संध्या वंदन है सभी का कर्तव्य;
'सूर्य और तारों से रहित दिन-रात की संधि को तत्वदर्शी मुनियों ने संध्याकाल माना है।'☘
वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, गीता और अन्य धर्मग्रंथों में संध्या वंदन की महिमा और महत्व का वर्णन किया गया है। प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है संध्या वंदन करना। संध्या वंदन प्रकृति और ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का माध्यम है। कृतज्ञता से सकारात्मकता का विकास होता है। सकारात्मकता से मनोकामना की पूर्ति होती है और सभी तरह के रोग तथा शोक मिट जाते हैं।
संध्या के समय मौन भी रहा जा सकता है और रहना भी चाहिए। इस समय के दर्शन मात्र से ही शरीर और मन के संताप मिट जाते हैं। संध्याकाल में भोजन, नींद, यात्रा, वार्तालाप और संभोग आदि नहीं किया जाना चाहिए! अर्थात इस समय में इन सब बातों का ध्यान रखकर संध्योपासना में लगकर आत्मकल्याण करना उत्तम कार्य है। संध्या वंदन में 'पवित्रता' का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यही वेद नियम है। यही सनातन सत्य है। संध्या वंदन के नियम है। संध्या वंदन में प्रार्थना ही सर्वश्रेष्ठ मानी गई है।
जय गुरु
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