"एक मुँह और दो कान का अर्थ है कि हम अगर एक बात बोलें तो कम से कम दो बात सुनें भी।"
दूसरे को दबाना अहंकार कहलाता है!
एक जीव दूसरे जीव का शत्रु नहीं होता, बल्कि मित्र होता है। हमारे द्वारा किये गये पाप कर्म ही वास्तव में हमारे शत्रु हैं। ज्ञानी वही है जो दूसरों के दोष न देखकर गुणों को देखता है।
अहंकारी व्यक्ति सामने वाले को नीचा दिखाने का प्रयत्न करता है। नीचा दिखाने वाला नीच और ऊंचा उठाने वाला उच्च व्यक्ति होता है। पद प्रतिष्ठा, धन दौलत आदि पाकर सामने वाले को दबाना और नीचा दिखाना अहंकार कहलाता है।
मद आठ प्रकार के होते हैं, मद मूढ़ता और अनायतन हमारी श्रद्धा को खंडित करती है। श्रद्धा के बिना कार्य की सिद्धी नहीं होती। परमात्मा की प्राप्ति के लिए श्रद्धा सीढ़ी का कार्य करती है। श्रद्धा को मोक्ष महल की प्रथम सीढ़ी कहा गया है।
सत्संग भाग्य से मिलता है। ध्यान-भजन करना पड़ता है। भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाला व्यक्ति, चमक दमक में रहने वाला, पद - प्रतिष्ठा चाहने वाला, अहंकार से युक्त व्यक्ति कभी भी पूर्ण ईश्वर भक्त नहीं हो सकता। ऐसे व्यक्ति सिर्फ़ अपनी स्वार्थ सिद्धि एवं वर्चस्व के लिए धर्म में प्रवेश करता है। ऐसे व्यक्ति बाहर से धार्मिक कहलाते हैं अन्दर से होते नहीं। समय का इंतजार न करें बल्कि समय का सदुपयोग कर अन्तः स्थल से धार्मिक बनें। अगर हमारा लक्ष्य सत्संग है, प्रभु प्राप्ति है तो हमें समय रहते ही सचेत होकर असल मन से पवित्रात्मा होकर उस ओर लगना चाहिए, न कि किसी वाद -विवाद में पड़ कर समय नष्ट करना चाहिए। सोच ऊंची और बड़ी होनी चाहिए। तभी हम असल में धार्मिक हो सकते हैं।
दूसरों की निंदा न करें, निंदा करने वाला अपने ऊपर कीचड़ उछालकर अपनी आत्मा को काला करता है। दूसरों की प्रशंसा करोगे तो लोग आपकी प्रशंसा करेंगे। यदि आप किसी को सहारा नहीं दे सकते तो धक्का देकर मत गिराओ।
याद रखें...
"देने के लिए दान, लेने के लिए ज्ञान, और त्यागने के लिए अभिमान सर्वश्रेष्ठ है।"
-"महान बनने की चाहत तो हर एक में हैं... पर पहले इंसान बनना अक्सर लोग भूल जाते हैं..."
"यदि किसी भूल के कारण कल का दिन दु:ख में बीता है तो उसे याद कर आज का दिन व्यर्थ में न बर्बाद करो।" - स्वामी विवेकानंद
-"जिस समय हम किसी का अपमान कर रहे होते हैं, दरअसल, उस समय हम अपना सम्मान खो रहे होते है..."
-"किसी शांत और विनम्र व्यक्ति से अपनी तुलना करके देखिए, आपको लगेगा कि, आपका घमंड निश्चय ही त्यागने जैसा है। "
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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