जो चाहोगे सो पाओगे!
☘एक साधु था, वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करता
था, ”जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।”
बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी
उसकी बात पर ध्यान नही देता था और
सब उसे एक पागल आदमी समझते थे।
एक दिन एक युवक वहाँ से गुजरा और उसने उस साधु
की आवाज सुनी, “जो चाहोगे सो पाओगे”,
जो चाहोगे सो पाओगे।”, और आवाज सुनते ही उसके
पास चला गया।
उसने साधु से पूछा “महाराज आप बोल रहे थे कि ‘जो चाहोगे
सो पाओगे’ तो क्या आप मुझको वो दे सकते हो जो मै जो चाहता
हूँ? ”साधु उसकी बात को सुनकर बोला – “हाँ बेटा तुम
जो कुछ भी चाहता है मै उसे जरुर दुँगा, बस तुम्हें
मेरी बात माननी होगी। लेकिन
पहले ये तो बताओ कि तुम्हे आखिर चाहिये क्या?”
युवक बोला” मेरी एक ही ख्वाहिश
है मै हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनना
चाहता हूँ। “
साधू बोला, ”कोई बात नही मै तुम्हे एक
हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम
जितने भी हीरे मोती बनाना
चाहोगे बना पाओगे!” और ऐसा कहते हुए साधु ने अपना हाथ आदमी
की हथेली पर रखते हुए कहा, ”पुत्र,
मैं तुम्हे दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूं,
लोग इसे ‘समय’ कहते हैं, इसे तेजी से
अपनी मुट्ठी में पकड़ लो और इसे
कभी मत गंवाना, तुम इससे जितने चाहो उतने
हीरे बना सकते हो।
साधु उसका दूसरी हथेली, पकड़ते हुए
बोला, ”पुत्र, इसे पकड़ो, यह दुनिया का सबसे
कीमती मोती है, लोग इसे
“धैर्य” कहते हैं, जब कभी समय देने के बावजूद
परिणाम ना मिलें तो इस कीमती
मोती को धारण कर लेना, याद रखना जिसके पास यह
मोती है, वह दुनिया में कुछ भी प्राप्त कर
सकता है।
युवक गम्भीरता से साधु की बातों पर
विचार करता है और निश्चय करता है कि आज से वह
कभी अपना समय बर्वाद नहीं करेगा और
हमेशा धैर्य से काम लेगा। और ऐसा सोचकर वह हीरों
के एक बहुत बड़े व्यापारी के यहाँ काम शुरू करता है
और अपने मेहनत और ईमानदारी के बल पर एक दिन
खुद भी हीरों का बहुत बड़ा
व्यापारी बनता है
- मित्रों ‘समय’ और ‘धैर्य’ वह दो हीरे-
मोती हैं जिनके बल पर हम बड़े से बड़ा लक्ष्य
प्राप्त कर सकते हैं। अतः ज़रूरी है कि हम अपने
कीमती समय को बर्वाद ना करें और
अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए धैर्य से काम लें।
जय गुरु महाराज
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम


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