पहिलै पिआरि लगा थण दुधि।।
पहिलै पिआरि लगा थण दुधि।।
दूजै माइ बाप की सुधि॥
तीजै भया भाभी बेब।।
चउथै पिआरि उपंनी खेड॥
पंजवै खाण पीअण की धातु।।
छिवै कामु न पुछै जाति॥
सतवै संजि कीआ घर वासु॥
अठवै क्रोधु होआ तन नासु॥
नावै धउले उभे साह॥
दसवै दधा होआ सुआह॥
गए सिगीत पुकारी धाह॥
उडिआ हंसु दसाए राह॥
आइआ गइआ मुइआ नाउ॥
पिछै पतलि सदिहु काव॥
नानक मनमुखि अंधु पिआरु॥
बाझु गुरू डुबा संसारु॥ (गुरवाणी)
श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं कि सब से पहले इस जीव आत्मा का माता के दूध से प्रेम हो गया और जब कुछ होश आया तो माँ-बाप की पहचान हो गई | बहन भाई की जानकारी मिल गई | उस के बाद खेलने कूदने में मस्त हो गया | कुछ बड़ा हुआ तो खाने पीने की इच्छाएँ पैदा होने लगी | उस के बाद तरह-तरह की कामनाओं का शिकार हुआ | फिर घर गृहस्ती में उलझ गया | आठवें स्थान पर कहतें हैं कि क्रोश द्वारा तन का नाश करने पर तुल गया | बाल सफेद हो गये, बूढा हो गया, शवांस भी आने मुश्किल हो गये | उस के बाद शरीर जल कर राख बन जाता है | हंस रुपी जीव आत्मा शरीर छोड़ देती है | सगे सम्बन्धी सभी रोते हैं | मानव शरीर में जन्म लिया और शरीर के ही कार्य व्वहार में लगे रहे | एक दिन ऐसा आया जब शरीर छोड़कर चले गये | जाने के बाद घर वाले श्राद्ध इत्यादि में लग जाते हैं | श्री गुरु नानक देव जी कहते हैं कि मनमुख व्यक्ति, मन के विचारों के अनुसार चलने वाले, अंधों के समान व्यवहार करते हुए नजर आते हैं | क्योंकि जीवन को पहचानने की आँख गुरु द्वारा मिलती है | परन्तु गुरु को जाने बिना यह संसार अज्ञानता के अंधकार में डूब रहा है | इसलिए हमें चाहिए कि पूर्ण संत सद्गुरु की शरण में जाएँ जहाँ हमारी अज्ञानता का अंधकार समाप्त हो सकता है और मानव जीवन सफल हो सकता है |