब आपका दिल कुछ मोम हुआ हो | गुरु शरणागति का नेक इरादा आपके मन - अम्बर पर कौंधा हो | मगर 99 प्रतिशत सम्भावना है कि इस इरादे को झट ग्रहण लग जायेगा | आपका यह नवजात हौंसला पस्त हो जाएगा | आप कहेंगे, दलीलें नि:सन्देह पुख्ता हैं | मगर इनकी तामील में बड़ी भारी समस्या है | हम जैसे ही इनसे गदगद होकर कदम आगे बढ़ाते हैं, हमारे मन के परदे पर अख़बारों की कुछ सुर्खियाँ उमड़ आती हैं | चलचित्रों के कुछ दृश्य घूम जातें हैं | इनमें उन सब स्कैंडलों या काण्डों की झलकियाँ हैं, जिनके नायक चोर, डाकू, ठग या लुटेरे नहीं, बल्कि समाज के नामी-गिरामी धर्मगुरु हैं | ये अनैतिकता और चरित्रहीनता के ज्वलंत उदाहरण बने दीखते हैं।

बिना दर्द भी आह भरने वाले बहुत मिलेंगे,
धर्म ने नाम पर गुनाह करने वाले बहुत मिलेंगे,
किसे फुर्सत है भटके हुए को राह दिखाने की,
विश्वास देकर गुमराह करने वाले बहुत मिलेंगे |
अब बताए, यहाँ कदम - कदम पर ऐसे रहबर हैं, वहां मुसाफिरों को किस पर एतबार आये? मैं आप की बात से सहमत हूँ , मगर बाजार में 500 का नकली नोट आता है, क्यों कि 500 का असली नोट है, 600 का नकली नोट क्यों नहीं आता, क्योंकि 600 का असली नोट ही नहीं बना | इस लिए अगर समाज में नकली धर्म गुरुओं की भरमार हैं, हमें उन की पहचान धार्मिक ग्रंथों के आधार पे करनी चाहिए | भगवा वस्त्र कोई संत की पहचान नहीं है, इस वस्त्र में तो रावण भी आया था और माता सीता को उठाकर ले गया था | आप किसी का भगवा वस्त्र देखकर उस को गुरु मत धारण कर लेना, वो खुद तो नर्क में जायेगा आप को भी ले डूबेगा | पूर्ण संत की पहचान उस का ज्ञान है, सभी धार्मिक ग्रन्थ इस बात का प्रमाण देते हैं कि जब भी संसार पे अधर्म बढ़ जाता है, जब उलटी बाढ़ ही खेत को खाने लग जाती है | जब धर्म गुरू ही समाज को लूटने लग जाते हैं, तब वो शक्ति शारीर रूप में इस धरा पे आती है और समाज का मार्ग दर्शन करती है | जो संत हमें हमारे शरीर में ही परमात्म दर्शन का सही मार्ग बता दे, वही पूर्ण सतगुरु है | इस लिए हमें ऐसे पूर्ण संत की खोज करनी चाहिए, तभी हमारे जीवन का लक्ष्य पूर्ण हो सकता है |
जय गुरू महाराज
Posted by S.K.Mehta, Gurugram
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