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गुरुवार, 20 मई 2021

एक पौराणिक कथा : "नचिकेता" | Nachiketa | Nachiketa-Ek pauranik katha

 एक पौराणिक कथा : "नचिकेता"

बाजश्रवा ऋषि नचिकेता के पिता थे| उन्होंने अपनी सुख-समृद्धि हेतु यज्ञ किया तथा दान में उन बूढ़ी गायों को दिया जो दूध भी नहीं देती थी| नचिकेता को पिता का अपनी सम्पति के प्रति यह मोह तथा दान के नाम पर आडम्बर कतई पसंद नहीं आया| उन्होंने पिता से प्रश्न किए तथा सबसे प्रिय वस्तु को दान में देने की बात कही| 

बाजश्रवा ने क्रोधित होकर नचिकेता को यमराज को दान में दे दिया|नचिकेता पितृ आज्ञा का पालन करते हुए यम के द्वार पर आ पँहुचा| तीन दिनों तक यम की प्रतीक्षा के बाद उसकी भेंट यमराज से हुई| यमराज ने उसकी पितृ भक्ति से प्रसन्न होकर उसे तीन वरदान मांगने को कहा| पहले वरदान में उसने पिता की सुख-समृद्धि तथा क्रोध की शांति मांगी| दूसरे वरदान में नचिकेता ने स्वर्ग प्राप्ति का रहस्य को जानने की इच्छा व्यक्त की| यमराज ने नचिकेता को इन रहस्यों को जानने का मार्ग सुझाया और उसे वापिस भेज दिया|इस पौराणिक कथा को वर्तमान संदर्भों के प्रासंगिकता को निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:-

1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं असहमति की स्वीकार्यता - नचिकेता अपने पिता को समझाते हुए कहता है कि यदि कोई व्यक्ति पूर्ण विवेक साथ आपके विचारों से भिन्न बात कर रहा हो तो उसकी बातों को सुनना ही सहिष्णुता की निशानी होती है| प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तथा यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक के विचार आपके विचारों से मेल खाए| हो सकता है कि कोई आपके प्रति अपनी असहमति प्रकट करे | अतः उसकी असहमति को भी सहनशीलता के साथ स्वीकार करना ही विकसित विवेक का सूचक होता है| 

2. सत्य की खोज:-सत्य को प्राप्त करना सर्वाधिक कठिन कार्य है| नचिकेता सत्य की महत्ता प्रतिपादित करते हुए अपने पिता से कहता है कि जीवन सत्य को प्राप्त करने हेतु न जाने कितनी महान आत्माओं ने युगों तक संघर्ष किया है, तब जाके उन्हें सत्य का साक्षात्कार हुआ है| सच सदैव विद्रोही की तरह मनुष्य के विवेक को चुनौती देता रहा है| उसे पाने के लिए विवेक और साहस से काम लेना पड़ता है| मनुष्य का विवेक और साहस ही सबसे बड़ी पूंजी है जो उसे सत्य का साक्षात्कार करवाती है|

3. नई और पुरानी पीढ़ी का संघर्ष"-बाजश्रवा और नचिकेता का संघर्ष दो पीढ़ियों का संघर्ष है| बाजश्रवा की पीढ़ी पुरानी मान्यताओं पर आधारित है जो दैहिक सुखभोग की जीवन शैली को अंतिम सत्य मानती है और ऐसे ही सुखों की प्राप्ति हेतु स्वर्ग प्राप्ति की कामना करती है| नचिकेता नई पीढ़ी का प्रतिनिधि है जो वैचारिक स्वतंत्रता, आत्मशुद्धि और विवेकशीलता द्वारा हर चीज को जानने-परखने के बाद ही उसे जीवन में अपनाना चाहता है| वह खोखली मान्यताओं का विरोध करता है|

4. आस्था और तर्क का संघर्ष:-नचिकेता ऐसी आस्था को मानने से पूर्णतः इन्कार करता है जो विवेकहीन, रूढ़िवादी परंपराओं तथा स्वार्थ से प्रेरित हो| यह कैसी आस्था है जहाँ एक ओर उच्चतर जीवन मूल्यों की दुहाई दी जाती है दूसरी ओर अंधआस्था के सहारे लोग अपना स्वार्थ पूरा करने में लगे रहते है| नचिकेता स्वयं को नास्तिक सिद्ध करते हुए कहता है वह अपनी अनास्था में अधिक धार्मिक है क्योंकि वह तर्क के सहारे जीवन यापन करना चाहता है न कि धर्म का व्यापार करके| वह नहीं चाहता कि किसी प्रकार की अंध परंपराएं और कर्मकांड उसकी विवेकशीलता और तर्कशीलता की आवाज को दबा दे|

5. रूढ़िवादिता एवं धार्मिक आडंबरों का विरोध:-नचिकेता को रूढ़ियों का अंधानुकरण स्वीकार नहीं है| उसे लगता है कि धार्मिक अनुष्ठानों में जो भी सामग्री लाई जाती है, वे सब दिखावा मात्र के लिए है| अन्न, घी, पशु बलि और पुरोहित सभी दिखावा है, धर्म नहीं है| देवताओं को प्रसन्न कर स्वर्ग पाने की इच्छा मात्र धर्म का व्यापार है|“यह सब धर्म नहीं- धर्म सामग्रीका प्रदर्शन है|अन्न, घृत, पशु, पुरोहित,मैं”

6. पशु बलि का विरोध:-नचिकेता उस धार्मिक रूढ़ि को निरर्थक मानता है जहाँ किसी निरीह जीव की हत्या द्वारा मनोकामनाएँ पूरी की जाती है| वह अपने पिता से कहता है कि यदि स्वर्ग प्राप्ति का विश्वास पशु बलि पर टिका है तो उसे स्वर्ग नहीं चाहिए| जिस विश्वास का परिणाम हत्या है, उसे ऐसी आस्था, ऐसा विश्वास स्वीकार्य नहीं है| पशु बलि से प्रसन्न होने वाले देवता न जाने कब क्या मांग ले, यह सोचकर भी उसी से भय लगता है|“जो केवल हिंसा से अपने कोसिद्ध कर सकता है|नहीं चाहिए वह विश्वास,जिसकी चरम परिणतिहत्या हो|”

7. जीवन का एकमात्र सत्य मृत्यु :-नचिकेता इस परम सत्य को भली-भांति समझता है कि मनुष्य मरणशील है, मृत्यु उसके जीवन का अनिवार्य, अभिन्न सत्य है| मृत्यु का सामना मनुष्य को बिल्कुल अकेले रहकर करना होता है, उसके सामने वह निपट अकेला होता है| मृत्यु जीवन का अंतिम और एकमात्र सत्य है| इसके सामने कोई भी आडम्बर, कोई वरदान, कोई मोह नहीं ठहर सकता है:-“व्यक्ति मरता है और अपनी मृत्यु में वह बिल्कुल अकेला है, विवश असांतवनीय”अन्ततः कहा जा सकता है कि नचिकेता आधुनिक जिज्ञासु, तार्किक और सत्यानवेक्षी मनुष्य का प्रतीक है| आज मनुष्य पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक, जीवन-मृत्यु के प्रश्नों पर तर्क पूर्ण चिंतन करता है| वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को महत्त्व देता है तथा हर स्थिति- परिस्थिति को तर्क के आधार पर परखता है| वह चाहता है कि सच्चाई का निर्णय बल से नहीं तार्किक विश्लेषण एवं विवेक के आधार पर किया जाना चाहिए|

(प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम)

🙏🌼🌿जय गुरु🌿🌼🙏

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