🌸सावित्री के सतीत्व की महिमा🌸
महाभारत में एक कथा है सत्यवान और सावित्री की। सत्यवान अपने माता - पिता के साथ जंगल में रहते थे उनकी धर्मपत्नी सावित्री थी सावित्री को नारद मुनि के द्वारा यह पता लग चुका था कि अमुक तिथि को सत्यवान की मृत्यु होगी। जब वह तिथि आई, तो उस दिन सावित्री ने सत्यवान से कहा कि आज आपके साथ मैं भी जंगल देखने जाऊँगी। सत्यवान ने कहा कि माताजी और पिताजी से आज्ञा ले लो, तब तुम मेरे साथ चल सकती हो। सावित्री जब अपने सास - ससुर से अनुमति माँगने गई, तो सास - ससुर ने भी जंगल देखने की अनुमति दे दी। सावित्री अपने पति सत्यवान के साथ जंगल गई।
जब सत्यवान लकड़ी काटने के लिए वृक्ष पर चढ़े, तो उनके सिर में दर्द होने लगा। सत्यवान ने वहीं से कहा - ' मेरे सिर में बहुत जोर का दर्द हो रहा है। ' सावित्री ने कहा - 'आप अविलम्ब नीचे आ जाइए। 'सत्यवान वृक्ष पर से उतरते ही मूर्च्छित हो गए। सावित्री उनके माथे को अपनी जंघा पर रखकर बैठी रही। जब यमदूत आया, तो सावित्री के तेज के सामने निकट नहीं पहुँच सका। यमदूत के लौटने पर यमराज स्वयं आए और सत्यवान के लिंग शरीर को लेकर चलने लगे। सावित्री उनके पीछे - पीछे चलने लगी। पूछा - ' तुम क्यों आ रही हो ? कुछ वरदान माँगना हो तो माँग लो। 'सावित्री ने कहा -' मेरे सास - ससुर अंधे हैं, उन दोनों को आँखें हो जाएँ। ' यमराज ने कहा एवमस्तु ! यह कह यमराज जब आगे बढ़े, तो सावित्री फिर पीछे पीछे चलने लगी। यमराज ने पुनः पूछा कि और कोई वरदान माँगना हो, तो माँग लो। 'सावित्री ने कहा -' मेरे सास- ससुर का राज्य खो गया है, वह वापस हो जाए।
यमराज ने पुनःवरदान दिया। जब यमराज आगे बढ़ने लगे, तो सावित्री फिर पीछे - पीछे चलने लगी। यमराज ने पूछा - 'तुम्हें दो वरदान दे चुका, तब फिर मेरे पीछे क्यों आ रही हो ?' सावित्री ने कहा कि एक वरदान और दिया जाय, वह यह कि मुझे सौ पुत्र हों। यमराज सावित्री को यह वरदान भी प्रदान किया। जब यमराज आगे बढ़े, तो सावित्री उनके पीछे - पीछे फिर भी चलने लगी। यमराज ने जब देखा तो कहा कि तुम्हें तीन वरदान दे चुका। अब मेरे पीछे क्यों आ रही हो? सावित्री ने कहा जबकि आपने सौ पुत्र होने का वरदान दिया है, तब आप मेरे पति को ले जा रहे हैं ? मुझे सौ पुत्र कैसे होंगे ? सावित्री का प्रश्न सुनकर यमराज निरुत्तर हो गए और सत्यवान के लिंग शरीर को वापस कर दिया। यह है पातिव्रत्य धर्म की महिमा।
इन आँखों से लिंग शरीर को कोई नहीं देख सकता। लिंग शरीर या सूक्ष्म शरीर - दोनों एक ही बात है। शरीर से केवल चेतन आत्मा ही नहीं निकलती है, स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर के साथ चेतन आत्मा निकलती है। दूसरी बात यह कि स्थूल शरीर मरता है, सूक्ष्म शरीर नहीं मरता। सूक्ष्म शरीर के भीतर कारण शरीर और उसके भीतर महाकारण शरीर है। तब उसके अंदर चेतन आत्मा है। स्त्रियों को पातिव्रत्य धर्म का पालन करना चाहिए और पति को चाहिए कि वे बहुत अच्छे बनें। अपने बहुत बुरे हों और वे चाहे कि पत्नी पतिव्रता मिलें, ईश्वर की सृष्टि में ऐसा होना तो असंभव नहीं है, लेकिन साधारणतया यह असम्भव है। भगवान श्रीराम की तरह एकपत्नीव्रत धारण करो और स्त्रियाँ पातिव्रत्य धर्म का पालन करें, तो संतान अच्छी होगी। -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ
🙏🏻🌹श्री सद्गुरु महाराज की जय🌹🙏🏻
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