|| दान ||
व्यक्ति के व्यक्तित्व को ऊंचा उठाने के लिए महत्त्वपूर्ण है ‘दान’। किसी संस्था, मंदिर या किसी गरीब को सहयोग कर देना ही दान नहीं है। प्रेम, सहयोग और करुणा का दान भी आपके जीवन का अंग होना चाहिए।
परमात्मा की प्रकृति में बादलों का स्वभाव ही देना है। उनकी महत्ता इसी बात में है कि वे बरसें। संसार के लिए जो वस्तु उपयोगी है, वही महत्त्वपूर्ण है।
हमारा उपयोग जब समाज और मानवता के हित में हो, तभी हम और आप उपयोगी और पूजनीय कहलाएंगे। स्वयं से यह प्रश्न अवश्य करें कि परिवार को आपने क्या दिया? समाज को आपने क्या दिया? राष्ट्र को आपने क्या दिया? धरती को आपने क्या दिया? संसार को क्या देकर जाएंगे? पेड़-पौधे सब अपने बीज धरती पर छोड़कर जाते हैं। यह परंपरा चलती रहनी चाहिए। हरियाली की परंपरा, फलों की परंपरा, फूलों की परंपरा, जाते समय संसार को कुछ-न-कुछ देकर जाने की परंपरा संसार से मिटनी नहीं चाहिए। जो व्यक्ति बांटना सीख गया, देना सीख गया, उसे जीना आ गया।
आप दाता बनें इसके लिए यह जरूरी नहीं कि कोई दूसरे भिखारी बनें। दान सहयोग है, प्रेम है जो एक भाई दूसरे भाई को देना चाहता है। एक दूसरे के प्रति सहयोग ही दान है। किसी को खून की आवश्यकता पड़ गयी तो आपने खून दे दिया, अहसान जताने की कोई बात नहीं। इंसान दूसरे इंसान के काम आया, यह दान है। समाज मे सहयोग की भावना पैदा करना और सहयोग की भावना जगाना भी दान है। कमजोर को बलवान बनाने की चेष्टा करना दान है। फिर जब वह बलवान हो जाए तब उसको तैयार करना कि वह भी किसी कमजोर का सहयोग कर उसे स्वावलंबी बनाए। इसे दान भावना कहा गया है।तीन लोक नौ खंड में गुरु से बड़ा न कोय।
करता करे न करिय सके, गुरु करे सो होय।।
जय गुरु महाराज !
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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