एक-दूजे के पूरक विज्ञान और अध्यात्म!
ऐसा माना जाता है कि विज्ञान और अध्यात्म एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी और विरोधाभासी हैं। अक्सर यह आम धारणा लोगों के दिमाग में घर कर जाती है और वे इससे अलग सोचना नहीं चाहते। लेकिन यही सोच दरअसल वैचारिक विकास के रुकने का भी संकेत है। जब हम अध्यात्म को संकीर्णताओं के घेरे में कैद कर देते हैं तब भी और जब हम विज्ञान का उपयोग विध्वंस के लिए करने लगते हैं तब भी, दोनों ही तरीकों से हम विनाश की ओर कदम बढ़ाते हैं तथा विकास से कोसों दूर होते चले जाते हैं।
अध्यात्म तथा विज्ञान दोनों की उत्पत्ति सृजन के मूल मंत्र के साथ हुई है। सृष्टि ने यह विषय बाहरी जगत तथा अंतरात्मा को जोड़ने के उद्देश्य से उपहारस्वरूप मनुष्य को दिए हैं। विज्ञान और अध्यात्म परस्पर शत्रु नहीं मित्र हैं, एक-दूजे के संपूरक हैं ।
विज्ञान हमें अध्यात्म से जोड़ता है और अध्यात्म हमें वैज्ञानिक तरीके से सोचने का सामर्थ्य देता है। विज्ञान का आधार है तर्क तथा नई खोज और किसी धर्मग्रंथ में भी इन्हीं बातों को कहा गया है। इसलिए अध्यात्म एवं विज्ञान में एक जैसी समानताएँ और एक जैसे विरोधाभास हैं।
यदि विज्ञान बाहरी सच की खोज है तो अध्यात्म अंतरात्मा के सच को जानने का जरिया है। दोनों ही माध्यमों द्वारा हम इस सच को जानने के लिए ज्ञान के मार्ग पर बढ़ते हैं और उद्देश्य उक्त सच को जानकर, उस पर मनन कर प्राणीमात्र की भलाई में उसका उपयोग करना होता है। दोनों ही जगह ज्ञान का क्षेत्र अनंत है। विज्ञान के जरिए आप प्रकृति को प्रेम करना सीखते हैं। तकनीक या विज्ञान कभी भी प्राणियों को जाति या धर्म के नाम पर बाँटता नहीं, और यही अध्यात्म का असल अर्थ भी है।
जब इन दोनों को मिलाकर समाज के उत्थान हेतु उपयोग में लाया जाए, तभी इनकी असल परिभाषा सार्थक होती है। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए वैज्ञानिक उपायों तथा खोजों की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार मन को स्वस्थ बनाए रखने के लिए अध्यात्मरूपी मनन जरूरी होता है। इन दो मित्रों की मैत्री को अटूट बनाकर सारे समाज में शांति और स्नेह का वातावरण निर्मित किया जा सकता है।
।। जय गुरु ।।
प्रस्तुति एस.के. मेहता, गुरुग्राम
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