यह सुनिश्चित है कि जो ईश्वर-भक्ति करके सदाचार का पालन करेंगे, उनका अन्तःकरण शुद्ध और शान्त होगा। फलतः, सदाचारी का निर्विकारी और परोपकारी होना स्वाभाविक है। ऐसे जन जीवनकाल में मंगलमय प्रभु को पाकर अपने मानव जीवन को मंगलमय बना सकेंगे, यह भी स्वाभाविक ही है। स्मरण रहे कि बूँद का ही समष्टिरूप सिंधु होता है और व्यक्ति का समूह समाज, देश और विश्व होता है, अतएव प्रथम हम स्वयं को सन्मार्ग पर चला उस शान्ति का अनुभव करें। पश्चात वही शान्ति-किरण विकीर्णित होकर समाज, देश और विश्व में शान्ति प्रस्थापित करेगी, अन्यथा 'पानी मिलै न आपको, औरन बकसत क्षीर’ के चरितार्थकर्त्ता का घोर प्रयास भी सपफलता प्राप्त करने में कदापि सक्षम नहीं हो सकता।
-महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज
🙏🌸🌿।। जय गुरु ।।🌿🌸🙏
सौजन्य: *महर्षि मेँहीँ सेवा ट्रस्ट*
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