गुस्से पर काबू
क्रोधित होने वाला हर कोई यह तर्क देता है कि उसका क्रोध न्यायसंगत है। उसने गुस्सा करके कोई गलत नहीं किया। हम सभी अपने जीवन में कभी न कभी गुस्सा करते हैं और जब भी पीछे मुड़कर देखते हैं तो समझ जाते हैं कि उस वक्त हमारी प्रतिक्रिया बहुत अधिक थी, साथ ही न्यायसंगत भी नहीं थी। उस क्रोध पर काबू पाया जा सकता था। क्रोधित होना एक आम क्रिया है, लेकिन समस्या तब खड़ी होती है, जब इसका ठीक से प्रबंधन नहीं किया जाता।
लोग चेतन और अवचेतन दोनों ही तरीकों से क्रोध की भावनाओं का प्रबंधन करते हैं। पहला तरीका है क्रोध का इजहार कर देना, दूसरा है इसे दबा देना, जबकि तीसरा तरीका है क्रोध की भावनाएँ ही उत्पन्न न होने देना अर्थात शांत रहना। अपने क्रोध को बिना आक्रामक हुए निकाल बाहर करना सबसे अच्छा और कारगर तरीका माना गया है। इसके लिए जरूरी है कि हम यह पहचानें कि हम खुद क्या चाहते हैं।
जीवन में हर चीज हमारे हिसाब से नहीं ढाली जा सकती। दूसरों के प्रति आदर भाव रखते हुए भी आप उनसे अपनी बात मनवा सकते हैं। दूसरा तरीका है गुस्से को दबा देने का तथा उसे किसी और चैनल से निकालने का। ऐसा तभी हो सकता है जब क्रोध की स्थिति बने तब आप किसी तरह उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने से बचें।
।। जय गुरु ।।
शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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