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बुधवार, 15 अगस्त 2018

दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त! मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी!! | Maharshi-Mehi | Santmat-Satsang | SANTMEHI

दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त!
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी!!


२०वीं सदी के महान संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ने दिनांक : १-६-१९५२ ई० को एक साहित्य-सम्मेलन के दौरान अपने वक्तव्य में कहा था:-
अपने देश में अब कई वर्षों से स्वराज्य प्राप्त है। यह हमें भारतीय जनता के लिए सर्वेश्वर की असीम कृपा से अहोभाग्य है। स्वराज्य प्राप्त होने के पहले आशा थी कि स्वराज्य प्राप्त होने पर हम लोगों को सुराज्य होगा और हम लोग सुखी हो जाएंगे।  परंतु हम लोग स्वराज्य पाने पर अपने को सुखी नहीं पा रहे हैं। क्योंकि अपने में अनैतिकता, भ्रष्टाचार, केवल भौतिकता की ओर झुकाव और आध्यात्मिकता की ओर से मुख मोड़ाव का साम्राज्य हमारे यहां हो गया है।  इसी से स्वराज में हम सुराज्य नहीं देख रहे हैं और जनता दुखी है। जैसे विदेशी शासन की प्रबल शक्ति को हमलोगों ने अनेक कष्टों और अपमानों को सहन करके अपने देश से हटाया है, उसी तरह चाहिए कि इस कथित साम्राज्य को भी हम लोग दूर कर दें।

कबीर साहब कहते हैं -
छिमा गहो हो भाई, धर सतगुरु चरणी ध्यान रे।।
मिथ्या कपट तजो चतुराई, तजो जाति अभिमान रे।
दया दीनता क्षमता धारो, हो जीवन मृतक समान रे।।
सुरत निरत मन पवन एक करि, सुनो शब्द धुन तान रे।
कहै कबीर पहुंचो सतलोका, जहां रहै पुरुष अमान रे।।

इस अमृतमय शब्द को समझकर इसमें निहित सदुपदेशों के अनुकूल यदि लोग आचरण करें, तो वे झूठ, चोरी, चोरी-बजारी और घूसखोरी, घृणित स्वार्थ, पर-पीड़न, धूर्तता और कपट आदि जो सुराज्य के परमबाधक हैं और जनता के परम दुखदाई हैं, सबको छोड़ देंगे। देश में सुराज्य होगा, जनता सुखी हो जाएगी और साथ-ही-साथ मोक्ष धर्म-साधन में भी जनता लग जाएगी जिससे उनका परम कल्याण हो जाएगा। इहलोक और परलोक दोनों में सुख प्राप्त होगा।

परमात्म-भक्ति की ओर अर्थात आध्यात्मिकता की ओर का प्रेरण, समाज को सदाचार पालन की ओर प्रेरण करेगा। सदाचार पालन से सामाजिक-नीति और आचरण उत्तम बनेंगे। राजनीति तथा शासन सूत्र का संचालन भी तब निर्दोष और सुखदायक होगा। इस तरह से राज्य में सुराज्य होगा और देशवासी सुखी हो जाएँगे।
-संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज
।।जय गुरु महाराज।।
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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रविवार, 12 अगस्त 2018

मन के मैल को दूर कर आत्मानंद से तृप्त हो जाओ | Man ke mail ko door kar aatmanand se tripta ho jao | Satsang |

मन के मैल को दूर कर आत्मानंद से तृप्त हो जाओ;
जिस प्रकार दूध में घी व्याप्त रहता है और मंथन करने से ऊपर आ जाता है, उसी प्रकार तुम में परम पुरुष व्याप्त है। साधनारूपी मंथन से तुम उनको पा जाओगे। परम पुरुष तुम्हारे भीतर है, इस देवता को तुम बाहर की पूजा से नहीं प्राप्त कर सकते। उसके द्वारा तो तुम उससे और दूर हटते जाते हो।

लोग कहते है, 'यहां तीर्थ है, इस कुंड में स्नान करने से शत अश्वमेध के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है।' सच्चा तीर्थ तो आत्मतीर्थ है जहां पहुंचने के लिए न तो एक पाई खर्च होती है और न ही सेकेण्ड का समय लगता है। उपवास मन के भीतर छिपे हुए परम पुरुष के निकट वास करने का प्रयास है। यही उपवास का सच्चा अर्थ है। इस क्रिया में संतुलित भोजन से सहायता मिलती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि भोजन नहीं करने से परमात्मा की प्राप्ति होती है।

नदी सूख गई है, ऊपर बालू है, किंतु बालू के नीचे स्वाभाविक रूप से छना हुआ निर्मल पानी है। ऊपर से बालू हटाओ और निर्मल जल से अपनी प्यास बुझाओ। मन के मैल को दूर करो और आत्मानंद से तृप्त हो जाओ। ज्ञानी के कथित ज्ञान में दो अवगुण हैं, आलस्य और अहंकार। घमंडी परमात्मा से बहुत दूर रहता है। आलस्य में सबसे अधिक भयानक है आध्यात्मिक आलस्य।

आज देर हो गई, साधना नहीं करेंगे, कल ठीक से कर लेंगे। सिनेमा-नाटक-भोजन सब में बराबर समय दिया जाता है, और कटौती होती है केवल साधना के समय में से। नींद आती है केवल भगवत चर्चा के समय। लोगों को कहानी याद होगी कि राम के वनवास काल में चौदह वर्ष तक लक्ष्मण ने जागकर उनके रक्षक के रूप में पहरेदारी की।

एक दिन उनको नींद आ गई। उस वीर ने तब निद्रा पर धनुष बाण से हमला कर दिया। निद्रा बोली, 'आप कैसे वीर हैं! महिला पर शस्त्र उठाते हैं!' लक्ष्मण बोले, 'क्षमा कीजिए, अभी आप नहीं आइए। जब राम का अयोध्या में राजतिलक हो जाए तब आप आ सकती हैं।'

फिर जब राम के साथ तिलक समारोह में लक्ष्मण उनकी सेवा कर रहे थे तब निद्रा ने उन पर हमला बोल दिया। लक्ष्मण जी ने फिर विरोध किया, तो निद्रा ने फिर पूछा, 'मैं कहां जाऊं!' लक्ष्मण बोले, 'जब किसी धर्म सभा में कोई अधार्मिक पहुंच जाए, तुम उसी की आंखों पर बैठ जाओ।'

उसी समय से निद्रा का यह क्रम चालू है। कर्मी में एक ही दोष होता है, वह है अहंकार। किन्तु भक्त जानता है कि मैं कुछ नहीं हूं, परम पुरुष ही सब कुछ है। कर्म का श्रेय मेरा नहीं है, इसलिए भक्त में अहंकार नहीं आता है। और आलस्य भी नहीं आएगा क्योंकि वे सोचेगा कि मेरे भगवान का काम मैं नहीं करूंगा तो कौन करेगा, मैं किसके इंतजार में रहूंगा कि वह उनका काम करे।' - आनंदमूर्ति
।।जय गुरु।।
Posted by S.K.Mehta, Gurugram
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शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

एक साधु देश में यात्रा के लिए पैदल निकला ... | Ek Sadhu desh me yatra ke liye paidal nikla | Adhyam gyan ki baate.. |

एक साधु देश में यात्रा के लिए पैदल निकला, रात हो जाने पर एक गाँव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका आनंद ने साधु की खूब सेवा की। दूसरे दिन आनंद ने बहुत सारे उपहार देकर फिर उसे विदा किया।
साधु ने आनंद के लिए प्रार्थना की  -
"भगवान करे तू दिनों दिन बढ़ता ही रहे।"
साधु की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला
अरे भाई, जो है, यह भी नहीं रहने वाला
साधु आनंद की ओर देखता रह गया और वहाँ से चला गया।

दो वर्ष बाद साधु फिर आनंद के घर गया और देखा कि सारा वैभव समाप्त हो गया है। पता चला कि आनंद अब बगल के गाँव में एक जमींदार के यहाँ नौकरी करता है।

साधु आनंद से मिलने गया। आनंद ने अभाव में भी साधु का स्वागत किया। झोंपड़ी में जो फटी चटाई थी उस पर बिठाया। खाने के लिए सूखी रोटी दी। दूसरे दिन जाते समय साधु की आँखों में आँसू थे। साधु कहने लगा - "हे भगवान् ! ये तूने क्या किया ?"
आनंद पुन: हँस पड़ा और बोला - "आप क्यों दु:खी हो रहे हो ? महापुरुषों ने कहा है कि भगवान्  मनुष्य को जिस हाल में रखे, मनुष्य को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए। समय सदा बदलता रहता है और सुनो !
यह भी नहीं रहने वाला ।"

साधु ने मन में सोचा कि
सच्चा साधु तो तू ही है, आनंद।

कुछ वर्ष बाद साधु फिर यात्रा पर निकला और आनंद से मिला तो देखकर हैरान रह गया कि आनंद तो अब जमींदारों का जमींदार बन गया है। मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहाँ आनंद  नौकरी करता था वह सन्तान विहीन था, मरते समय अपनी सारी जायदाद आनंद को दे गया। साधु ने आनंद  से कहा - "अच्छा हुआ, वो जमाना गुजर गया । भगवान् करे अब तू ऐसा ही बना रहे।
यह सुनकर आनंद  फिर हँस पड़ा और कहने लगा - "साधु ! अभी भी तेरी नादानी बनी हुई है"
साधु ने पूछा - "क्या यह भी नहीं रहने वाला ?"
आनंद उत्तर दिया - "हाँ, यह भी चला जाएगा जो इसको अपना मानता है वो ही चला जाएगा। कुछ भी रहने वाला नहीं है और अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और उस परमात्मा का अंश आत्मा।"
आनंद की बात को साधु ने गौर से सुना और चला गया।

साधु कुछ साल बाद फिर लौटता है तो देखता है कि आनंद  का महल तो है किन्तू कबूतर उसमें गुटरगूं कर रहे हैं, और आनंद का देहांत हो गया है। बेटियाँ अपने-अपने घर चली गयीं, बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है।

साधु कहता है - "अरे मनुष्य ! तू किस बात का अभिमान करता है ? क्यों इतराता है ? यहाँ कुछ भी टिकने वाला नहीं है, दु:ख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता । तू सोचता है, पडोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ । लेकिन सुन, न तो तेरी मौज रहेगी और न ही तेरी मुसीबत। सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा। सच्चे मनुष्य वे हैं, जो हर हाल में खुश रहते हैं। मिल गया माल तो उस माल में खुश रहते है और हो गये बेहाल तो उस हाल में खुश रहते हैं।"

साधु कहने लगा - "धन्य है, आनंद ! तेरा सत्संग और धन्य है तुम्हारे सद्गुरु !
मैं तो झूठा साधु हूँ, असली साधु तो तेरी जिन्दगी है। अब तेरी तस्वीर पर कुछ फूल चढ़ाकर दुआ तो मांग लूं ।"

साधु दुसरे कमरे में जाता है तो देखता है कि आनंद ने अपनी तस्वीर पर लिखवा रखा है - "आखिर में यह भी नहीं रहेगा"

गुरुवार, 9 अगस्त 2018

आशिर्वाद से आसान होती है सफलता | Aashirwad se aasaan hoti hai safalta | सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछु मोरि प्रभुताई | Santmat-Satsang | Ramji-Hanumanji

आशीर्वाद से आसान होती है सफलता;
विनम्रता  दूसरों को प्रभावित ही नहीं करती, बल्कि कई बार स्वयं को अहंकार में भी डुबो सकती है। विनम्रता से पैदा हुआ अहंकार बहुत ही सूक्ष्म होता है।

इसलिए जब कभी हम विनम्रता का व्यवहार कर रहे हों, इस बात में सावधान रहें कि जब दूसरे हमारी विनम्रता पर हमारी प्रशंसा करें तो हम प्रशंसा को कानों से हृदय में उतरने न दें। अपनी योग्यता को कहीं न कहीं परमात्मा की शक्ति से जोड़े रखें, तो अहंकार के खतरे कम हो जाते हैं।

सुंदरकांड में भगवान श्रीराम हनुमानजी की प्रशंसा कर रहे थे, तब हनुमानजी ने कहा- मेरा लंका जाना, उसे जलाना, लौटकर आना यह सब मेरे वश में नहीं है।


सो सब तव प्रताप रघुराई।
नाथ न कछु मोरि प्रभुताई।।

यह सब तो श्रीरघुनाथजी! आप ही का प्रताप है। हे नाथ! इसमें मेरी प्रभुता कुछ भी नहीं है। संत बताते हैं कि भगवान श्रीराम ने हनुमानजी से पूछा था- फिर समुद्र किस शक्ति से लांघा।

हनुमानजी का जवाब था आपके द्वारा दी गई अंगूठी से। भगवान श्रीराम समझ गए, ये एक बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर है। इसमें भक्त ने स्वयं को बचाया है और श्रेय परमात्मा को दे दिया है। तब भगवान श्रीराम ने याद दिलाया कि अंगूठी तो सीताजी को दे दी थी, फिर लौटकर कैसे आए? हनुमानजी समझ गए कि इस समय भगवान जमकर परीक्षा ले रहे हैं। उन्होंने तुरंत उत्तर दिया- आते समय माता सीता ने उनकी चूड़ामणि दी थी। उसी के सहारे लौटा हूं। इस प्रताप में मेरा स्वयं का कोई योगदान नहीं है।

बड़ी सुंदर बात हनुमानजी बताते हैं कि जब गया तो पिता की कृपा थी और जब लौटा तो मां का आशीर्वाद साथ था। जिनके साथ जीवन के संघर्ष में माता-पिता के आशीर्वाद होते हैं उनकी सफलताएं सरल हो जाती हैं।
जय गुरु
Posted by S.K.Mehta, Gurugram


गुरु नानक वाणी: पहिलै पिआरि लगा थण दुधि!! | Guru Nanak Devji Vani | Santmat-Satsang |

पहिलै पिआरि लगा थण दुधि।।

पहिलै पिआरि लगा थण दुधि।।
दूजै माइ बाप की सुधि॥
तीजै भया भाभी बेब।।
चउथै पिआरि उपंनी खेड॥
पंजवै खाण पीअण की धातु।।
छिवै कामु न पुछै जाति॥
सतवै संजि कीआ घर वासु॥
अठवै क्रोधु होआ तन नासु॥
नावै धउले उभे साह॥
दसवै दधा होआ सुआह॥
गए सिगीत पुकारी धाह॥
उडिआ हंसु दसाए राह॥
आइआ गइआ मुइआ नाउ॥
पिछै पतलि सदिहु काव॥
नानक मनमुखि अंधु पिआरु॥
बाझु गुरू डुबा संसारु॥
(गुरवाणी)

श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं कि सब से पहले इस जीव आत्मा का माता के दूध से प्रेम हो गया और जब कुछ  होश आया तो माँ-बाप की पहचान हो गई | बहन भाई  की जानकारी मिल गई | उस के बाद खेलने कूदने में मस्त हो गया | कुछ बड़ा हुआ तो खाने पीने की इच्छाएँ  पैदा होने लगी | उस के बाद तरह-तरह की कामनाओं का शिकार हुआ | फिर घर गृहस्ती में उलझ गया | आठवें स्थान पर कहतें हैं कि क्रोश द्वारा तन का नाश करने पर तुल गया | बाल सफेद हो गये, बूढा हो गया, शवांस भी आने मुश्किल हो गये | उस के बाद शरीर जल कर राख बन जाता है | हंस रुपी जीव आत्मा शरीर छोड़ देती है | सगे सम्बन्धी सभी रोते हैं | मानव शरीर में जन्म लिया और शरीर के ही कार्य व्वहार में लगे रहे | एक दिन ऐसा आया जब शरीर छोड़कर चले गये | जाने के बाद  घर वाले श्राद्ध इत्यादि में लग जाते हैं | श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं कि मनमुख व्यक्ति, मन के विचारों के अनुसार चलने वाले, अंधों के समान व्यवहार करते हुए नजर आते हैं | क्योंकि जीवन को पहचानने की आँख गुरु द्वारा मिलती है | परन्तु गुरु को जाने बिना यह संसार अज्ञानता के अंधकार में डूब रहा है | इसलिए हमें चाहिए कि पूर्ण संत सद्गुरु की शरण में जाएँ जहाँ हमारी अज्ञानता का अंधकार समाप्त हो सकता है और मानव जीवन सफल हो सकता है |
जय गुरु महाराज
Posted by S.K.Mehta, Gurugram


एक नगर के राजा ने यह घोषणा करवा दी कि कल जब मेरे महल का द्वार खोला जायेगा ... | Gyanprad prerak kahani |

एक नगर के राजा ने यह घोषणा करवा दी कि कल जब मेरे महल का मुख्य दरवाज़ा खोला जायेगा, तब जिस व्यक्ति ने जिस वस्तु को हाथ लगा दिया वह वस्तु उसकी हो जाएगी !

इस घोषणा को सुनकर सभी नगर-वासी रात को ही नगर के दरवाज़े पर बैठ गए और सुबह होने का इंतजार करने लगे ! सब लोग आपस में बातचीत करने लगे कि मैं अमुक वस्तु को हाथ लगाऊंगा ! कुछ लोग कहने लगे मैं तो स्वर्ण को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग कहने लगे कि मैं कीमती जेवरात को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग घोड़ों के शौक़ीन थे और कहने लगे कि मैं तो घोड़ों को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग हाथीयों को हाथ लगाने की बात कर रहे थे, कुछ लोग कह रहे थे कि मैं दुधारू गौओं को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग कह रहे थे कि राजा की रानियाँ बहुत सुन्दर है मैं राजा की रानीयों को हाथ लगाऊंगा, कुछ लोग राजकुमारी को हाथ लगाने की बात कर रहे थे ! कल्पना कीजिये कैसा अद्भुत दृश्य होगा वह !!

उसी वक्त महल का मुख्य दरवाजा खुला और सब लोग अपनी अपनी मनपसंद वस्तु को हाथ लगाने दौड़े ! सबको इस बात की जल्दी थी कि पहले मैं अपनी मनपसंद वस्तु को हाथ लगा दूँ ताकि वह वस्तु हमेशा के लिए मेरी हो जाएँ और सबके मन में यह डर भी था कि कहीं मुझ से पहले कोई दूसरा मेरी मनपसंद वस्तु को हाथ ना लगा दे !

राजा अपने सिंघासन पर बैठा सबको देख रहा था और अपने आस-पास हो रही भाग दौड़ को देखकर मुस्कुरा रहा था ! कोई किसी वस्तु को हाथ लगा रहा था और कोई किसी वस्तु को हाथ लगा रहा था !

उसी समय उस भीड़ में से एक छोटी सी लड़की आई और राजा की तरफ बढ़ने लगी ! राजा उस लड़की को देखकर सोच में पढ़ गया और फिर विचार करने लगा कि यह लड़की बहुत छोटी है शायद यह मुझसे कुछ पूछने आ रही है ! वह लड़की धीरे धीरे चलती हुई राजा के पास पहुंची और उसने अपने नन्हे हाथों से राजा को हाथ लगा दिया ! राजा को हाथ लगाते ही राजा उस लड़की का हो गया और राजा की प्रत्येक वस्तु भी उस लड़की की हो गयी !

जिस प्रकार उन लोगों को राजा ने मौका दिया था और उन लोगों ने गलती की; ठीक उसी प्रकार ईश्वर भी हमे हर रोज मौका देता है और हम हर रोज गलती करते है ! हम ईश्वर को हाथ लगाने अथवा पाने की बजाएँ ईश्वर की बनाई हुई संसारी वस्तुओं की कामना करते है और उन्हें प्राप्त करने के लिए यत्न करते है पर हम कभी इस बात पर विचार नहीं करते कि यदि ईश्वर हमारे हो गए तो उनकी बनाई हुई प्रत्येक वस्तु भी हमारी हो जाएगी !
।।जय गुरु।।
Posted by S.K.Mehta, Gurugram
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शनिवार, 4 अगस्त 2018

कहानी - किस्से आपने खूब पढ़े होंगे मगर जो बात मैं आपसे कहने जा रहा हूँ वह अगर आपके मर्म को छू जाए तो.... | Kahani-kisse |

कहानी - किस्से आपने खूब पढ़े होंगे मगर जो बात मैं आपसे कहने जा रहा हूँ वह अगर आपके मर्म को छू जाए तो अपने बच्चों को अवश्य बताएं : -
पढ़ाई पूरी करने के बाद एक छात्र किसी बड़ी कंपनी में नौकरी पाने की चाह में इंटरव्यू देने के लिए पहुंचा....
छात्र ने बड़ी आसानी से पहला इंटरव्यू पास कर लिया...
अब फाइनल इंटरव्यू
कंपनी के डायरेक्टर को लेना था...
और डायरेक्टर को ही तय
करना था कि उस छात्र को नौकरी पर रखा जाए या नहीं...
डायरेक्टर ने छात्र का सीवी (curricular vitae) देखा और पाया कि पढ़ाई के साथ- साथ यह छात्र ईसी (extra curricular activities) में भी हमेशा अव्वल रहा...
डायरेक्टर- "क्या तुम्हें पढ़ाई के दौरान
कभी छात्रवृत्ति (scholarship) मिली...?"
छात्र- "जी नहीं..."

डायरेक्टर- "इसका मतलब स्कूल-कॉलेज की फीस तुम्हारे पिता अदा करते थे.."
छात्र- "जी हाँ , श्रीमान ।"
डायरेक्टर- "तुम्हारे पिताजी क्या काम करते है?"
छात्र- "जी वो लोगों के कपड़े धोते हैं..."
यह सुनकर कंपनी के डायरेक्टर ने कहा- "ज़रा अपने हाथ तो दिखाना..."
छात्र के हाथ रेशम की तरह मुलायम और नाज़ुक थे...
डायरेक्टर- "क्या तुमने कभी कपड़े धोने में अपने पिताजी की मदद की...?"
छात्र- "जी नहीं, मेरे पिता हमेशा यही चाहते थे
कि मैं पढ़ाई करूं और ज़्यादा से ज़्यादा किताबें
पढ़ूं...
हां, एक बात और, मेरे पिता बड़ी तेजी से कपड़े धोते हैं..."
डायरेक्टर- "क्या मैं तुम्हें एक काम कह सकता हूं...?"
छात्र- "जी, आदेश कीजिए..."
डायरेक्टर- "आज घर वापस जाने के बाद अपने पिताजी के हाथ धोना...
फिर कल सुबह मुझसे आकर मिलना..."
छात्र यह सुनकर प्रसन्न हो गया...
उसे लगा कि अब नौकरी मिलना तो पक्का है,
तभी तो डायरेक्टर ने कल फिर बुलाया है...
छात्र ने घर आकर खुशी-खुशी अपने पिता को ये सारी बातें बताईं और अपने हाथ दिखाने को कहा...
पिता को थोड़ी हैरानी हुई...
लेकिन फिर भी उसने बेटे
की इच्छा का मान करते हुए अपने दोनों हाथ उसके
हाथों में दे दिए...
छात्र ने पिता के हाथों को धीरे-धीरे धोना शुरू किया.
साथ ही उसकी आंखों से आंसू भी झर-झर बहने लगे...
पिता के हाथ रेगमाल (emery paper) की तरह सख्त और जगह-जगह से कटे हुए थे...
यहां तक कि जब भी वह कटे के निशानों पर पानी डालता, चुभन का अहसास
पिता के चेहरे पर साफ़ झलक जाता था...।
छात्र को ज़िंदगी में पहली बार एहसास हुआ कि ये
वही हाथ हैं जो रोज़ लोगों के कपड़े धो-धोकर उसके
लिए अच्छे खाने, कपड़ों और स्कूल की फीस का इंतज़ाम करते थे...
पिता के हाथ का हर छाला सबूत था उसके एकेडैमिक कैरियर की एक-एक
कामयाबी का...
पिता के हाथ धोने के बाद छात्र को पता ही नहीं चला कि उसने उस दिन के बचे हुए सारे कपड़े भी एक-एक कर धो डाले...
उसके पिता रोकते ही रह गए , लेकिन छात्र अपनी धुन में कपड़े धोता चला गया...
उस रात बाप- बेटे ने काफ़ी देर तक बातें कीं ...
अगली सुबह छात्र फिर नौकरी के लिए कंपनी के डायरेक्टर के ऑफिस में था...
डायरेक्टर का सामना करते हुए छात्र की आंखें गीली थीं...
डायरेक्टर- "हूं , तो फिर कैसा रहा कल घर पर ?
क्या तुम अपना अनुभव मेरे साथ शेयर करना पसंद करोगे....?"
छात्र- " जी हाँ , श्रीमान कल मैंने जिंदगी का एक वास्तविक अनुभव सीखा...
नंबर एक... मैंने सीखा कि सराहना क्या होती है...
मेरे पिता न होते तो मैं पढ़ाई में इतनी आगे नहीं आ सकता था...
नंबर दो... पिता की मदद करने से मुझे पता चला कि किसी काम को करना कितना सख्त और मुश्किल होता है...
नंबर तीन.. . मैंने रिश्तों की अहमियत पहली बार
इतनी शिद्दत के साथ महसूस की..."
डायरेक्टर- "यही सब है जो मैं अपने मैनेजर में देखना चाहता हूं...
मैं यह नौकरी केवल उसे देना चाहता हूं जो दूसरों की मदद की कद्र करे,
ऐसा व्यक्ति जो काम किए जाने के दौरान दूसरों की तकलीफ भी महसूस करे...
ऐसा शख्स जिसने
सिर्फ पैसे को ही जीवन का ध्येय न बना रखा हो...
मुबारक हो, तुम इस नौकरी के पूरे हक़दार हो..."
आप अपने बच्चों को बड़ा मकान दें, बढ़िया खाना दें,
बड़ा टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर सब कुछ दें...
लेकिन साथ ही अपने बच्चों को यह अनुभव भी हासिल करने दें कि उन्हें पता चले कि घास काटते हुए कैसा लगता है ?
उन्हें भी अपने हाथों से ये काम करने दें...
खाने के बाद कभी बर्तनों को धोने का अनुभव भी अपने साथ घर के सब बच्चों को मिलकर करने दें...
ऐसा इसलिए
नहीं कि आप मेड पर पैसा खर्च नहीं कर सकते,
बल्कि इसलिए कि आप अपने बच्चों से सही प्यार करते हैं...
आप उन्हें समझाते हैं कि पिता कितने भी अमीर
क्यों न हो, एक दिन उनके बाल सफेद होने ही हैं...
सबसे अहम हैं आप के बच्चे किसी काम को करने
की कोशिश की कद्र करना सीखें...
एक दूसरे का हाथ
बंटाते हुए काम करने का जज्ब़ा अपने अंदर
लाएं...
यही है सबसे बड़ी सीख......
जय गुरु
Posted by S.K.Mehta, Gurugram

सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...