यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 10 जुलाई 2018

परमात्मा को केवल माने नहीं, जाने भी | Parmatma ko kewal jane nahi mane bhi | Satntmat-Satsang |

परमात्मा को केवल माने नहीं, जाने भी!

कहै कबीर जब जान्या, जब  जान्या  तौ  मन मान्या।
मनमाने लोग नही पतीजै, नही पतीजै तौ  हम का कीजै।।

प्र्स्तुत पद संत कबीरदास जी द्वारा रचित है। इस में कबीरदास जी कह्ते है कि - 'जब मैने परमात्मा को अपने भीतर देखा, जाना, तभी मेरा मन परमात्मा को मानने लगा और यदि मनमुख लोग इस बात को नहीं स्वीकारते, तो मैं क्या करूँ ? न करें स्वीकार !
यह बात अगर आज भी किसी मनुष्य को समझाई जाए, तो वह स्वीकार नहीं करता। लोगों  ने परमात्मा को केवल मानने तक ही सीमित कर दिया है। कोई भी उसे जानने का कोशिश नहीं करता। जब बात ईश्वर दर्शन के विषय में आती है, तो लोगो को हजम नही होती। वे अपने व्यर्थ तर्को द्वारा इस तथ्य को झूठा ठहराने की कोशिश करते है। जब कि महापुरषों ने कभी ऐसा नही किया। उन्होने परमात्मा को केवल माना नहीं, अपितु जाना भी। आप जरा क्ल्पना करे कि  एक बेटा अपने पिता को जाकर कहे के,'पिता जी, मै आप को अपना पिता मानता हूँ। तो ऐसे मे वह पिता क्या सोचेगा ? यही न कि, 'अरे मूर्ख ! अभी तू मुझे  केवल अपना पिता मान ही रहा है ! तुने अभी तक जाना नही कि मै तेरा पिता हूँ । कितनी हस्यास्पद बात है न यह !
पर जरा ठहरे ! क्या यह ह्स्यस्पद बात हम लोगो पर लागू नही होती? हम भी तो आज अपने परम पिता परमात्मा को 'मानने' का ही दावा करते है। उसे 'जान ने' का दावा हम में से कितने लोग करते है ? यह दावा तो केवल और केवल एक पूर्ण संत ही कर सकते है या फिर उनके शिष्य जिन्हें उन्होने दीक्षा प्रदान की है। 'दीक्षा' का अर्थ ही होता है - 'दिखाना' अर्थात 'जानना' ।
स्वामी विवेकानन्द जी का इस बारे में स्पष्ट कथन है - जिन्हे अत्मा की अनुभूति या ईश्वर - साक्षात्कार न हुआ हो, उन्हें यह कहने का क्या अधिकार है कि अत्मा या ईश्वर है ? यदि ईश्वर है, तो उसका साक्षात्कार करना होगा। यदि आत्मा नामक कोई चीज है, तो उसकी उपलब्धि करनी होगी। अन्था विश्वास ना करना ही भला। ढोंगी होने से स्पष्टवादी नास्तिक होना अच्छा है।' पर आज हम फिर भी लकीर के फकीर बने हुए हैं। सत्य का सन्देश मिलने पर भी अपनॊ मन की बनाई हुई चार दीवारी से ही घिरे रहना पसन्द करते है । बड़े गर्व से कह्ते है - 'जी, मैं इतने देवी- देवताओ को मानता हूँ। इतने अवतारो को मानता हूँ ....बस मानना ही मानना है । देखा नही है । भीतर कुछ साक्षात्कार नहीं हुआ। ऐसे खाली मानने पर टिका हुआ विश्वास पल - भर मे बिखर जाता है। एक बार की घट्ना है -
एक संत महापुरूष आसन पर बैठे हुए थे । एक आदमी उनके पास आया । आकर प्रणाम किया। बड़ा खुश ! संत ने पूछा, क्या हुआ भाई, आप बड़े खुश लग रहे हो? कह्ता है, महाराज ! मै आस्तिक बन गया। संत जी बड़े हैरान हुए - आस्तिक बन गया ! इस से पहले संत  कुछ कह्ते, वह व्यक्ति आपनी कहानी सुनाने लगा । कह्ता है - बहुत समय से मेरे बेटे की नौकरी नहीं लग रही थी । मै एक दिन हनुमान जी के मन्दिर मे गया । वहां मैने हनुमान जी को अल्टीमेटम दे दिया कि अगर पन्द्रह दिन के अन्दर अन्दर मेरे बेटे की नौकरी लग गई, तो मै तुम्हें मानना शुरू कर दूंगा। आस्तिक बन जाऊगा। तुम्हारे मन्दिर में भी आया करूंगा। प्रभु ने मेरी सुन ली। पन्द्रह दिन के अन्दर ही मेरे बेटे की नौकरी लग गई । इस लिए मै आस्तिक बन गया हूँ ! यह बात सुनकर, संत जी ने उस व्यक्ति को समझाते हुए कहा, आप की आस्तिकता की चादर बहुत पतली है । आप के विश्वास के पीछे स्वार्थ की बैसाखियां लगी हुई है । ऐसा विश्वास कभी भी लड़खड़ा कर गिर सकता है । इस लिए इस आधार पर परमात्मा को मानना ठीक नही। मेरी मानो तो आगे से कभी परमात्मा को अल्टीमेटम मत देना । पर यह तो स्वभाव सिद्ध है कि मनुष्य जिस काम मे एक बार सफल हो जाए, तो उसे दोबारा जरूर करता है । ऐसा ही हुआ। कुछ समय के बाद उस आदमी की पत्नी बीमार हो गई । उस ने सोचा कि क्यो ना फिर वही फार्मूला लगाया जाए । भगवान को चेतावानी दी जाए । जाकर फिर हनुमान जी को अल्टीमेटम दे दिया - हनुमान जी ! अगर सात दिनो के अन्दर मेरी पत्नी ठीक नहीं हुई, तो मै आप को मानना छोड दूंगा। फिर से नास्तिक बन जाऊँगा। होता तो वही है जो विधाता ने लिखा हुआ था । पाचवें दिन ही  उस की पत्नी मर गई । वह व्यक्ति फिर से नास्तिक बन गया । कहने का मतलब, उस का परमात्मा को मानना या ना मानना बस एक खेल था । अ:त जरूरत है कि हम तर्को वितर्को व अपनी धारणाओं के आधार पर परमात्मा को सिर्फ़ मानने तक ही सीमित न रहे । बल्कि एक पूर्ण गुरू की शरणागत होकर उस का दर्शन भी करे । उसे तत्व से जाने। तभी हमारा उस पर विश्वास अडिग होगा।
।। जय गुरु ।।
Posted by S.K.Mehta, Gurugram


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

धन्यवाद!

सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...