🙏🌹श्री सद्गुरवे नमः🌹🙏
लोग धन-पुत्रादि से ऊब जाते हैं। किसी को धन है, तो पुत्र नहीं, पुत्र है तो धन नहीं। शान्ति किसी को नहीं मिलती। अपने जीवन-काल में यज्ञ करके अथवा लोगों के कहे अनुसार श्राद्ध-क्रिया से स्वर्ग चले जायँ, तो क्या लाभ होगा?
वहाँ भी सुख नहीं। यहाँ के समान ही वहाँ भी छोटे-बड़े होते हैं। काम-क्रोधादिक विकार वहाँ भी उत्पन्न होते हैं तथा दूसरे से ईर्ष्या होती है आदि। फिर पुण्य क्षीण होने पर वहाँ से वापस होना पड़ता है। इसलिए गोस्वामी तुलसीदासजी अपनी रामायण में लिखते हैं-
‘एहि तन कर फल विषय न भाई। स्वरगउ स्वल्प अन्त दुखदाई।।’
‘नर तन दुर्लभ देव को,सब कोई कहै पुकार।।
सब कोइ कहै पुकार, देव देही नहिं पावै।
ऐसे मूरख लोग, स्वर्ग की आस लगावै।।
पुण्य क्षीण सोइ देव,स्वर्ग से नरक में आवै।
भरमै चारिउ खानि, पुण्य कहि ताहि रिझावै।।
तुलसी सतमत तत गहे, स्वर्ग पर करे खखार।
नर तन दुर्लभ देव को, सब कोइ कहै पुकार।।’
- तुलसी साहब, हाथरसवाले
स्वर्ग या बहिश्त कहीं भी जाओ, विषय-सुख ही है। इसलिए सूफी लोग बताते हैं-मुक्ति ( नजात ) को प्राप्त करो। 17-1-1951.
-संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
🙏।। जय गुरु ।।🙏
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम