यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 1 जुलाई 2019

मनुष्यों का हित अन्योन्याश्रित है | Manushyo ka hit anyoyashrit hai | Santmat-Satsang | एक मनुष्य दूसरे को हानि पहुँचाने के साथ-साथ स्वयं भी हानि उठाता है तो यह भी निश्चय है कि एक मनुष्य दूसरे को उन्नत बनाकर स्वयं भी उन्नति करता है।

मनुष्यों का हित अन्योन्याश्रित है।

जीवन की सबसे बड़ी श्रेष्ठता इसी में है कि एक मनुष्य अन्य मनुष्यों को अपना समझे और उनके काम आवे। इस प्रकार दूसरों को प्रसन्न बनाने की भावना में वह स्वयं अधिक प्रसन्न और सुखी हो सकेगा। यही भावना प्रकृति का आदेश है। इस प्रकृति के द्वारा न जाने कितने पुरुष दूसरों की सेवा और सहायता करके महापुरुष बन गये। परन्तु जिन लोगों ने दूसरों के साथ घृणा करना सीखा उनका भयानक पतन हुआ। मालूम नहीं कि मनुष्य जाति में परस्पर द्वेष की भावना किस आधार पर उत्पन्न की गई? विश्व की सम्पूर्ण मनुष्य जाति एक शरीर के रूप में है और अगणित व्यक्ति उसके संख्यातीत अंग-प्रत्यंग हैं। ये छोटे भी हैं और बड़े भी परन्तु उनमें किसी की आवश्यकता कम और किसी की अधिक नहीं है। सम्पूर्ण शरीर की रक्षा के लिए सब की आवश्यकता समान रूप से है। इस सत्य को अनुभव करके किसी महात्मा ने कहा है—

“आँखें हाथों से नहीं कह सकती कि हमको तुम्हारी आवश्यकता नहीं और न मस्तक पैरों से कह सकता है कि हमको तुम्हारी जरूरत नहीं है। यदि शरीर का एक अंग पीड़ित होता है तो सम्पूर्ण शरीर पीड़ित और अस्त-व्यस्त हो जाता है। यही मानव प्रकृति है और यदि उसका कोई एक अंग स्वास्थ्य प्राप्त करता है तो उसका लाभ सम्पूर्ण शरीर को मिलता है। ” महात्मात्मन के कथनानुसार “एक मनुष्य दूसरे को उसी दशा में हानि और पीड़ा पहुँचा सकता है जब वह स्वयं पीड़ित होता है और हानि उठाता है; और कोई एक देश अथवा राष्ट्र किसी दूसरे देश अथवा राष्ट्र को उसी दशा में क्षति पहुँचा सकता है, जब वह स्वयं क्षति उठाता है।” जब यह सत्य है कि एक मनुष्य दूसरे को हानि पहुँचाने के साथ-साथ स्वयं भी हानि उठाता है तो यह भी निश्चय है कि एक मनुष्य दूसरे को उन्नत बनाकर स्वयं भी उन्नति करता है। अब यह समझना हमारा काम है कि हम उन्नत होना चाहते हैं अथवा पतित, लाभ उठाना चाहते हैं या हानि?

—”सादगी से श्रेष्ठता”
।। जय गुरु ।।
सौजन्य: *महर्षि मेँहीँ सेवा ट्रस्ट*
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

धन्यवाद!

सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...