यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 19 जुलाई 2018

तब आप पर ईश्वर की कृपा हो जाती है | Tab aap par Eshwar ki kripa ho jati hai | भक्ति और आराधना का तात्पर्य ये कदापि नहीं है कि हम हाथ में माला लिए रहें | Santmat-Satsang

तब आप पर ईश्वर की कृपा हो जाती है!
भक्ति और आराधना का  तात्पर्य ये कदापि नहीं है कि हम हाथ में माला लिए रहें। भगवान की प्रार्थना, उपासना, स्तुति का मतलब भी इतना ही नहीं है कि हम केवल अपने लिए और अपनों की सलामती के लिए ही कामना करते रहें, भगवान के नाम की माला हाथ में थामे हुए अगर केवल अपने विषय में, मालामाल होने की प्रार्थना करते रहें तो यह अनुचित हो जाएगा।

इससे मनुष्य आध्यात्मिक सम्पत्ति से कंगाल हो जाएगा। वेदों में स्पष्ट कहा गया है कि भगवान की भक्ति का सीधा सा अर्थ है उसकी आज्ञाओं का सहर्ष पालन करना और वही ईश्वरीय आज्ञाएं इंसान को सदगुरु प्रदान करते हैं।

इसलिए गुरु आज्ञा का कभी उलंघन न करें, सत्पुरुषों की न स्वयं निन्दा करें और न किसी के द्वारा किए जाने पर श्रवण करें, भगवान के अनेक नामों और स्वरूपों पर कभी भेद न करें।

जैसे शिव और विष्णु, राम और कृष्ण आदि उनमें कोई भेदभाव की दृष्टि न रखें, वैदिक विचारों की भी निन्दा अनुचित है, शास्त्रों का सम्मान करें और गुरु ज्ञानी जनों के प्रति अगाध श्रद्घा बनाए रखें। प्रेम भाव बनाए रखने से जीवन जगमगा उठता है।

ब्रह्मज्ञानी सदगुरु के द्वारा प्रदत्त सद्ज्ञान के प्रचार-प्रसार में, उनके द्वारा संचालित सेवा के महान कार्यों में सहयोगी बनकर जो व्यक्ति खड़ा हो जाता है, धर्म के प्रति जो कष्ट सहकर भी वफादारी निभाता है, उसके पुण्य के प्रताप से उसकी आने वाली सात पीढि़यां भवसागर से पार हो जाती हैं और वह भी तर जाता है।

इसलिए धर्म के पुण्य कार्यों में भागीदार बनना, सहयोग और सेवा प्रदान करना अपने जीवन का अंग बनाएं। गुरुचरणों में शीष नवाने वाले लोग, गुरु को मानने वाले लोग तो दुनिया में बहुत मिल जाएंगे। किंतु गुरु की आज्ञा का पालन करने वाले तो विरले ही होते हैं।

पर जो होते हैं उनके हृदय में स्वयं गुरु विराजमान हो जाते हैं, उन्हें ईश्वरीय असीम शक्तियों का अहसास होने लगता है, वे सुख-दुख, मान-अपमान, हानि-लाभ, जय- पराजय, यहां तक कि गुरुकार्यों की सम्पूर्णता के लिए अपना सर्वस्व लगाने से भी पीछे नहीं हटते। क्योंकि उन्हें गुरु का आदेश ईश्वर का संदेश प्रतीत होने लगता है।

गुरु भक्त आरूणी
ऐसा ही एक शिष्य था जिसे गुरु का आदेश ईश्वर का आदेश लगता था। इस शिष्य का नाम था आरुणि। एक बार गुरु ने आरूणी को आदेश दिया कि खेत में पानी लगाना है। पानी का बहाव तेज था, जिससे खेत की मेंड़ टूट गई। आरुणि ने भरसक प्रयत्न किया पानी रोकने का।

लेकिन जैसे ही वह फावड़े से खोदकर मिट्टी लगाता, वैसे ही पानी की तीव्र धरा उसे अपने साथ बहा ले जाती। आरुणि के लिए गुरु की आज्ञा सर्वोपरि थी, उसके महत्व को वह भलीभांति जानता था। पानी और मिट्टी के कीचड़ में वह स्वयं मेड़ बनकर लेट गया और लेटा ही रहा। सुबह से शाम, शाम से रात्रि और भोर होने लगी।

गुरु ने अपने अन्य शिष्यों से कहा आरुणि कहां है? सभी मौन थे, गुरु ने कहा वह तो खेत में पानी लगाने गया था। क्या वहां से लौटकर अभी तक नहीं आया। बिना कुछ कहे सबने जानकारी न होने की असमर्थता जताई। गुरु ने आदेश दिया चलो, मेरे साथ आरुणि अब तक खेत में क्या कर रहा है? और जाकर देखते हैं।

वह नशारा अद्भुत था, भोर का समय और गुरु स्वयं चलकर आरुणि की खोज कर रहे हैं। जाकर देखा आरुणि मिट्टी में धंसा हुआ है और अपनी देह से पानी के प्रवाह को रोक रहा है। मुंह में भी मिट्टी, आंखों में भी मिट्टी, सर्दी से शरीर सुन्न हो गया।

किंतु गुरु-आज्ञा की पालना के सामने ये शारीरिक, मानसिक वेदना क्या महत्व रखती हैं? कीचड़ में सने हुए आरुणि को आज उनके गुरु ने अपने सीने से लगा लिया और सिर पर हाथ रखकर कहने लगे। आरुणि! मेरे प्यारे! तुम ध्न्य हो, और तुम्हारी निष्ठा, तुम्हारी श्रद्घा, तुम्हारा प्रेम, तुम्हारा समर्पण भाव, तुम्हारी सेवा, तुम्हारी आज्ञा पालना केवल मैं नहीं ईश्वर भी देख रहे हैं, तुम्हें अवश्य ही इसका अभीष्ट फल प्राप्त होगा।

आरुणि की आंखों में आंसू हैं, पर गुरु उन प्रेम भाव में बहने वाले मोतियों को अपने हाथों में समेट रहे हैं और आरुणि के उपर हृदय से आशीर्वाद का अमृत बरसा रहे हैं। जो शिष्य गुरु के आदेश का प्राणपन से पालन करता है, प्रतिकूल स्थिति में भी विपदाओं की परवाह किए बिना, संकल्पित होकर सेवा कार्यों में लगा रहता है, उसके उपर ऐसे ही गुरु कृपा और प्रभु की दया बनी रहती है। ऐसे अनोखे शिष्य के लिए तो गुरु स्वयं चलकर उसके पास पहुंच जाते हैं। 
।। जय गुरु महाराज ।।
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

धन्यवाद!

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई | महर्षि मेँहीँ बोध-कथाएँ | अच्छे संग से बुरे लोग भी अच्छे होते हैं ओर बुरे संग से अच्छे लोग भी बुरे हो जाते हैं | Maharshi Mehi | Santmat Satsang

महर्षि मेँहीँ की बोध-कथाएँ! सठ सुधरहिं सतसंगति पाई हमारा समाज अच्छा हो, राजनीति अच्छी हो और सदाचार अच्छा हो – इसके लिए अध्यात्म ज्ञान चाहिए।...