गलती करना मानव का स्वभाव है!
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और गलतियां करना उसका स्वभाव है।
जीवन के हर मोड़ पर जाने-अनजाने गलतियां होती ही रहती है और गलती का होना एक सामन्य घटना है। लेकिन अपने द्वारा हुई गलतियों के बाद अलग-अलग व्यक्ति का अलग नजरिया होता है एक व्यक्ति अपनी गलती को सबक के रूप में लेता है और भविष्य में वैसी गलती दुबारा न हो ऐसा प्रयास करता है जबकि दूसरा अपने द्वारा की गई गलती को अपने ऊपर हावी कर लेता है और उसको लेकर एक अफ़सोस जाहिर करता है की काश! मैंने ऐसा नहीं किया होता तो मेरे साथ ऐसा नहीं होता। दिन रात बस ऐसे ही सोचता रहता है और आत्म ग्लानि से ग्रसित हो जाता है। एक अन्य व्यक्ति गलती को गलती मानने के लिए ही तैयार नहीं होता और अपने आपको हर जगह सही सिद्ध करने की कोशिश में ही लगा रहता है। इन तीनो स्थितियों में पहली स्थिति सर्वश्रेष्ठ है और भविष्य के लिए उन्नतिकारक है।क्योंकि ऐसा व्यक्ति वास्तविकता में जी रहा है। वह मानता है की गलती हर इंसान से होती है और मैं भी एक इंसान हूँ। अगर मुझसे गलती हो गई और उससे कोई बुरा परिणाम मुझे देखने को मिला तो चलो अच्छा हुआ आगे से में ऐसी गलती की पुनरावृति नहीं होने दूंगा। उसकी यह सोच उसको निरन्तर उन्नति की ओर ले जाती है और अपराधबोध से दूर रखती है। दूसरी तरह का व्यक्ति गलती के बारे में बार-बार सोचकर अपने आपको एक अपराधी के रूप में देखता रहता है, और अपनी मानसिक स्थिति को ख़राब कर लेता है। जिससे भविष्य में भी कदम-कदम पर उससे गलतियां होना जारी रहता है और यह स्थिति सदैव उसकी उन्नति को बाधित करती है। तीसरी स्थिति व्यक्ति को विवेक शून्य बना देती है और भावी जीवन में वह अपराधी बन जाता है क्योंकि उसे कुछ गलत नजर आता ही नहीं और अपने को ही सही मानने की हठधर्मिता के चलते वह सही गलत की पहचान खो देता है।इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण हमें आम जिंदगी में देखने को मिलता है और हम आये दिन इस पर चर्चा भी करते रहते हैं की देखो कैसा कलियुग आ गया है। आजकल तो जो व्यक्ति धर्म कर्म करता है और सज्जन होता है उसके जीवन में विपदाएँ आती है और पापी लोग मजे मारते हैं। बात भी सही है और ऐसा ही होता भी है। ऐसी चर्चा का आध्यात्मिक गुरु जबाब देते हैं की यह सब तो जन्म जन्मान्तरों के पुण्य पाप काखेल है जो आज मजे मार रहा है उसने पिछले जन्म में कोई पुण्य किया होगा उसका फल भोग रहा है अभी जो कर रहा है उसका आगे भुगतना पड़ेगा। और जो अभी सत्कर्म करते हुए दुखी है इसका मतलब उसके पुर्व जन्म के पाप का उदय चल रहा है। यह सब उपरोक्त वर्णित तीन प्रकार की मानसिकताओं का अलग-अलग परिणाम है की एक धार्मिक प्रवृति का व्यक्ति इसलिए ज्यादा परेशान दिखाई देता है कीवह अपने द्वारा की गई या हुई गलती को अपने ऊपर हावी कर लेता है। इसी सोच के कारण वो अपराधबोध से ग्रसित हो जाता है और बार-बार अपने से हुई गलती के लिए पश्चाताप की अग्नि में जलता रहता है और निरन्तर उसी में खोया रहकर आगे से आगे गलती करता चला जाता है और दुःखी होता रहता है। जबकि दूसरी प्रकृति का व्यक्ति गलती करता है लेकिन अपने विवेक से उस पर चिंतन करता है व भविष्य के लिए उसे सबक के रूप में लेता है जिससे वह विपरीत परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेता है और जीवन की यात्रा का आनन्द लेता है।
अब हमें अपने विशेष तर्कसंगत विवेकपूर्ण बुद्धि से सोचना है कि कौन-सी स्थिति में जीवन जीना है।
🙏🌷🌿।। जय गुरु ।।🌿🌷🙏
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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