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बुधवार, 29 अगस्त 2018

लोगों मे यह विश्वास हैं कि बहुत विद्या पढ़ने से लोग भले बनते हैं। -महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज | Maharshi Mehi Paramhansji Maharaj | Santmat-Satsang

लोगों मे यह विश्वास हैं कि बहुत विद्या पढ़ने से लोग भले बनते हैं। परन्तुु बहुत विद्या पढ़ने पर भी उनकी विद्या अविद्या बन जाती है। काम क्रोधादि विकार जबतक उनके मन मे हैं, तबतक विद्या अविद्या बनी रहती है। जिस विद्या से दुर्गुणों से बचा जाय, वही विद्या असली विद्या है। विद्या धर्म की रक्षा के वास्ते है। दुनियाँ में केवल कमाकर खाने के लिए विद्या नहीं है। अपने देश मे साधु संत, महात्मा बहुत हुए हैं। आचरण पवित्र होने के कारण ही वे लोग महान हुए हैं। पढ़े लोग भी अच्छे होते है। परंतु आचरण की पवित्रता केवल विद्या पढ़ने से ही नहीं होती है। इस युग की नमूना किसी से छिपी नहीं है। असली विद्या यह है कि साधु संतो के पास जाकर उनके सत्संग से अध्यात्म विद्या को ग्रहण करना। केवल वर्तमान शरीर के लिए प्रबंध करो, सो नहीं। इसके आगे के जीवन का कोई प्रबंध नहीं किया तो कहाँ चले जाओगे, तुमको मालूम नहीं है। दुःख में जाना कोई पसंद नहीं करते। यदि पहले इसका ख्याल नहीं किया कि शरीर छुटने के बाद भी जीवन रहता है, जिसे सुखी बनाना है।

एक शरीर छुटने के बाद का बहुत लंबा जीवन है जीवात्मा का। यह ज्ञान साधु सन्तों के सत्संग में सिखलाया जाता है बतलाया जाता है।  यदि आगे के जीवन का प्रबंध नहीं करते हो, तो अपनी बहुत हानि करते हो।

आगे का जो लंबा जीवन है, उसके शुभ के लिए प्रबंध यह है कि ईश्वर का भजन करो। ईश्वर के भजन से तुमको शरीर छुटने के बाद भी सुख होगा। विद्या बहुत पढ़ोगे, लेकिन ईश्वर का भजन  नहीं करोगे तो, उतना लाभ नहीं होगा। -महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज

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