धैर्य;
मनु भगवान ने धर्म के दस लक्षणों का वर्णन करते हुए धृति (धैर्य) को पहला स्थान दिया है। वास्तव में धैर्य का स्थान जीवन में इतना ही ऊँचा है कि उसे प्रारम्भिक सद्गुण माना जाए। हर एक कार्य कुछ समय उपरान्त फल देता है, हथेली पर सरसों जमते नहीं देखी जाती, किसान खेत बोता है और फसल की प्रतीक्षा करता रहता है। यदि हम अधीर होकर बोये हुए दानों का फल उसी दिन लेना चाहे तो उसे निराश ही होना पड़ेगा।
लोग किसी कार्य को उत्साहपूर्वक आरम्भ करते हैं किन्तु फल की शीघ्रता के लिए इतने उतावले होते हैं कि थोड़े समय तक प्रतीक्षा करना या धैर्य धारण करना उन्हें सहन नहीं होता। अपितु प्रतिभा, योग्यता, कार्यशीलता, बुद्धिमत्ता सभी कुछ होने के बावजूद भी अधीरता और उतावलेपन का एक ही दोष उन सारे गुणों पर पानी फेर देता है।
धर्म का आरम्भिक लक्षण धैर्य है। हमें चाहिए कि किसी कार्य को खूब आगा-पीछा सोच-समझने के बाद आरम्भ करें किन्तु जब आरम्भ कर दें तो दृढ़ता और धैर्य के साथ उसे पूरा करने में लगे रहें। विषम कठिनाइयाँ, असफलताएं, हानियाँ प्रायः हर एक अच्छे कार्य के आरम्भ में आती देखी गई हैं पर यह बात भी निश्चय है कि कोई व्यक्ति शान्त चित्त से उस मार्ग पर डटा रहे तो एक दिन पथ के वे काँटे फूल बन जाते हैं और सफलता प्राप्त होकर रहती है।
।। जय गुरु ।।
शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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