श्री सद्गुरवे नमः
अपने शरीर को शौच से पवित्र करो।
अपने शरीर को शौच से पवित्र करो। लेकिन यह इतने से ही पवित्र नहीं होता है। हृदय की पवित्रता असली पवित्रता है। हृदय में पाप विचार न आने पाये। हृदय में पाप विचार आने से भी पाप होता है। जिसे कोई नहीं देखता परमात्मा देखते हैं। अन्तःकरण की शुद्धि पवित्र कर्म करने से होती है। तुम्हारा शरीर शिवालय है, विष्णु मन्दिर है। इसके लिए पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं। अपना अन्तःकरण शुद्ध करना होता है। बाहर में लोग शिवालय, देवालय बनाते हैं। इससे संसार में भले कुछ प्रतिष्ठा हो, किन्तु उसे मोक्ष नहीं मिलता। यदि अपने अन्तःकरण को शुद्ध करता तो उसे मोक्ष हो जाता। जैसे शिवालय को पवित्रता से रखते हैं, उसी तरह अपने शरीर को भी पवित्र रखो। जिस किसी ने संसार में बड़ा-बड़ा काम किया है, उसका नाम आज है; किन्तु उसको मोक्ष नहीं मिला। यदि अपने शरीर को, अपने अन्तःकरण को पवित्र रखो, ध्यान करो तो मोक्ष मिलेगा। सारे दुःखों से छूट जाओगे।
-संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस
।।जय गुरु महाराज।।
शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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