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सोमवार, 29 जुलाई 2019

अपराध रहित होकर भगवान का भजन करें! SANTMAT SATSANG

अपराध रहित होकर भगवान् का भजन करें;

अशेषसंक्लेशशमं विधत्ते गुणानुवादश्रवणं मुरारेः ।
कुतः पुनस्तच्चरणारविन्द परागसेवारतिरात्मलब्धा ॥

                    (भा. ३/७/१४)



जितने प्रकार के क्लेश होते हैं, वे सब केवल भगवान् का गुणानुवाद श्रवण करने मात्र से शान्त हो जाते हैं । ज्यादा कुछ नहीं कर सकते तो कथा सुन लें और अगर भक्ति आ गयी तो फिर कहना ही क्या? संसार का ऐसा कोई कष्ट नहीं है जो भगवान् की भक्ति से दूर न हो जाए। कहीं भगवान के चरणों में रति हो गयी फिर तो क्या कहना? निश्चित रूप से समस्त कष्ट केवल कथा सुनने मात्र से चले जाते हैं ।

शारीरा मानसा दिव्या वैयासे ये च मानुषाः ।
भौतिकाश्च कथं क्लेशा बाधन्ते हरिसंश्रयम् ॥
                     (भा. ३/२२/३७)

शरीर की जितनी बीमारियाँ हैं, मन के रोग, दैवी-कोप, भौतिक-पंचभूतों के क्लेश, सर्दी-गर्मी या सांसारिक-प्राणियों द्वारा प्राप्त कष्ट, सर्प, सिंह आदि का भय; ये सब भगवान् के आश्रय में रहने वाले पर बाधा नहीं करते ।
लेकिन ध्यान रहे कि कथा एवं हरिनाम निरपराध हो एवं गलती से भी कभी किसी वैष्णव का अपराध ना हो, वैष्णव का अपराध तो सपने में भी नहीं सोचना चाहिए।
नहीं तो सब बेकार है।

न भजति कुमनीषिणां स इज्यां हरिरधनात्मधनप्रियो रसज्ञः।
श्रुतधनकुलकर्मणां मदैर्ये विदधति पापमकिञ्चनेषु सत्सु॥
                  (भा. ४/३१/२१)
कोई कितनी भी आराधना कर रहा है, भजन कर रहा है लेकिन अगर अकिञ्चन भक्तों का अपराध करता है तो भगवान् उसके भजन को स्वीकार नहीं करते हैं। एक छोटे-से साधक-भक्त से भी चिढ़ते हों तो आपका सारा भजन नष्ट; फिर चाहे जप-तप कुछ भी करते रहो, उससे कुछ नहीं होगा क्योंकि भगवान् निर्धनों के धन हैं, गरीबों से प्यार करते हैं।

मनुष्य भक्तों का वैष्णवों का अपराध क्यों करता है?

मद के कारण। विद्या का मद (ज्यादा पढ़ गया तो छोटे लोगों को मूर्ख समझने लगता है); धन का मद (धन-सम्पत्ति ज्यादा बढ़ गयी तो दीनों का तिरस्कार करता है); अच्छे कुल में जन्म का मद (ऊँचे कुल में जन्म हो गया तो अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है और दीन-हीनों की उपेक्षा करता है); इसी तरह से कोई अच्छा कर्म कर लिया तो उसका मद, त्याग-वैराग्य कर लिया तो उससे मद हो जाता है, सांसारिक वस्तुओं में अहंता-ममता के कारण लोग ज्यादा अपराध करते हैं ।
इसलिए अपराध रहित होकर भगवान् का भजन करें, फिर देखें चमत्कार; किसी भी तरह का संकट, क्लेश आपको बाधा नहीं पहुँचा सकेगा।
।। जय गुरु ।।
सौजन्य: *महर्षि मेँहीँ सेवा ट्रस्ट*
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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भगवान ने हमें इतनी खूबसूरत जिंदगी प्रदान की हुईं है | पर हम कभी-कभी इसकी कीमत नहीं समझते हैं और... | Khoobsurat Jindgi

भगवान ने हमें इतनी खूबसूरत जिंदगी प्रदान की हुई है !

भगवान ने हमें इतनी खूबसूरत जिंदगी प्रदान की हुई है ! पर हम कभी-कभी इसकी कीमत नहीं समझते हैं और आधी जिंदगी यूँ ही बर्बाद कर देते हैं, जब होश आता है तो बहुत देर हो चुकी होती है!

हमें हमेशा अपने साथ-साथ दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए, दुसरों के लिए कुछ करने के बाद जो सुकून और चैन जीवन में मिलता है वो  कही नहीं मिलता है! सदा अच्छे विचार के साथ दिन की शुरुआत करनी चाहिए! सब कुछ तो भगवान ने पहले से निर्धारित कर के रखा है हमें तो बस कर्म करना है! कर्म करते जाओ फल तो भगवान देगा ही, कर्म से कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए! जीवन में घबराकर परेशान नहीं होना चाहिए! सुख और दुःख तो जीवन के दो हिस्से हैं एक आएगा तो दूसरा जायेगा दोनों सिक्के के दो पहलु है कभी भी एक साथ नहीं रह सकते! अगर हमने सुख को भोगा है तो दुःख को भी झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए! एक सुखी और शांत जीवन हमें तभी मिलेगा जब हम हर पल तैयार रहेंगे जीवन को जीने के लिए, कभी भी हिम्मत हार कर जिंदगी से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए डट कर सामना करना चाहिए जीवन अपने आप खूबसूरत बन जायेगा! ।। जय गुरु ।।

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

अहंकार से ज्ञान का नाश | Ahankar se gyan ka naash | कभी किसी को नहीं सताओ | गुप्तदान महादान | मृत्यु से कोई नहीं बच पाया | Santmat Satsang

अहंकार से ज्ञान का नाश;
अहंकार से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है। अहंकार से ज्ञान का नाश हो जाता है। अहंकार होने से मनुष्य के सब काम बिगड़ जाते हैं। भगवान कण-कण में व्याप्त है। जहाँ उसे प्रेम से पुकारो वहीं प्रकट हो जाते हैं। भगवान को पाने का उपाय केवल प्रेम ही है। भगवान किसी को सुख-दुख नहीं देता। जो जीव जैसा कर्म करेगा, वैसा उसे फल मिलता है। मनुष्य को हमेशा शुभ कार्य करते रहना चाहिए।

कभी किसी को नहीं सताओ :

धर्मशास्त्रों के श्रवण, अध्ययन एवं मनन करने से मानव मात्र के मन में एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सद्भावना एवं मर्यादा का उदय होता है। हमारे धर्मग्रंथों में जीवमात्र के प्रति दुर्विचारों को पाप कहा है और जो दूसरे का हित करता है, वही सबसे बड़ा धर्म है। हमें कभी किसी को नहीं सताना चाहिए। और सर्व सुख के लिए कार्य करते रहना चाहिए।

गुप्तदान महादान :
मनुष्य को दान देने के लिए प्रचार नहीं करना चाहिए, क्योंकि दान में जो भी वस्तु दी जाए, उसको गुप्त रूप से देना चाहिए। हर मनुष्य को भक्त प्रहलाद जैसी भक्ति करना चाहिए। जीवन में किसी से कुछ भी माँगो तो छोटा बनकर ही माँगो। जब तक मनुष्य जीवन में शुभ कर्म नहीं करेगा, भगवान का स्मरण नहीं करेगा, तब तक उसे सद्‍बुद्धि नहीं मिलेगी।

मृत्यु से कोई नहीं बच पाया :

धन, मित्र, स्त्री तथा पृथ्वी के समस्त भोग आदि तो बार-बार मिलते हैं, किन्तु मनुष्य शरीर बार-बार जीव को नहीं मिलता। अतः मनुष्य को कुछ न कुछ सत्कर्म करते रहना चाहिए। मनुष्य वही है, जिसमें विवेक, संयम, दान-शीलता, शील, दया और धर्म में प्रीति हो। संसार में सर्वमान्य यदि कोई है तो वह है मृत्यु। दुनिया में जो जन्मा है, वह एक न एक दिन अवश्य मरेगा। सृष्टि के आदिकाल से लेकर आज तक मृत्यु से कोई भी नहीं बच पाया।
   ।। जय गुरू महाराज ।।
सौजन्य: *महर्षि मेँहीँ सेवा ट्रस्ट*
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

बुधवार, 17 जुलाई 2019

कर्मयोग | KARMAYOG | मनुस्मृति में कहा गया है कि कितना भी विषय-भोग क्यों न किया जाय काम की तृप्ति नहीं होती | Santmat Satsang

कर्मयोग 

अध्याय तीन : कर्मयोग      श्लोक-39

आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा |
कामरूपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च || ३९ ||

अनुवाद:

इस प्रकार ज्ञानमय जीवात्मा की शुद्ध चेतना उसके काम रूपी नित्य शत्रु से ढकी रहती है जो कभी भी तुष्ट नहीं होता और अग्नि के समान जलता रहता है |

तात्पर्य

मनुस्मृति में कहा गया है कि कितना भी विषय-भोग क्यों न किया जाय काम की तृप्ति नहीं होती, जिस प्रकार कि निरन्तर ईंधन डालने से अग्नि कभी नहीं बुझती | भौतिक जगत् में समस्त कार्यकलापों का केन्द्रबिन्दु मैथुन (कामसुख) है, अतः इस जगत् को मैथुन्य-आगार या विषयी-जीवन की हथकड़ियाँ कहा गया है | एक सामान्य वन्दीगृह में अपराधियों को छड़ों के भीतर रखा जाता है इसी प्रकार जो अपराधी भगवान् के नियमों की अवज्ञा करते हैं, वे मैथुन-जीवन द्वारा बंदी बनाये जाते हैं | इन्द्रियतृप्ति के आधार पर भौतिक सभ्यता की प्रगति का अर्थ है, इस जगत् में जीवात्मा की बन्धन अवधि का बढाना | अतः यह काम अज्ञान का प्रतीक है जिसके द्वारा जीवात्मा को इस संसार में रखा जाता है | इन्द्रियतृप्ति का भोग करते समय हो सकता है कि कुछ प्रसन्नता की अनुभूति हो, किन्तु यह प्रसन्नता की अनुभूति ही इन्द्रियभोक्ता का चरम शत्रु है |

ब्रह्मज्ञान से परिवर्तन | BRAHAMAGYAN SE PARIVARTAN | CHANGE FROM THEOLOGY | Santmat Satsang | Maharshi Mehi

ब्रह्मज्ञान से परिवर्तन
'मानव में क्रांति' और 'विश्व में शांति' केवल 'ब्रह्मज्ञान' द्वारा संभव है |

अन्तरात्मा हर व्यक्ति की पवित्र होती है, दिव्य होती है | यहाँ तक कि दुष्ट से दुष्ट मनुष्य की भी | आवश्यकता केवल इस बात की है कि उसके विकार ग्रस्त मन का परिचय उसके सच्चे, विशुद्ध आत्मस्वरूप  से कराया जाये |

यह परिचय बाहरी साधनों से सम्भव नहीं है | केवल 'ब्रह्मज्ञान' की प्रदीप्त  अग्नि ही व्यक्ति के हर पहलू को प्रकाशित कर सकती है | यही नहीं, आदमी के नीचे गिरने की प्रवृति को 'ब्रह्मज्ञान' की सहायता से उर्ध्वोमुखी या ऊँचे उठने की दिशा में मोड़ा जा सकता है | इससे वह एक योग्य व्यक्ति और सच्चा नागरिक बन सकता है |

             'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त करने के बाद साधना करने से आपकी सांसारिक जिम्मेदारियां दिव्य कर्मों में बदल जाती हैं | आपके व्यक्तत्व का अंधकारमय पक्ष दूर होने लगता  है | विचारों में सकारात्मक परिवर्तन आने लगता है और नकारात्मक प्रविर्तियाँ दूर होती जाती हैं | अच्छे और सकारात्मक गुणों का प्रभाव आपके अन्दर बढने लगता है | वासनाओं,भ्रांतियों और नकारात्मकताओं में उलझा मन आत्मा में स्थित होने लगता है | वह अपने उन्नत स्वभाव यानि समत्व, संतुलन और शांति की दिशा में उत्तरोत्तर बढता जाता है | यही 'ब्रह्मज्ञान' की सुधारवादी प्रक्रिया है |
           अगर हम जीवन का यह वास्तविक तत्व यही 'ब्रह्मज्ञान' प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें सच्चे सद्गुरु की शरण में जाना होगा | वे आपके 'दिव्यनेत्र' को खोलने की युक्ति बताकर, आप को ब्रह्मधाम तक ले जा सकते हैं, जहाँ मुक्ति और आनन्द का साम्राज्य है | सच्चा सुख हमारे अन्दर ही विराजमान है, लेकिन उसका अनुभव हमें केवल एक युक्ति द्वारा ही हो सकता है, जो पूर्ण गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती है | इस लिए ऐसा कहना अतिशयोक्ति न होगा कि सद्गुरु  संसार और शाश्वत के बीच सेतु का काम करते हैं | वे क्षनभंगुरता से स्थायित्व की ओर ले जाते हैं | हमें चाहिए कि हम उनकी कृपा का लाभ उठाकर जीवन सफल बना लें |
।।जय गुरुदेव।।
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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मंगलवार, 9 जुलाई 2019

मेरे पास परमात्मा के लिए समय नहीं है | Mere pass Parmatma ke liye samay nahi hai | Santmat Satsang | Maharshi Mehi Sewa Trust

मेरे पास परमात्मा के लिए समय नहीं है!
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आज जब हम लोगों से आत्मा परमात्मा के बारे में बात करते हैं, तो बहुत से लोगों का यही प्रशन होता है कि हमारे पास परमात्मा के लिए समय नहीं है | व्यस्त जीवन है, एक मिनट की भी फुर्सत नहीं है | यही प्रशन एक वार एक व्यक्ति ने एक महात्मा जी के समक्ष्य रखा |

प्रशन - मैं एक व्यापारी हूँ | मेरा लाखों का बिजनेस है | मैंने दो-तीन बार आपके सत्संग- प्रवचन सुने हैं |मुझे बहुत अच्छे लगे | सुनकर मन को शांति भी मिली | पर फिर भी मैं ज्ञान लेने मैं असमर्थ हूँ | क्यों कि मेरे पास एक मिनट की भी फुर्सत नहीं है | मैं सुमिरन - भजन के लिए समय नहीं निकाल सकता | अब आप ही कोई उपाय बताएँ |
उत्तर ) समय नहीं है! यह तो केवल एक बहाना है | वास्तव में आपने परमात्मा व उसके ज्ञान के महत्व को अभी तक समझा ही नहीं | इस लिए आप संसार को ही सब कुछ मान बैठे हैं | सांसारिक कार्यों व विषयों में अपना एक - एक क्षण एवं एक - एक श्वास गवाए चले जा रहे हैं | जब कि संत महापुरषों के अनुसार यह जीवन तो मिला ही ईश्वर - भक्ति एंव उसकी प्राप्ति के लिए है | मनुष्य जीवन का लक्ष्य केवल  नौकरी, बिजनेस या धन - संग्रह करना नहीं | इसका परम लक्ष्य ईश्वर को पाना है | उसका बनना एंव उसे अपना बनाना है - 'बड़े भाग मनुष्य तन पावा ......साधन धाम मोच्छ कर द्वारा' | यदि समय रहते हम इस तथ्य को नहीं समझते, तो आगे की पंक्तियों में गोस्वामी तुलसीदास जी हमें एक चेतावनी भी देते हैं -
सो परत्र दुख  पावइ  सिर धुनि -धुनि पछताइ |
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोस लगाइ ||

फिर हमें सिर धुन - धुन कर पछताना पड़ेगा | चाहे हम 'कालहि' - समय नहीं था; 'कर्महि' - मेरे कर्मों में ही नहीं था; 'ईस्वरहि ' शायद ईश्वर को ही मंजूर नहीं था आदि कितने ही बहाने बनाएँ, कोई सुनवाई नहीं होगी | इस लिए जीवन के इस परम लक्ष्य  के विषय में विचार करें | ब्रह्मज्ञान की महत्ता को समझें | एक बार महत्व समझ आ गया, तो समय तो खुद-व-खुद निकल आएगा |
साथ ही, आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दें कि ज्ञान प्राप्ति के उपरान्त सुमिरन - भजन के लिए कोई अलग से समय निकालने की आवश्कयता नहीं है | यह तो वह ज्ञान है जिसके द्वारा आप चलते फिरते, खाते - पीते, उठते - बैठते हुए भी प्रभु सुमिरन कर सकते हैं | याद कीजिए प्रभु श्री कृष्ण का उदघोष -'माम स्मृत तात.....अर्थात (हे अर्जुन) तू युद्ध भी कर और सुमिरन भी कर | आपका बिजनेस युद्ध से अधिक एकाग्रता नहीं माँगता | इसलिए आप आगे बढें और अपने परम लक्ष्य को प्राप्त करें |
।। जय गुरु ।।
Posted by S.K.Mehta, Gurugram
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गुरु पूर्णिमा | GURU PURNIMA | गुरु का महत्व | GURU | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang | Maharshi Mehi Sewa Trust

।।श्री सद्गुरवे नमः।।
।।गुरु का महत्व।।
गुरु के महत्व पर संत शिरोमणि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है :–
गुर बिनु भवनिधि तरइ न कोई।
जों बिरंचि संकर सम होई।।

भले ही कोई ब्रह्मा, शंकर के समान क्यों न हो, वह गुरु के बिना भव सागर पार नहीं कर सकता। धरती के आरंभ से ही गुरु की अनिवार्यता पर प्रकाश डाला गया है। वेदों, उपनिषदों, पुराणों, रामायण, गीता, गुरुग्रन्थ साहिब आदि सभी धर्मग्रन्थों एवं सभी महान संतों द्वारा गुरु की महिमा का गुणगान किया गया है। गुरु और भगवान में कोई अन्तर नहीं है। संत शिरोमणि तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं :–

बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबिकर निकर।।

अर्थात् गुरू मनुष्य रूप में नारायण ही हैं। मैं उनके चरण कमलों की वन्दना करता हूँ। जैसे सूर्य के निकलने पर अन्धेरा नष्ट हो जाता है, वैसे ही उनके वचनों से मोहरूपी अन्धकार का नाश हो जाता है।
किसी भी प्रकार की विद्या हो अथवा ज्ञान हो, उसे किसी दक्ष गुरु से ही सीखना चाहिए। जप, तप, यज्ञ, दान आदि में भी गुरु का दिशा निर्देशन जरूरी है कि इनकी विधि क्या है?  अविधिपूर्वक किए गए सभी शुभ कर्म भी व्यर्थ ही सिद्ध होते हैं जिनका कोई उचित फल नहीं मिलता। स्वयं की अहंकार की दृष्टि से किए गए सभी उत्तम माने जाने वाले कर्म भी मनुष्य के पतन का कारण बन जाते हैं। भौतिकवाद में भी गुरू  की आवश्यकता होती है।
सबसे बड़ा तीर्थ तो गुरुदेव ही हैं जिनकी कृपा से फल अनायास ही प्राप्त हो जाते हैं। गुरुदेव का निवास स्थान शिष्य के लिए तीर्थ स्थल है। उनका चरणामृत ही गंगा जल है। वह मोक्ष प्रदान करने वाला है। गुरु से इन सबका फल अनायास ही मिल जाता है। ऐसी गुरु की महिमा है।

तीरथ गए तो एक फल, संत मिले फल चार।
सद्गुरु मिले तो अनन्त फल, कहे कबीर विचार।।

मनुष्य का अज्ञान यही है कि उसने भौतिक जगत को ही परम सत्य मान लिया है और उसके मूल कारण चेतन को भुला दिया है जबकि सृष्टि की समस्त  क्रियाओं का मूल चेतन शक्ति ही है। चेतन मूल तत्व को न मान कर जड़ शक्ति को ही सब कुछ मान लेना अज्ञानता है। इस अज्ञान का नाश कर परमात्मा का ज्ञान कराने वाले गुरु ही होते हैं।
किसी गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रथम आवश्यकता समर्पण की होती है। समर्पण भाव से ही गुरु का प्रसाद शिष्य को मिलता है। शिष्य को अपना सर्वस्व श्री गुरु देव के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए। इसी संदर्भ में यह उल्लेख किया गया है कि :-

यह तन विष की बेलरी, और गुरू अमृत की खान।

शीश दियां जो गुरू मिले तो भी सस्ता जान।

गुरु ज्ञान गुरु से भी अधिक महत्वपूर्ण है। प्राय: शिष्य गुरु को मानते हैं पर उनके संदेशों को नहीं मानते। इसी कारण उनके जीवन में और समाज में अशांति बनी रहती है।
गुरु के वचनों पर शंका करना शिष्यत्व पर कलंक है। जिस दिन शिष्य ने गुरु को मानना शुरू किया उसी दिन से उसका उत्थान शुरू हो जाता है और जिस दिन से शिष्य ने गुरु के प्रति शंका करनी शुरू की, उसी दिन से शिष्य का पतन शुरू हो जाता है।
सद्गुरु एक ऐसी शक्ति है जो शिष्य की सभी प्रकार के ताप-शाप से रक्षा करती है। शरणा गत शिष्य के दैहिक, दैविक, भौतिक कष्टों को दूर करने एवं उसे बैकुंठ धाम में पहुंचाने का दायित्व गुरु का होता है।
आनन्द अनुभूति का विषय है। बाहर की वस्तुएँ सुख दे सकती हैं किन्तु इससे मानसिक शांति नहीं मिल सकती। शांति के लिए गुरु चरणों में आत्म समर्पण परम आवश्यक है। सदैव गुरुदेव का ध्यान करने से जीव नारायण स्वरूप हो जाता है। वह कहीं भी रहता हो, फिर भी मुक्त ही है। ब्रह्म निराकार है। इसलिए उसका ध्यान करना कठिन है। ऐसी स्थिति में सदैव गुरुदेव का ही ध्यान करते रहना चाहिए। गुरुदेव नारायण स्वरूप हैं। इसलिए गुरु का नित्य ध्यान करते रहने से जीव नारायणमय हो जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गुरु रूप में शिष्य अर्जुन  को यही संदेश दिया था :–

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्याि माम शुच:।।
(गीता 18/66)

अर्थात् सभी साधनों को छोड़कर केवल नारायण स्वरूप गुरु की शरणगत हो जाना चाहिए। वे उसके सभी पापों का नाश कर देंगे। शोक नहीं करना चाहिए।
जिनके दर्शन मात्र से मन प्रसन्न होता है, अपने आप धैर्य और शांति आ जाती हैं, वे परम गुरु हैं। जिनकी रग-रग में ब्रह्म का तेज व्याप्त है, जिनका मुख मण्डल तेजोमय हो चुका है, उनके मुख मण्डल से ऐसी आभा निकलती है कि जो भी उनके समीप जाता है वह उस तेज से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। उस गुरु के शरीर से निकलती वे अदृश्य किरणें समीपवर्ती मनुष्यों को ही नहीं अपितु पशु पक्षियों को भी आनन्दित एवं मोहित कर देती है। उनके दर्शन मात्र से ही मन में बड़ी प्रसनन्ता व शांति का अनुभव होता है। मन की संपूर्ण उद्विग्नता समाप्त हो जाती है। ऐसे परम गुरु को ही गुरु बनाना चाहिए। जय गुरु। 

सोमवार, 1 जुलाई 2019

समस्त संसार ही हमारा परिवार है। The whole world is our family | SANTMAT-SATSANG |

|| समस्त संसार ही हमारा परिवार है ||

वास्तव में समस्त संसार एक परिवार है। जो मनुष्य जितना बड़ा है उसका परिवार भी उतना ही बड़ा होगा और जो मनुष्य जितना छोटा है उसका परिवार भी उतना ही छोटा होता है। जिसके जीवन का जितना अधिक विकास होता है उसका परिवार उतना ही विशाल होता चला जाता है। इस परिवार की कोई सीमा नहीं है। किसी का परिवार दस-बीस व्यक्ति यों का होता है, किसी का परिवार सौ, दो सौ से बनता है और किसी के परिवार की संख्या लाखों-करोड़ों तक पहुँच जाती है। इसीलिए परिवार की कोई सीमा नहीं हो सकती। संसार में छोटे-से-छोटे परिवार भी हैं और बड़े-से-बड़े परिवार भी हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जो मनुष्य जितना ही बड़ा है उसका उतना ही बड़ा परिवार है। ईसा, बुद्ध और गाँधी के परिवार की सीमा विस्तृत होकर सम्पूर्ण संसार तक पहुँच गई थी। ठीक इसी तरह अभी के समय में महर्षि मेँहिँ संतमत परिवार भी पूरे भारत वर्ष के अन्दर उफान पर है साथ ही बाहर के देशों में भी हिलोरे ले रही है।

जिसके निकट सारा संसार एक परिवार बन जाता है। उसके निकट अपने और पराये में किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं रह जाता। वह सभी को अपना समझता है, सभी के साथ स्नेह को संसार के महान पुरुषों ने अधिक-से-अधिक महत्व दिया है। इनका महत्व बढ़ाने के लिए ही उन महापुरुषों ने इन्हें विश्वबन्धुत्व का नाम दिया है। इस नाम में बहुत अधिक मधुरता और स्नेह है। हम समस्त संसार के मनुष्यों के साथ भ्रातृ-स्नेह का अनुभव करें और उनके दुःख को अपना दुःख एवं उनके सुख को अपना सुख समझें, यह एक बहुत ऊँची भावना है। संसार के सभी स्त्री-पुरुष एक ही परिवार के सदस्य हैं। संसार के किसी भी बच्चे को हम अपने परिवार का एक बच्चा समझें और संसार के किसी भी मनुष्य के साथ हम वही स्नेह करें जो अपने किसी निजी सम्बन्धी से किया करते हैं, तो यह एक बहुत बड़े कर्त्तव्य-धर्म का पालन करना समझा जायगा।
।। जय गुरु ।।

मनुष्यों का हित अन्योन्याश्रित है | Manushyo ka hit anyoyashrit hai | Santmat-Satsang | एक मनुष्य दूसरे को हानि पहुँचाने के साथ-साथ स्वयं भी हानि उठाता है तो यह भी निश्चय है कि एक मनुष्य दूसरे को उन्नत बनाकर स्वयं भी उन्नति करता है।

मनुष्यों का हित अन्योन्याश्रित है।

जीवन की सबसे बड़ी श्रेष्ठता इसी में है कि एक मनुष्य अन्य मनुष्यों को अपना समझे और उनके काम आवे। इस प्रकार दूसरों को प्रसन्न बनाने की भावना में वह स्वयं अधिक प्रसन्न और सुखी हो सकेगा। यही भावना प्रकृति का आदेश है। इस प्रकृति के द्वारा न जाने कितने पुरुष दूसरों की सेवा और सहायता करके महापुरुष बन गये। परन्तु जिन लोगों ने दूसरों के साथ घृणा करना सीखा उनका भयानक पतन हुआ। मालूम नहीं कि मनुष्य जाति में परस्पर द्वेष की भावना किस आधार पर उत्पन्न की गई? विश्व की सम्पूर्ण मनुष्य जाति एक शरीर के रूप में है और अगणित व्यक्ति उसके संख्यातीत अंग-प्रत्यंग हैं। ये छोटे भी हैं और बड़े भी परन्तु उनमें किसी की आवश्यकता कम और किसी की अधिक नहीं है। सम्पूर्ण शरीर की रक्षा के लिए सब की आवश्यकता समान रूप से है। इस सत्य को अनुभव करके किसी महात्मा ने कहा है—

“आँखें हाथों से नहीं कह सकती कि हमको तुम्हारी आवश्यकता नहीं और न मस्तक पैरों से कह सकता है कि हमको तुम्हारी जरूरत नहीं है। यदि शरीर का एक अंग पीड़ित होता है तो सम्पूर्ण शरीर पीड़ित और अस्त-व्यस्त हो जाता है। यही मानव प्रकृति है और यदि उसका कोई एक अंग स्वास्थ्य प्राप्त करता है तो उसका लाभ सम्पूर्ण शरीर को मिलता है। ” महात्मात्मन के कथनानुसार “एक मनुष्य दूसरे को उसी दशा में हानि और पीड़ा पहुँचा सकता है जब वह स्वयं पीड़ित होता है और हानि उठाता है; और कोई एक देश अथवा राष्ट्र किसी दूसरे देश अथवा राष्ट्र को उसी दशा में क्षति पहुँचा सकता है, जब वह स्वयं क्षति उठाता है।” जब यह सत्य है कि एक मनुष्य दूसरे को हानि पहुँचाने के साथ-साथ स्वयं भी हानि उठाता है तो यह भी निश्चय है कि एक मनुष्य दूसरे को उन्नत बनाकर स्वयं भी उन्नति करता है। अब यह समझना हमारा काम है कि हम उन्नत होना चाहते हैं अथवा पतित, लाभ उठाना चाहते हैं या हानि?

—”सादगी से श्रेष्ठता”
।। जय गुरु ।।
सौजन्य: *महर्षि मेँहीँ सेवा ट्रस्ट*
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...