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गुरुवार, 20 मई 2021

पुण्य का फल मीठा लगता है | Punya Ka fal meetha lagta hai | -महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज | कोई पाप के फल से नहीं बच सकता है | केवल ध्यानयोग से ही पापों से बच सकते हैं। Santmat Satsang

यदि शैल समं पापं विस्तीर्ण बहुयोजनम्। 
भिद्यते ध्यानयोगेन नान्यो भेदः कदाचन।।   -ध्यानबिन्दु उपनिषद् 
मनुष्य अनिवार्य और वार्य दोनों तरह का कर्म करता ही रहता है। वह कर्म करने से बच नहीं सकता है। कर्म में पाप और पुण्य दोनों कर्म होते हैं। कोई पुण्य कर्म अधिक करते हैं और पाप कर्म कम। वही पुण्यात्मा कहलाते हैं। पाप कर्म का फल दुःख होता है और पुण्य कर्म का फल सुख होता है। बन्ध दशा में ही लोग पाप और पुण्य के फलों को भोगते हैं। पुण्य का फल मीठा लगता है और पाप फल कडुवा लगता है। केवल ध्यानयोग से ही पापों से बच सकते हैं। युधिष्ठिर जी झूठ बोले थे। उनको भी पाप का फल भोगना पड़ा। थोड़ा भी पाप किए हैं तो उसका फल भी भोगना ही पड़ेगा। सिर्फ तीर्थ-दान करने से ही कोई पाप के फल से नहीं बच सकता है। श्रद्धा चाहिए, परन्तु अन्धी श्रद्धा नहीं। -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
संकलन: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

मंगलवार, 18 मई 2021

श्रीराम का जीवन अनुकरणीय!🌼 ShreeRam ka Jeevan Anukarneey | Ramayan Pravachan | Santmat Satsang

अवध तहाँ जहँ राम निवासू। तहँइँ दिवसु जहँ भानु प्रकासू॥

जौं पै सीय रामु बन जाहीं। अवध तुम्हार काजु कछु नाहीं॥

श्रीराम का जीवन अनुकरणीय!🌼

भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे। अपनी मर्यादा के पालन में उन्होंने बहुत दुख सहे। पिता की आज्ञा का पालन हो या जनता की आवाज पर पत्‍‌नी का त्याग, उन्होंने मर्यादा का पालन कर समाज को अनुपम संदेश दिया है। आज लोग (खासकर युवक) अपने पथ से विचलित होता जा रहा है। माता पिता की अवज्ञा दिशा हीनता व जीवन में गलत लक्ष्यों का निर्धारण कर कुंठित व परेशान है। ऐसे में प्रभु श्रीराम का जीवन दर्शन युवाओं के लिए अनुकरणीय है। 

राम के चरित्र के कोटिवां अंश के श्रवण मात्र से तथा धारण कर लेने से पूरे समाज की दिशा परिवर्तन हो सकता है।राम जन-जन के थे, वे शबरी के राम थे, निषाद राज के राम थे तथा भाई के द्वारा तिरस्कृत विभीषण के लिए भी राम थे। समाज में ऊंच-नीच जाति धर्म का कोई बंधन व भेदभाव न रहे इसके लिए उन्होंने आम जनों की भांति जंगल में वास किया। गुरु के पैर दबाए तथा कुश पर शयन किया। अधर्म के नाश के लिए उन्होंने रावण जैसे महापापी का संहार भी किया। राम की कथा व राम का चरित्र वर्तमान में समाज के लिए उपयोगी ही नहीं अनिवार्य है।

🙏🌼🌿।। जय गुरु महाराज ।।🌿🌼🙏

रविवार, 16 मई 2021

मूर्ख | Murkh | जो व्यक्ति अपना काम छोड़कर दूसरों के काम में हाथ डालता है, वह वाकई में बुद्धिहीन कहलाता है। Santmat Satsang

🌼🌻मूर्ख🌻🌼

भगवान एक मूर्ख को उसके परिणाम भुगतने देता है। मूर्ख अपनी मूर्खता को प्रकट करता है। मूर्ख लोग अभिमानी होते हैं। मूर्खों ने हमेशा ज्ञान का तिरस्कार किया। 
मूर्ख लोग मूर्ख बनने में लगे रहते हैं। मूर्ख कभी संतुष्ट नहीं होता है वह दुष्ट और धोखेबाज होता है। 

बिना पढ़े ही स्वयं को ज्ञानी समझकर अंहकार करने वाले व्यक्ति, दरिद्र होकर भी बड़ी- बड़ी योजनाएं बनाने वाला व्यक्ति अज्ञानी और कम अक्ल वाला ही माना जाता है। जो व्यक्ति बिना पढ़े-लिखे, ज्ञान अर्जित किए घमंड रखने वाला, दरिद्र होकर भी जो व्यक्ति उसको दूर करने की बजाए बस बड़ी-बड़ी बातें करता है सिर्फ और सिर्फ मूर्ख व्यक्तियों की श्रेणी में आता है।

बिना मेहनत के धन की लालसा रखने वाला बैठे-बिठाए धन पाने की कामना करने वाला व्यक्ति मूर्ख कहलाता है। 


स्वमर्थ य: परित्यज्य परार्थमनुतिष्ठति।
मिथ्या चरति मित्रार्थे यश्च मूढ: स उच्यते।।

जो व्यक्ति अपना काम छोड़कर दूसरों के काम में हाथ डालता है, वह वाकई में बुद्धिहीन कहलाता है। यह संसार का नियम है कि मनुष्य को पहले खुद में समझदार और सक्षम होना चाहिए तब ही दूसरों के मामले में पड़ना चाहिए। हालांकि संसार में ऐसे लोग भी हैं जो अपना काम तो ठीक से पूरा कर नहीं पाते हैं बल्कि दूसरों के मामले में भी पड़ जाते हैं, अब ऐसे लोग मूर्ख के अलावा और क्या कहे जाएंगे।

मित्रता संसार में बहुत ही अनमोल रिश्ता होता है इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन सही और गलत की पहचान होना अति आवश्यक है। एक अच्छे दोस्त की यही पहचान होती है कि अपने दोस्त को गलत मार्ग पर जाने से रोके, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मित्रता के चलते गलत काम में साथ देते हैं। ऐसे लोगों को भी मूर्ख कह सकते हैं। महाभारत में कर्ण समझदार होते हुए भी दुर्योधन के गलत कार्यों में भागी बने रहे परिणाम यह हुआ कि मित्र का पूरा विनाश हो गया और खुद भी मारे गए।

वालाअकामान् कामयति य: कामयानान् परित्यजेत्।
बलवन्तं च यो द्वेष्टि तमाहुर्मूढचेतसम्।।

जो व्यक्ति अपने हितैषियों को त्याग देता है तथा अपने शत्रुओं को गले लगाता है, उसके जितना मूर्ख तो कोई और हो ही नहीं सकता है। व्यक्ति अपने शुभचिंतक और दुश्मन में भेद करना नहीं जानता। यदि कोई व्यक्ति अपना भला सोचने वाले को छोड़ दे और उसकी जगह अपने दुश्मन का दामन थाम ले तो वह परममूर्ख माना जाएगा।
(प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार, गुरुग्राम)
🙏🌼🌿।। जय गुरु ।।🌿🌼🙏

शनिवार, 2 जनवरी 2021

महर्षि संतसेवी जी महाराज का देशप्रेम | Maharshi Santsevi Paramhans Ji Maharaj ka Deshprem | Santmat Satsang

🙏🌹श्री सद्गुरवे नमः🌹🙏
🍁महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज का देश प्रेम:-
देश-हित में अपना हित निहित है, ऐसी भावना होनी चाहिए। देश की सुरक्षा अपनी सुरक्षा है। देश-हित को दृष्टिगत करते हुए हमारा कर्म होना चाहिए। हम भूल कर भी ऐसा कार्य नहीं करें, जिससे देश का अहित हो। 
जिस जननी के गर्भ से हम जन्म लेते हैं, वह हमारी माता कहलाती है। उसी प्रकार जिस राष्ट्र की धरती पर हम जन्म धारण करते हैं, वह हमारी मातृ तुल्य होती है, बल्कि कुछ अंशों में उससे भी विशेष कहा जा सकता है। 
'जननि जन्म भूमिश्च, स्वर्गादपि गरीयसि।'

जन्मदातृ मातृ की गोद में अज्ञानावस्था में रहकर हम मात्र कुछ महीने मल-मूत्र विसर्जन करते हैं; किंतु पृथ्वी माता की गोद में हम ज्ञानावस्था में रहकर जीवन-पर्यंत मल-मूत्र त्याग करते हैं। जन्मदातृ माता की गोद में हम शैशवावस्था में रहकर स्वल्प काल ही उनका दुग्ध-पान कर किलकारियां भरते हैं; किंतु धरती माता की गोद में हम जीवन-पर्यंत खाते-पीते और आनंद-चैन की वंशी बजाते हैं। इसकी सर्वतोमुखी उन्नति के लिए हमें तन, मन तथा धन समर्पण हेतु सतत प्रस्तुत रहना चाहिए। इतना ही नहीं, देश-रक्षार्थ यदि अपने को बलिवेदी पर चढ़ाना पड़े, तो उससे मुंह नहीं मोड़ना चाहिए।
जात-पात, ऊंच-नीच, छुआ-छूत एवं पंथाई भावों के भूत को दूरीभूत कर एकजुट होकर हम रहें। सत्य, प्रिय, मृदु एवं मितभाषी बनें। परोपकार की भावना रखें। प्रमुखोपेक्षी न हों। स्वावलंबी जीवन जीयें यानी श्रम-सीकर की सच्ची कमाई कर अपना जीवन-यापन करें। पवित्रोपार्जन से प्राप्त वस्तुओं में संतुष्ट रहें। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, चिढ़, द्वेष, ईर्ष्या आदि तामस विकारों से बचते हुए दया, क्षमा, नम्रता, शील, संतोष प्रभृत्ति सात्विक गुणों को धारण करना हितकर है। 
जिस प्रकार परम संत बाबा देवी साहब का अंतिम उपदेश 'दुनिया वहम है, अभ्यास करो।' महर्षि मेँहीँ की अंतिम वाणी 'सुकिरत कर ले, नाम सुमिर ले, को जाने कल की।' उसी प्रकार इनका अंतिम उपदेश 'धीरज धरै तो कारज सरै' मानव मात्र के कल्याण हेतु प्रेरणाप्रद एवं अनुकरणीय है।
(प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता)
🙏🌼🌿।। जय गुरु ।।🌿🌼🙏

सोमवार, 9 दिसंबर 2019

सत्संग-महिमा | SATSANG MAHIMA | Santmat Satsang | Maharshi Mehi Ashram | Kuppaghat-Bhagalpur

सत्संग-महिमा
☘शास्त्रों में सत्संग की महिमा खूब गाई गई है। 'श्रीरामचरितमानस' के सुंदरकांड में आता हैः

तात स्वर्ग आपवर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तुल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग।।

हे तात ! 'स्वर्ग और मोक्ष के सब सुखों को तराजू के एक पलड़े में रखा जाये तो भी वे सब सुख मिलकर भी दूसरे पलड़े में रखे हुए उस सुख के बराबर नहीं हो सकते, जो लव माने क्षण मात्र के सत्संग से होता है।'

एक क्षण के सत्संग से जो वास्तविक आनंद मिलता है, वास्तविक सत्य स्वरूप का जो ज्ञान मिलता है, जो सुख मिलता है वैसा सुख स्वर्ग में भी नहीं मिलता। इस प्रकार, सत्संग से मिलने वाला सुख ही वास्तविक सुख है।

'श्रीयोगवाशिष्ठ महारामायण' में ब्रह्मर्षि वशिष्ठजी महाराज मोक्ष के द्वारपालों का विवेचन करते हुए भगवान श्रीराम से कहते हैं-

"शम, संतोष, विचार एवं सत्संग – ये संसाररूपी समुद्र से तरने के उपाय हैं। संतोष परम लाभ है। विचार परम ज्ञान है। शम परम सुख है। सत्संग परम गति है।"

सत्संग का महत्त्व बताते हुए उन्होंने कहा हैः

विशेषेण महाबुद्धे संसारोत्तरणे नृणाम्।
सर्वत्रोपकरोतीह साधुः साधुसमागमः।।

'हे महाबुद्धिमान् ! विशेष करके मनुष्यों के लिए इस संसार से तरने में साधुओं का समागम ही सर्वत्र खूब उपकारक है।'

सत्संग बुद्धि को अत्यंत सात्त्विक बनाने वाला, अज्ञानरूपी वृक्ष को काटने वाला एवं मानसिक व्याधियों को दूर करने वाला है। जो मनुष्य सत्संगतिरूप शीतल एवं स्वच्छ गंगा में स्नान करता है उसे दान, तीर्थ-सेवन, तप या यज्ञ करने की क्या जरूरत है ?"

कलियुग में सत्संग जैसा सरल साधन दूसरा कोई नहीं है। भगवान शंकर भी पार्वतीजी को सत्संग की महिमा बताते हुए कहते हैं-

उमा कहउँ मैं अनुभव अपना।
सत हरि भजन जगत सब सपना।।

सभी ब्रह्मवेत्ता संत स्वप्न समान जगत में सत्संग एवं आत्म-विचार से सराबोर रहने का बोध देते हैं। मेरे गुरुदेव के उपदेश एवं आचरण में कभी-भी भिन्नता देखने को नहीं मिलती थी। वे सदैव आत्मचिंतन में निमग्न रहने का आदेश देते थे।

बुधवार, 4 दिसंबर 2019

भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध में अर्जुन से कहा था..... -महर्षि मेँहीँ | Maharshi Mehi | Krishna

🙏🌹श्री सद्गुरवे नमः🌹🙏


🍁भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध में अर्जुन से कहा था कि तुम किसको मारोगे? कुरुक्षेत्र के मैदान में जितने लड़ने आए हैं, ये पहले नहीं थे और पीछे नहीं रहेंगे, ऐसी बात नहीं। शरीर बदलता है, आत्मा अविनाशी है। इस शरीर में जीवात्मा है और शरीर के बंधन में है। शरीर के बंधन में रहने से क्या होता है, यह सबको मालूम है। कभी सुख, कभी दुःख दिन रात की तरह आता-जाता रहता है। कभी लगभग चौदह घंटे की रात और कभी चौदह घंटे का दिन होता है। लेकिन बराबर न रात रहती है, न दिन रहता है। उसी तरह दुःख कभी अधिक, कभी कम। कभी पाण्डव बड़े सुख में थे और कभी भीख भी माँगी, कभी नौकरी भी की। नौकरी में युधिष्ठिर ने भी मार खायी और द्रौपदी ने भी। महारानी सीता भी रोयीं। एक बार कौन कहे, दो-दो बार। 

सूरदासजी ने कहा- 
*ताते सेइये यदुराई।*
*सम्पति विपति विपति सों सम्पति देह धरे को यहै सुभाई।।* 
*तरुवर फूलै फलै परिहरै अपने कालहिं पाई।* 
*सरवर नीर भरै पुनि उमड़ै सूखे खेह उड़ाई।।* 
*द्वितीय चन्द्र बाढ़त ही बाढे़े घटत घटत घटि जाई।* 
*सूरदास सम्पदा आपदा जिनि कोऊ पतिआई।।* 
सम्पदा व आपदा, किसी का विश्वास नहीं करो कि यह सदा रहेगी। यह तो प्रत्यक्ष अपने देश में हुआ। अंग्रेज बात-की-बात में भाग गया। जमींदारों की जमींदारी चली गई। बहुत-बहुत जमीन भी अब किसी के पास नहीं रहने को। कभी भारत बड़ा धनी था और अब भारत ऋणी है; लेकिन सदा ऋणी रहेगा, ऐसा नहीं।
इस शरीर में कभी सुख, कभी दुःख होता है। सम्पत्ति में बाहर में तो अच्छा लगता है; लेकिन अंतर जलता रहता है। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है- 
*द्रव्यहीन दुख लहइ दुसह अति, सुख सपनेहु नहिं पाये।*
*उभय प्रकार प्रेत पावक ज्यों, धन दुख प्रद स्रुति गाये।।* 
धन होने और नहीं होने, दोनों तरहों में दुःख है। धन नहीं है, तो जलते हैं और धन हो गया, तो जैसे भूत चढ़ गया, चैन नहीं लेने देता। जो सब राष्ट्र वा एक ही राष्ट्र बड़ा धनवान है, तो चुपचाप रहे। लेकिन चुपचाप रहता कहाँ है? उसको भूत लगा है, अपने ऐश्वर्य को बढ़ाने के लिए। भारत कहता है कि हमारे पास धन नहीं है, इससे दुःखी हैं और अमेरिका कहता है-‘हमारे पास अमित धन है, धन के भोगों से बचाओ।’ वह भोग के मारे पागल हो रहा है। इस तरह धन सुख देनेवाला नहीं है। सुख कहने मात्र का है, यथार्थ में नहीं।
-संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज 

सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...