यह ब्लॉग खोजें

बुधवार, 20 नवंबर 2019

शब्द जितना छोटा होगा! -सद्गुरु महर्षि मेँहीँ | Shbad | Maharshi-Mehi | Santmat-Satsang | Guru

🙏🌹श्री सद्गुरवे नमः🌹🙏
🕉🍁शब्द जितना छोटा होगा, उतना ही सिमटाव होगा और जितना बड़ा शब्द होगा, उतना ही फैलाव होगा। तन्त्र में एकाक्षर का ही जप करने का आदेश है और वेद में भी वही एक अक्षर। कबीर साहब कहते हैं- पढ़ो रे मन ओ ना मा सी धं ।
अर्थात् ‘ऊँ नमः सिद्धम्।’ तात्पर्य यह कि सृष्टि इसी ‘ऊँ’ से है। शब्द से सृष्टि हुई है। यह (ऊँ) त्रैमात्रिक है, इसीलिए इस प्रकार भी ‘ओ3म्’ लिखते हैं। इसको इतना पवित्र और उत्तम माना गया कि इस शब्द के बोलने का अधिकार अमुक वर्ण को ही होगा, अमुक वर्ण को नहीं। इतना प्रतिबन्ध लगाया गया कि बड़े ही कहेंगे। सन्तों ने कहा, कौन लड़े-झगड़े; ‘सतनाम’ ही कहो, ‘रामनाम’ ही कहो, आदि। बाबा नानक ने ‘ऊँ’ का मन्त्र ही पढ़ाया- 1ऊँ सतिगुरु प्रसादि। और कहा- चहु वरणा को दे उपदेश। यह ईश्वरी शब्द है; किन्तु हमलोग इसका जैसा उच्चारण करते हैं, वैसा यह शब्द सुनने में आवे, ऐसा नहीं। यह तो आरोप किया हुआ शब्द है, जिसके मत में जैसा आरोप होता है। जैसे- पंडुक अपनी बोली में बोलता है, किन्तु कोई उस ‘कुकुम कुम’ और कोई उसी शब्द को ‘एके तुम’ आरोपित करता है। किन्तु यथार्थतः इस (ओ3म्) को लौकिक भाषा में नहीं ला सकते, यह तो अलौकिक शब्द है। इस अलौकिक शब्द को लौकिक भाषा में प्रकट करने के लिए सन्तों ने ‘ऊँ’ कहा। क्योंकि जिस प्रकार वह अलौकिक ¬ सर्वव्यापक है, उसी प्रकार यह लौकिक ‘ऊँ’ भी शरीर के सब उच्चारण-स्थानों को भरकर उच्चरित होता है। इस प्रकार का कोई दूसरा शब्द नहीं है, जो उच्चारण के सब स्थानों को भरकर उच्चरित हो सके। इसी शब्द का वर्णन सन्त कबीर साहब इस प्रकार करते हैं- 
आदि नाम पारस अहै, मन है मैला लोह। 
परसत ही कंचन भया, छूटा बन्धन मोह।। 
शब्द शब्द सब कोइ कहै, वो तो शब्द विदेह। 
जिभ्या पर आवै नहीं, निरखि परखि करि देह।। 
शब्द शब्द बहु अन्तरा, सार शब्द चित देय। 
जा शब्दै साहब मिलै, सोइ शब्द गहि लेय ।। 

आदिनाम वा शब्द सर्वव्यापक है। इसी प्रकार एक शब्द लो, जो उच्चारण के सब स्थानों को भरपूर करे, तो संतों ने उसी को ‘ऊँ’ कहा तथा इसी शब्द से उस आदि शब्द ¬ का इशारा किया। यह जो वर्णात्मक ओ3म् है, जिसका मुँह से उच्चारण करते हैं, यह वाचक है तथा इस शब्द से जिसके लिए कहते हैं, वह वाच्य है तथा उस परमात्मा के लिए वह भी वाचक है तथा परमात्मा वाच्य है। तो इस एक शब्द का दृढ़ अभ्यास, एक तत्त्व का दृढ़ अभ्यास करना है। 17-1-1951.  -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज 
🙏🌼🌿।। जय गुरु ।।🌿🌼🙏
सौजन्य: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम 
🌼🌿🌼🌿🌼🌿🌼🌿🌼🌿🌼🌿🌼

लोग धन पुत्रादि से ऊब जाते हैं! - सद्गुरु महर्षि मेँहीँ | People get bored with wealth | Maharshi-Mehi | Santmat-Satsang

🙏🌹श्री सद्गुरवे नमः🌹🙏
लोग धन-पुत्रादि से ऊब जाते हैं। किसी को धन है, तो पुत्र नहीं, पुत्र है तो धन नहीं। शान्ति किसी को नहीं मिलती। अपने जीवन-काल में यज्ञ करके अथवा लोगों के कहे अनुसार श्राद्ध-क्रिया से स्वर्ग चले जायँ, तो क्या लाभ होगा?
वहाँ भी सुख नहीं। यहाँ के समान ही वहाँ भी छोटे-बड़े होते हैं। काम-क्रोधादिक विकार वहाँ भी उत्पन्न होते हैं तथा दूसरे से ईर्ष्या होती है आदि। फिर पुण्य क्षीण होने पर वहाँ से वापस होना पड़ता है। इसलिए गोस्वामी तुलसीदासजी अपनी रामायण में लिखते हैं-
‘एहि तन कर फल विषय न भाई। स्वरगउ स्वल्प अन्त दुखदाई।।’

‘नर तन दुर्लभ देव को,सब कोई कहै पुकार।। 
सब कोइ कहै पुकार, देव देही नहिं पावै। 
ऐसे मूरख लोग, स्वर्ग की आस लगावै।। 
पुण्य क्षीण सोइ देव,स्वर्ग से नरक में आवै। 
भरमै चारिउ खानि, पुण्य कहि ताहि रिझावै।। 
तुलसी सतमत तत गहे, स्वर्ग पर करे खखार।
नर तन दुर्लभ देव को, सब कोइ कहै पुकार।।’ 
- तुलसी साहब, हाथरसवाले

स्वर्ग या बहिश्त कहीं भी जाओ, विषय-सुख ही है। इसलिए सूफी लोग बताते हैं-मुक्ति ( नजात ) को प्राप्त करो। 17-1-1951.
-संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज 
🙏।। जय गुरु ।।🙏
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम 

इस योग्य हम कहाँ हैं | Sadguru | Es yogya ham kahan hain | Bhajan | Santmat Satsang | Maharshi Mehi Sewa Trust

🙏🌷इस योग्य हम कहाँ हैं🌷🙏


इस योग्य हम कहाँ हैं, गुरुवर तुझे रिझायें।
फिर भी मना रहे हैं, शायद तू मान जाये।।
जब से जनम लिया है, विषयों ने हमको घेरा।
छल और कपट ने डाला, इस भोले मन पे डेरा।
सदबुद्धि को अहम् ने, हरदम रखा दबाये।।
इस योग्य हम कहाँ हैं, गुरुवर तुझे रिझायें..

निश्चय ही हम पतित हैं, लोभी हैं स्वार्थी हैं।
तेरा ध्यान जब लगायें, माया पुकारती है।
सुख भोगने की इच्छा, कभी तृप्ति हो न पाये।।
इस योग्य हम कहाँ हैं, गुरुवर तुझे रिझायें..

जग में जहाँ भी देखा, बस एक ही चलन है।
इक दूसरे के सुख में, खुद को बड़ी जलन है।
कर्मों का लेखा जोखा, कोई समझ न पाये।।
इस योग्य हम कहाँ हैं, गुरुवर तुझे रिझायें..


जब कुछ न कर सके तो, तेरी शरण में आये।
अपराध मानते हैं, झेलेंगे सब सजायें।
बस दरश तू दिखा दे, कुछ और हम न चाहें।।
इस योग्य हम कहाँ हैं, गुरुवर तुझे रिझायें..
🙏🌹🌷 जय गुरुदेव 🌷🌹🙏
एस.के. मेहता, गुरुग्राम 

संतों के विचार को अपनाए बिना: महर्षि हरिनन्दन परमहंस | Santon ke vichar ko apnaye bina... | Maharshi Harinandan Paramhans |

🙏🌹श्री सद्गुरवे नमः 🌹🙏
🍁संतों के विचार को अपनाए बिना हमारा कल्याण नहीं हो सकता। 

हमारे गुरुदेव ने कहा कि संतों के विचार को जानने के लिए सत्संग करो। अगर अपना उद्धार चाहते हो, मुक्ति चाहते हो, दुखों से छुटकारा चाहते हो तो संत का संतान बनो। संतो के बतलाए मार्ग पर चलें तभी संत के संतान बनने के अधिकारी हैं। संत उस ओर जाने के लिए कहता है जिस ओर जीव बंधन मुक्त हो जाता है। कोई बंधन नहीं रहता। उन्होंने कहा कि इस शरीर में नौ द्वार है। फिर भी हम नहीं निकल पाते। कारण यह कष्ट का मार्ग है। जब शरीर की अवधि समाप्त हो जाती है तब यम की मार खाकर इस नौ द्वार में से एक से निकलता है। मनुष्य के शरीर में एक गुप्त मार्ग है। यह मार्ग केवल मनुष्य के शरीर में ही है। इस मार्ग से निकलने में कोई कष्ट नहीं होता।  -महर्षि हरिनन्दन परमहंस जी महाराज
  🙏🌸🌿।। जय गुरु ।।🌿🌸🙏
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम 
🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸🌿🌸

संसार में जितने प्रकार के धर्म, पंथ, सम्प्रदाय और मजहब आदि हैं | -महर्षि संतसेवी | देवी देव समस्त पूरण ब्रह्म परम प्रभू । गुरु में करैं निवास कहत हैं सन्त सभू ।। Maharshi Mehi | Santsevi Pravachan | Santmat Satsang

🙏🌹श्री सद्गुरवे नमः🌹🙏
🌸संसार में जितने प्रकार के धर्म, पंथ, सम्प्रदाय और मजहब आदि हैं, सबमें किसी-न-किसी प्रकार का पर्व या त्योहार अवश्य मनाया जाता है, लेकिन उसके मनाने में सबकी अपनी-अपनी अलग-अलग रीति होती है। बल्कि कभी-कभी और कहीं-कहीं ऐसा होता है कि जो एक के लिए ग्राह्य होता है, वह दूसरे के लिए त्याज्य भी हो सकता है। जैसे मॉरिशस में जब किन्हीं के यहाँ मेहमान आते हैं, तो उनको भोजन कराते समय उनके सामने सभी चीजें परोसने के बाद गृहपति हाथ जोड़कर प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि ‘हे भगवन! हमारे मेहमान को सुबुद्धि दें कि ये अधिक न खाएँ।’ यह वहाँ के लिए अनिवार्य है, लेकिन अपने देश में वैसा प्रचलन नहीं। इसीलिए मैंने कहा ‘जो एक लिए ग्राह्य हो, वह दूसरे के लिए त्याज्य भी हो सकता है।’ लेकिन गुरु-पर्व के लिए ऐसी बात नहीं है।
यह गुरु-पुर्णिमा इतना पावन पर्व है कि जितने गुरु-भक्त हैं, सबके लिए यह समान है और सबके लिए एक विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यह गुरु-पर्व सामूहिक है, व्यक्तिगत नहीं। यह इतना उत्तम त्योहार है कि जैसे कोई वृक्ष की जड़ में पानी डाल दे तो उसके तनों, सभी डालों और प्रत्येक पत्ते को पानी मिल जाता है, उसी तरह एक गुरु-पूजा करने पर सबकी पूजा हो जाती है। 

देवी देव समस्त पूरण ब्रह्म परम प्रभू । 
गुरु में करैं निवास कहत हैं सन्त सभू ।।
(महर्षि मेँहीँ-पदावली )
आप हाथी देखते है, उसके पैर के चिन्ह में सभी जीवों के पद-चिन्ह  समा जाते हैं, उसी तरह एक गुरु-पूजा में सबकी पूजा हो जाती है। यह गुरु-पूजा की महत्तम महिमा है। -महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज 
🙏🌸🌿।। जय गुरु ।।🌿🌸🙏
एस.के. मेहता, गुरुग्राम 

प्रेम | इंसान के लिए दो ही रास्ते हैं – प्रेम करे या फिर दुश्मनी | Prem ya Dushmani | Maharshi Mehi Sewa Trust

🙏🌹|| प्रेम ||🌹🙏
🍁इंसान के लिए दो ही रास्ते हैं – प्रेम करे या फिर दुश्मनी। इनमें से दुश्मनी के मार्ग को सदियों से इंसान के लिए वज्र्य माना जाता रहा है। फिर बचता है सिर्फ प्रेम। इस प्रेम को पाने, प्रेम प्रदान करने और इसका अनुभव करते-कराते हुए आनंद की प्राप्ति और इससे ईश्वर को अपने भीतर अनुभव करने वाला ही सच्चा और वास्तविक प्रेमी होता है।
इस प्रेम को शब्दों, मुद्राओं, भाव-भंगिमाओं या देहिक क्रियाओं में विभक्त नहीं किया जा सकता बल्कि प्रेम को आनंद का पर्याय मानते हुए चरम उल्लास की अनुभूति की जा सकती है। प्रेम ऎसा कारक है जिसे अंगीकार कर लेने वाला खुद भी मुक्त हो जाता है और अपने संपर्क में आने वाले दूसरे सभी लोगों की भी मुक्ति चाहने के लिए हर क्षण सर्वस्व समर्पण को तैयार रहता है।
प्रेम के मूल मर्म को समझ लेने वाला इंसान दुनिया में किसी भी एक से प्रेम करता है तो असली प्रेम वही है जिसमें व्यक्ति सभी से प्रेम करे, चाहे वह जड़-चेतन कुछ भी क्यों न हो, ईश्वर या इंसान, पशु आदि कोई भी हो सकता है। सच्चे और निश्छल प्रेमी का प्रेम उदात्त भाव के उत्कर्ष को जीता है और सार्वजनीन होता है। ऎसे इंसान के लिए जड़-चेतन सभी कुछ प्रेम से परिपूर्ण होता है।

जो एक से प्रेम करता है उसका प्रेम यदि सच्चा होता है तो ही वह सभी से प्रेम करता है। वास्तविक प्रेम करने वाला इंसान किसी दूसरे से कभी घृणा कर ही नहीं सकता।
दूसरी तरफ जो लोग किसी एक से प्रेम करते हैं और दूसरों के प्रति संवेदनशील नहीं रह पाते अथवा दूसरों से घृणा या शत्रुता भाव रखते हैं वे सच्चे प्रेमी कभी नहीं हो सकते हैं।
दुनिया की बहुत बड़ी आबादी उन लोगों से भरी पड़ी है जो कि अपने आपको प्रेम करने वालों की श्रेणी में तो रखते हैं लेकिन प्रेम के मर्म से अनभिज्ञ होते हैं। खूब सारी भीड़ है जो किसी न किसी से प्रेम करती है लेकिन इस प्रेम के चक्कर में ही औरों की घृणा, द्वेष या दुश्मनी का पात्र बन जाती है और प्रेम को भुला बैठती है।


असल में यह प्रेम है ही नहीं। प्रेम के साथ संवेदनशीलता, करुणा, आत्मीयता और औदार्य के भावों का सम्मिश्रण रहता है न कि मोह, शत्रुता और एकाधिकार का।
जो एक से प्रेम करता है तथा अन्यों से प्रेमपूर्वक व्यवहार न करे तो इसका सीधा सा अर्थ यही है कि उसका प्रेम आडम्बर और स्वार्थ के व्यापार से ज्यादा कुछ नहीं है। ऎसा प्रेमी जिससे प्रेम करता है उससे भी उसका संबंध स्वार्थ से ज्यादा कुछ नहीं होता बल्कि ऎसा व्यवहार प्रेम नहीं बल्कि बिजनैस की श्रेणी में आता है और इसे प्रेम की संज्ञा नहीं दी जा सकती। शाश्वत प्रेम वही है जो किसी एक से बंधा नहीं रहकर जड़-चेतन सभी पर समान रूप से प्रतिभासित हो और सभी को प्रेम का आनंद अनुभव होता रहे।

प्रेम में परिपूर्ण और गोते लगाने वाला इंसान किसी एक से मोहग्रस्त नहीं होता, बंधता नहीं, बल्कि जिस किसी के सम्पर्क में आता है उसे लगता है कि आत्मीयता और प्रेम का जो निश्छल व्यवहार उसे प्राप्त हो रहा है, वह अपने आपमें अन्यतम और अद्वितीय है।
प्रेम की दिशा आक्षितिज आनंद पाती और दिलाती है तथा उसकी कोई सीमा नहीं होती।  प्रेम अपार और अथाह आनंद की अनुभूति कराता है और ऎसे प्रेम के प्रति न किसी को द्वेष होता है, न मोह या शत्रुता का भाव। एक संत ने तो प्रेेम को सर्वोपरि कारक और ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताते हुए बोध वाक्य रच गए – प्रेम तु ही ने प्रेम स्वामी प्रेम त्यां परमेश्वरो!
🙏🌸🌿।। जय गुरु ।।🌿🌸🙏

जिसका मन निश्छल वही बड़ा | Jiska man nischhal hai vahi bara | Santmat Satsang | Maharshi Mehi Sewa Trust

🌸जिसका मन निश्छल वही बड़ा🌸
जो मनुष्य दूसरों की भलाई करता है, वह फरिश्ते से कम नहीं। जो व्यक्ति दूसरों की मदद करता हो, किसी का बुरा नहीं करता हो, जो शील स्वभाव का हो, सभी को प्यार से बोलता हो और समय पर कार्य करता हो वह फरिश्ता ही तो है। 
हर पल जो नवीन दिखाई दे, वही सुंदरता का नमूना है। अपने दिमाग के द्वार बंद करने से न जाने किस समय क्या अनोखा तत्व समझ में आ जाए। बुरी बातों को भूल जाना ही बेहतर है वरना अच्छे विचार मन में प्रवेश करना बंद कर देंगे। बड़प्पन सूट-बूट और ठाट-बाट से नहीं होता है। जिसका मन निश्छल है, वही बड़ा है। व्यस्त रहना ठीक है किंतु  अस्त-व्यस्त नहीं। एक पाप दूसरे पाप का दरवाजा खोल देता है। आदमी आराम के साधन जुटाने में आराम खो देता है। धनी व्यक्ति जहां रुपयों के सहारे जीता है वहीं निर्धन व्यक्ति परिश्रम, प्रभु के सहारे जीता है। 
🙏🌸🌿।। जय गुरु ।।🌿🌸🙏
प्रस्तुति: एस.के. मेहता

सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...