!! एक ठक्कर कालहूँ से लीजै!!
श्री नंदकुमार तुलसी जी के मुख से ―
७-अक्टूबर शुक्रवार को दोपहर के समय पूर्ण उदारता के अवतार, पूर्ण करुणा स्नेह तथा मंगल प्रदान करने वाले श्री गुरुदेव जी को श्रीमती शीला चमड़िया के निवास स्थान पर अपने कमरे में बैठे हुए थे। कि अचानक पूज्य गुरुदेव लेखक को फरमाने लगे कि,यहां से परसों 9 अक्टूबर को हमारी जो यात्रा पंजाब के लिए होने वाली है । उस दिन तो रविवार है और पंजाब पश्चिम की ओर पड़ता है इसलिए उस ओर यात्रा उस दिन नहीं बनती है । इस पर श्री संतसेवी बाबा ने नर्मता से कहा कि पंजाब जाने वाले हम सब लोगों की संख्या बहुत है और 9 अक्टूबर की बताअनुकूलित रेल गाड़ी में जगह सुरक्षित हो चुकी है उसको इस समय रद्द करवा कर फिर किसी दूसरे दिन के लिए सुरक्षित करवाने में बड़ी कठिनाई और असुविधा होगी। जो सीटें इस रविवार वाली गाड़ी में सुरक्षित करवाई गई है । बड़ी मुश्किल से मिली है । यह सुनकर श्री सदगुरुदेव महाराज एक 2 मिनट तक चुप रहे फिर गंभीर हो गए, और उसे गंभीरता में कहने लगे कि अच्छा तब । *जो स्वर चले ताहि पग आगे दीजै, एक ठक्कर कालों से लीजै।* इतना कहकर श्री गुरुदेव विश्राम करने के लिए लेट गए इन शब्दों का अर्थ व रहस्य इशारा हम लोगों की समझ में नहीं आया सिर्फ इतना जान पड़ा कि कुछ अशुभ सा होने वाला है । श्री संतसेवी जी महाराज ने भी यही अनुभव किया, परंतु उन्होंने गुरु-चरणों में पूर्ण विश्वास जताते हुए यह कहा कि श्री गुरु महाराज तो साथ ही हैं । इसलिए भय कैसा, मुझे भी उनके इन शब्दों से ढाढस हुआ। हिम्मत भी आई। रविवार 9 अक्टूबर के सुबह 10:30 बजे डीलक्स गाड़ी हावड़ा स्टेशन से अमृतसर के लिए खुली, उसमें श्री गुरु महाराज अपने भक्तों समेत पंजाब यात्रा के लिए चले, गाड़ी अपनी रफ्तार में चलती रही, भोजनोपरांत रात्रि के लगभग 10:30 बजे श्री सदगुरु महाराज रात्रि शयन के लिए लेट गए और बाकी को भी उन्होंने आदेश दिया कि आप लोग भी सो जाएं । इस समय श्री सदगुरु महाराज बहुत गंभीर लग रहे थे। परंतु उनके मुखारविंद पर किसी भी प्रकार की चिंता का कोई भी चिन्ह नजर नहीं आ रहा था । इसलिए हम सब श्री सद्गुरु के चरणों में हर रात्रि की नाई निश्चित हो गए पूरी गहरी नींद में हम थे । कि एक बहुत जोर का खौफनाक धमाका हुआ और दिल को हिला देने वाली रेल की पटरियों की आवाजें हुई । उस समय रात अंधेरी थी । गाड़ी बहुत जोर से धक्के दे-देकर खड़ी हो रही थी गाड़ी के डब्बे अंधकार से भर गए और रुक गए हम सब लोग घबरा गए और भय से जय गुरु- जय गुरु का जाप करते हुए उठ बैठे अपने आप को अंधेरे में पाया परंतु, तुरंत ही ज्ञात हुआ कि पूज्य श्री सदगुरु महाराज तो हमारे साथ ही हैं । इसलिए जल्द ही संभल गए और पहले सबकी नजर श्री गुरु महाराज की सीट की ओर गई अंधेरे में कुछ नजर नहीं आ रहा था टॉर्च बतिया जलाई गई तो देखा कि सभी सुरक्षित है। किसी को कुछ नहीं हुआ है । मात्र पूज्य श्री गुरुदेव अपनी सीट से नीचे सोए हुए श्री भागरथ बाबा तथा श्री राम लगन बाबा के सिर पर आ गिरे थे। हम लोगों ने श्री सदगुरु महाराज को उठाया और सीट पर बिठा दिया पता चला कि नैनी स्टेशन के यार्ड में खड़ी एक मालगाड़ी से यह डीलक्स गाड़ी टकरा गई है। बहुत से लोग मारे गए बहुत से जख्मी हुए, पीड़ा से कढ़ाह रहे थे। इंजन का तो पता ही नहीं चलता है कि कहां गया और इंजन के पीछे के डिब्बे टक्कर के धक्के से एक दूसरे के ऊपर बड़ी ऊंचाई तक चढ़ गए हैं। कुछ डिब्बे गिर पड़े हैं । परंतु हम लोग के डिब्बे उन सब गिरे हुए चकनाचूर हुए डिब्बे के पीछे सुरक्षित है । पटरी के ऊपर ही है यह सुनकर हम लोगों के हृदय में किस-किस तरह का विचार आए और गए इसका वर्णन मैं क्या करूं आप सब ऐसी परिस्थिति को स्वयं ही समझ सकते हैं या सदगुरु महाराज की महान अनुकंपा थी कि अपने ऊपर सारी आपदाओं को लेकर हम लोगों की रक्षा कि, ऐसे संकट हारक सतगुरु महाराज के चरणों में बारंबार नमन जयगुरु महाराज
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