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शनिवार, 22 सितंबर 2018

सद्कर्मों से लबालब हो जीवन की किताब SADKARMO SE LABLAB HO JEEVAN KI KITAB | SANTMAT-SATSANG

सद्कर्मों से लबालब हो जीवन की किताब;
मनुष्य अपने शरीर से यदि केवल भोग-विलास करे, इसे मौज-मस्ती में खर्च कर दे तो अच्छी बात नहीं है। यह सब जानवर भी करते हैं, पर मनुष्य को भगवान ने बुद्धि और विवेक देकर कुछ विशेष अधिकार दे दिए, जिनसे उन्हें निजी जीवन में लाभ उठाने के बाद परमात्मा के बनाए हुए संसार की सेवा करनी है।

इसीलिए मनुष्यों को अपने जीवन के आरंभ और अंत में मूल्यांकन करते रहना चाहिए। हमारा जीवन कोरे कागज जैसा शुरू हुआ और जब समापन होगा तो इसके सारे पृष्ठ लगभग चितेरे जा चुके होंगे। इसलिए हर रात सोते समय, सप्ताहांत में, महीने के आखिरी में और साल खत्म होने पर इस बात का चिंतन जरूर किया जाए कि अंत के वक्त हम क्या होंगे।

बीते समय में हमने क्या कुछ ऐसा श्रेष्ठ किया, जिसके लिए परमात्मा ने हमें मनुष्य बनाया है। ऋषियों ने कहा है कि हमारे साथ हमारा भगवान भी जन्म लेता है। काफी समय तक वह हमारे साथ रहता भी है। यूं कहें कि पूरा बचपन वह हमारा साथ नहीं छोड़ता। फिर जैसे-जैसे हम दुगरुणों को आमंत्रित करते हैं, उसकी विदाई होने लगती है।

याद रखिए हमारे अंत के बाद उस प्रारंभ वाले परमात्मा से मिलना जरूर होगा और उस दिन हमें उसे जवाब भी देना होगा। उसका सवाल यह होगा कि जो धरोहर मैंने तुम्हें दी थी, उसका सदुपयोग किया या नहीं? उस दिन हमारे जीवन की किताब सद्कर्मो से इतनी लबालब होनी चाहिए कि ईश्वर को अपनी कृति पर संतोष हो सके।
।। जय गुरु ।।
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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