🙏🌹श्री सद्गुरवे नमः🌹🙏
🌸संसार में जितने प्रकार के धर्म, पंथ, सम्प्रदाय और मजहब आदि हैं, सबमें किसी-न-किसी प्रकार का पर्व या त्योहार अवश्य मनाया जाता है, लेकिन उसके मनाने में सबकी अपनी-अपनी अलग-अलग रीति होती है। बल्कि कभी-कभी और कहीं-कहीं ऐसा होता है कि जो एक के लिए ग्राह्य होता है, वह दूसरे के लिए त्याज्य भी हो सकता है। जैसे मॉरिशस में जब किन्हीं के यहाँ मेहमान आते हैं, तो उनको भोजन कराते समय उनके सामने सभी चीजें परोसने के बाद गृहपति हाथ जोड़कर प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि ‘हे भगवन! हमारे मेहमान को सुबुद्धि दें कि ये अधिक न खाएँ।’ यह वहाँ के लिए अनिवार्य है, लेकिन अपने देश में वैसा प्रचलन नहीं। इसीलिए मैंने कहा ‘जो एक लिए ग्राह्य हो, वह दूसरे के लिए त्याज्य भी हो सकता है।’ लेकिन गुरु-पर्व के लिए ऐसी बात नहीं है।
यह गुरु-पुर्णिमा इतना पावन पर्व है कि जितने गुरु-भक्त हैं, सबके लिए यह समान है और सबके लिए एक विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यह गुरु-पर्व सामूहिक है, व्यक्तिगत नहीं। यह इतना उत्तम त्योहार है कि जैसे कोई वृक्ष की जड़ में पानी डाल दे तो उसके तनों, सभी डालों और प्रत्येक पत्ते को पानी मिल जाता है, उसी तरह एक गुरु-पूजा करने पर सबकी पूजा हो जाती है।
देवी देव समस्त पूरण ब्रह्म परम प्रभू ।
गुरु में करैं निवास कहत हैं सन्त सभू ।।
(महर्षि मेँहीँ-पदावली )
आप हाथी देखते है, उसके पैर के चिन्ह में सभी जीवों के पद-चिन्ह समा जाते हैं, उसी तरह एक गुरु-पूजा में सबकी पूजा हो जाती है। यह गुरु-पूजा की महत्तम महिमा है। -महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज
🙏🌸🌿।। जय गुरु ।।🌿🌸🙏
एस.के. मेहता, गुरुग्राम
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