बात 1966-67 की है। जापान के टोकियो शहर में 'यूकिको फ्यूजिता' ऩामक महिला ने स्वप्न देखा कि समुद्र की गहराई में एक विशाल मंदिर के द्वार पर एक साधु खड़े हैं जिनके शरीर से दिव्य प्रकाश निकल रहा है। नींद टूटने पर उस रुप को प्रत्यक्ष देखने के लिए उनके मन में एक बेचैनी जगी। भारत को साधु-संतों का देश जानते हुए वह भारत आयी तथा उस स्वप्न-दर्शित रुप की एक झलक हेतु हिमालय से कन्याकुमारी तक भटकी। पर असफल रही व अपने देश लौट गई।
पर दर्शन की व्याकुलतावश पुनः दूसरे वर्ष आई। इस बार कुप्पाघाट आश्रम व पूज्य गुरुदेव के बारे में सुनकर कुप्पाघाट आश्रम आई। संयोग से उस समय गुरुदेव आश्रम में नहीं थे। पर दीवार पर गुरुदेव की एक तस्वीर को देख कर वह हर्ष से उछल पड़ी और कहने लगी-" ये वही बाबा हैं, जिनके दर्शन स्वप्न में हुए थे।" तत्पश्चात पत्र द्वारा समय लेकर कुछ ही दिनों के बाद हरिद्वार में उन्होने परमाराध्य सद्गुरु महर्षि मेँहीँ के पवित्र दर्शन किये। दीक्षा देने के निवेदन करने पर गुरुदेव ने उनको कुप्पाघाट आश्रम आन कोे कहा। नियत समय पर वह आश्रम आई व गुरुदेव से दीक्षा ली।
दीक्षा के बाद गुरुदेव ने उनको वहीं ध्यान करने कहा। गुरुदेव की असीम दया से वह ध्यान में घंटों तक अंतर्जगत् के अद्भुत् दृश्यों को देखती रही जिसे उन्होने गुरुदेव के आदेशानुसार चित्रित भी किया। किसी ने जब उनसे संतमत की साधना-पद्धति के बारे में पूछा तो उन्होने उत्तर दिया-" Very easy and very high."
ऐसे थे हमारे गुरुदेव जो आंतरिक प्रेरणा देकर अपने भक्तों को स्वप्न द्वारा जापान से भी बुला लेते थे। वस्तुतः थे कहना गलत होगा, वे आज भी हैं हम भक्तों के हृदय में। ऐसे महान् संत पूज्य गुरुदेव के पावन चरण कमलों में कोटि-कोटि प्रणाम । जय गुरु ।💐👏🌹🙏🌹
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