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मंगलवार, 12 जून 2018

जाति, धर्म, रूप, कुल, धन, बल के बल पर नहीं फलती भक्ति | महर्षि मेँहीँ | Jaati-Dharma-Rup, Kull, Dhan, Bal, ke bal par bhakti nahi falti | Maharshi Mehi | Santmat-Satsang

“जाति, धर्म, रूप, कुल, धन, बल के बल पर नहीं फलती भक्ति”

“पूर्वकाल में एक भक्तिन हुई थीं, जो एक भील की लड़की और मतंग ऋषि की शिष्या थीं | उसका नाम शबरी था | उसका विवाह शबर जाती के एक जंगलवासी लड़के से हुआ था |

शबरी पूर्व जन्म में राजरानी थी | वह सत्संग करना चाहती थी, पर उसे परदे के अन्दर रहना पड़ता था | वह चाहती थी कि परदे के अन्दर न रहूँ | इसलिए उसका अगला जन्म एक भील के घर में हुआ | शबरी के साथ विवाह कर उसका पति उसे अपने घर ले जा रहा था | शबरी कुरूपा थी | उसका पति रास्ते में सोचने लगा कि इसको घर ले  जाकर क्या करूँगा, इसको तो देखकर लड़के-बच्चे डरेंगे | उसका पति छोड़ना चाहता था और इधर शबरी भी साथ नहीं जाना चाहती थी | जंगल का रास्ता था | मौका पाकर उसका पति उसको छोड़कर भाग गया |

तब शबरी उसी जंगल में मतंग ऋषि के आश्रम के आस-पास रहने लगी  और मौका खोजने लगी कि कोई सेवा करूँ | उसने देखा कि एक साधु बहुत सवेरे उठकर रास्ते पर झाड़ू लगाते हैं | शबरी को वही काम पसंद आ गया | वह उस साधु से पहले ही उठकर झाड़ू लगाने लगी |

एक दिन उस साधु ने शबरी को झाड़ू लगाते ही पकड़ा और मतंग ऋषि के पास ले आया | मतंग ऋषि ने कहा कि इसको छोड़ दो, यह बड़ी भक्तिन है | मतंग ऋषि से ज्ञान लेकर उसने भक्ति की और उसी आश्रम में उसकी भक्ति पूर्ण हुई | शबरी सब प्रकार की भक्ति में योग्य हो गई |

जब मतंग ऋषि संसार से विदा हो गए, तब छोटी जाति की होने के कारण साधुओं ने उसको वहाँ के तालाब से पानी लेने से मना कर दिया | फल यह हुआ कि उस तालाब का पानी सड़ गया | तब साधुओं को भी दूर से पानी लाना पड़ने लगा |

अंत में श्रीराम उस आश्रम में आये और वहाँ के साधुओं से पूछा कि आपलोगों को कोई कष्ट भी है ? उनलोगों ने कहा – “देखिये न, जिस तालाब से हमलोग पानी लाते थे, उसका पानी सड़ गया है | हमलोगों को दूर से पानी लाना पड़ता है | हमें यही एक कष्ट है | आप उस तालाब में अपने चरण रख दें, तो पानी शुद्ध हो जाएगा |”

साधुओं के कहने पर भगवान् राम उस तालाब में गए; परन्तु पानी शुद्ध नहीं हुआ | तब भगवान् के कहने पर शबरी उस तालाब में गयी | उसके जाने से पानी फिर शुद्ध हो गया |

किसी को इस बात का घमंड नहीं करना चाहिए कि मैं चतुर हूँ, धनी हूँ, कुलीन हूँ, आदि | घमण्ड में भक्ति नहीं होती है | घमण्ड त्यागनेवाले से ही भक्ति होती है |

“जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई |
धन बल परिजन गुन चतुराई ||
भगति हीन नर सोहइ कैसा |
बिनु जल बारिद देखिय जैसा ||”
– गोस्वामी तुलसीदास जी

-- संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस के एक प्रवचन के अंश।
।। जय गुरु ।।

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