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शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

संत की पहचान दुर्लभ है | Sant ki pahchan durlabh hai | जब हम सच्चाई को खुद जान लेंगे तब उस परम शक्ति की सत्ता पर स्वत: प्रतीति हो जाएगी।

संत की पहचान दुर्लभ है। इसलिए गोस्वामी तुलसीदास जी को लिखना पड़ा; -

जाने बिनु न होई परतीती।
बिनु परतीति होई नहिं प्रीती॥
प्रीति बिना नहीं भगति दृढ़ाई।
जिमि खगेश जल की चिकनाई॥
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सर्वव्यापक परमात्मा को जानकर ही उन पर प्रतीति यानी विश्वास किया जा सकता है। इसके लिए स्वयं अपने भीतर निरीक्षण करके देखना है कि क्या सचमुच मुझमें शांति है। विश्व के सभी संतों, सत्पुरुषों और मुनियों ने यही सलाह दी है कि ‘अपने आपको जानो’। स्पष्ट है कि उनकी सलाह बिना जाने ही मान लेने की नहीं है। उन्होंने साफ तौर पर यह सलाह दी है कि पहले जानो तब मानो। यहां यह बात भी छिपे रूप से कही गयी है कि जब मनुष्य अपने आपको जान लेगा तब उसे उस परम शक्ति का भी ज्ञान हो जाएगा जिसका वह खुद अंश है। लेकिन इस बात को भी हमारे मनीषियों ने केवल बुद्धि के स्तर पर स्वीकार करने के लिए नहीं कहा है, भावावेश में आकर या श्रद्धा के मारे स्वीकार करने की सलाह नहीं दी है, बल्कि अपनी अनुभूति के स्तर पर अपने बारे में सचाई को जानने का ईशारा किया है। क्योंकि जब हम सच्चाई को खुद जान लेंगे तब उस परम शक्ति की सत्ता पर स्वत: प्रतीति हो जाएगी।
।।जय गुरु महाराज।।
Posted by S.K.Mehta, Gurugram

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