सत्संग
अक्सर सत्संग का अर्थ लोग प्रवचन सुनना समझते हैं। लेकिन सत्संग का अर्थ प्रवचन सुनना ही नहीं है। सत्संग का अर्थ हैं अच्छे लोगों से मिलना, सत्य का संग करना, अच्छी पुस्तकेें पढ़ना, अच्छी बातें सोचना आदि।
किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने का यह प्रवेश द्वार है।
सत्संगत्वे निस्संगत्वं निस्संगत्वे निर्मोहत्वम।
निर्मोहत्वे निश्चलतत्वं निश्चलतत्वे जीवन्मुक्ति:।।
अर्थ :- सत्संग से निस्संगता पैदा होती है और निस्संगता से अमोह ! अमोह से चित्त निश्चल होता है और निश्चल चित्त से जीवन मुक्ति उपलब्ध होती है।
इस श्लोक में बताई गई बात अध्यात्म का एक प्रमुख बिंदु है।
शास्त्रों में न सिर्फ समस्या बताई गई है, बल्कि उसे कैसे सुधारा जाए, यह भी बताया गया है। जिससे व्यक्ति का उत्थान होगा वो पहली चीज है सत्संग।
हमारा मन आग की तरह है, आग में रबर डालो तो चारों तरफ बदबू फैलती है। आग में चंदन डालो तो चारों तरफ खुशबू फैलती है। तो सोचिए की मन रूपी आग में सुबह से शाम तक क्या पड़ रहा है?
यदि अच्छे विचार इस हवन कुंड में पड़ रहे हैं तो आपके आसपास के माहौल में एक खुशी, एक आनंद बहेगा।
सत्संग मतलब है अच्छे विचार। सत्संग का मतलब सिर्फ प्रवचन सुनना नहीं है।
सत्संग का मतलब है कि आप किस तरह की किताबें पढ़ रहे हैं?
किस तरह की बातें सोच रहे हैं?
किस तरह के लोगों से मिल रहे हैं?
किस तरह का खाना खा रहे हैं?
किस तरह के कपड़े पहन रहे हैं?
आप जो भी कर रहे हैं, वे यज्ञ की आहुतियां हैं।
आपके मन और बुद्धि में आहुति पड़ रही है।
प्रश्न यह है कि वह कैसी पड़ रही है?
सत्संग से मन में निस्संगता आती है, निस्संगता से मन शांत होता है। शांत मन से ही आप ध्यान के अधिकारी बनते हैं। क्योंकि जब हमारा मन अशांत हो, चित्त निश्चल न हो, तब
हम ध्यान में नहीं बैठ सकते। ध्यान में तभी बैठ सकते हैं, जब मन शांत हो।
निश्चल तत्वे जीवन मुक्ति:।
और जब मन शांत हो तभी मुक्ति होती है। सत्संग केवल अध्यात्म में ही नहीं होना चाहिए। आप किसी भी क्षेत्र में हों, आपको सत्संग चाहिए। आप यदि किसी व्यवसाय में भी ऊपर उठना चाहते हैं, तो आपको हमेशा उस व्यवसाय से संबंधित पुस्तकें पढ़नी पड़ेंगी। नई-नई रिसर्च हुई है, उसको पढ़ना पड़ेगा। आप ऐसा नहीं सोच सकते कि बस मैंने डिग्री प्राप्त कर ली, अब उसके बाद मुझे पढ़ाई की कोई जरूरत नहीं। आप किसी भी क्षेत्र में यदि आगे बढ़ना चाहते हैं, तो आपको अपने आंख-कान खुले रखने पड़ेंगे, ध्यान में उतरना पड़ेगा। यदि किसी भी क्षेत्र मे सफलता चाहते हैं, तो संग करें उस क्षेत्र में अपने से श्रेष्ठ व्यक्तियों का, जो उस क्षेत्र में माहिर हों।
।। जय गुरु ।।
सौजन्य: *महर्षि मेँहीँ सेवा ट्रस्ट*
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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