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शनिवार, 2 जनवरी 2021

महर्षि संतसेवी जी महाराज का देशप्रेम | Maharshi Santsevi Paramhans Ji Maharaj ka Deshprem | Santmat Satsang

🙏🌹श्री सद्गुरवे नमः🌹🙏
🍁महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज का देश प्रेम:-
देश-हित में अपना हित निहित है, ऐसी भावना होनी चाहिए। देश की सुरक्षा अपनी सुरक्षा है। देश-हित को दृष्टिगत करते हुए हमारा कर्म होना चाहिए। हम भूल कर भी ऐसा कार्य नहीं करें, जिससे देश का अहित हो। 
जिस जननी के गर्भ से हम जन्म लेते हैं, वह हमारी माता कहलाती है। उसी प्रकार जिस राष्ट्र की धरती पर हम जन्म धारण करते हैं, वह हमारी मातृ तुल्य होती है, बल्कि कुछ अंशों में उससे भी विशेष कहा जा सकता है। 
'जननि जन्म भूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसि।'

जन्मदातृ मातृ की गोद में अज्ञानावस्था में रहकर हम मात्र कुछ महीने मल-मूत्र विसर्जन करते हैं; किंतु पृथ्वी माता की गोद में हम ज्ञानावस्था में रहकर जीवन-पर्यंत मल-मूत्र त्याग करते हैं। जन्मदातृ माता की गोद में हम शैशवावस्था में रहकर स्वल्प काल ही उनका दुग्ध-पान कर किलकारियां भरते हैं; किंतु धरती माता की गोद में हम जीवन-पर्यंत खाते-पीते और आनंद-चैन की वंशी बजाते हैं। इसकी सर्वतोमुखी उन्नति के लिए हमें तन, मन तथा धन समर्पण हेतु सतत प्रस्तुत रहना चाहिए। इतना ही नहीं, देश-रक्षार्थ यदि अपने को बलिवेदी पर चढ़ाना पड़े, तो उससे मुंह नहीं मोड़ना चाहिए।
जात-पात, ऊंच-नीच, छुआ-छूत एवं पंथाई भावों के भूत को दूरीभूत कर एकजुट होकर हम रहें। सत्य, प्रिय, मृदु एवं मितभाषी बनें। परोपकार की भावना रखें। प्रमुखोपेक्षी न हों। स्वावलंबी जीवन जीयें यानी श्रम-सीकर की सच्ची कमाई कर अपना जीवन-यापन करें। पवित्रोपार्जन से प्राप्त वस्तुओं में संतुष्ट रहें। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, चिढ़, द्वेष, ईर्ष्या आदि तामस विकारों से बचते हुए दया, क्षमा, नम्रता, शील, संतोष प्रभृत्ति सात्विक गुणों को धारण करना हितकर है। 
जिस प्रकार परम संत बाबा देवी साहब का अंतिम उपदेश 'दुनिया वहम है, अभ्यास करो।' महर्षि मेँहीँ की अंतिम वाणी 'सुकिरत कर ले, नाम सुमिर ले, को जाने कल की।' उसी प्रकार इनका अंतिम उपदेश 'धीरज धरै तो कारज सरै' मानव मात्र के कल्याण हेतु प्रेरणाप्रद एवं अनुकरणीय है।
(प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता)
🙏🌼🌿।। जय गुरु ।।🌿🌼🙏

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