एक बहुत बड़े दानवीर हुए रहीम;
उनकी ये एक खास बात थी कि जब वो दान देने के लिए हाथ आगे बढ़ाते तो अपनी नज़रें नीचे झुका लेते थे।
ये बात सभी को अजीब लगती थी..कि ये रहीम कैसे दानवीर है, ये दान भी देते हैं और इन्हें शर्म भी आती है।
ये बात जब एक संत तक पहुँची तो उन्होंने रहीम को चार पंक्तियाँ लिख कर भेजी जिसमें लिखा था :-
ऐसी देनी देन जु, कित सीखे हो सेन।
ज्यों ज्यों कर ऊंचो करें, त्यों त्यों नीचे नैन।।
इसका मतलब था कि, रहीम तुम ऐसा दान देना कहाँ से सीखे हो। जैसे जैसे तुम्हारे हाथ ऊपर उठते है वैसे वैसे तुम्हारी नज़रें तुम्हारे नैन नीचे क्यूँ झुक जाते है।
रहीम ने इसके बदले में जो जवाब दिया वो जवाब इतना गजब का था कि जिसने भी सुना वो रहीम का भक्त हो गया इतना प्यारा जवाब आज तक किसी ने किसी को नहीं दिया। रहीम ने जवाब में लिखा:-
देंन हार कोई और है, भेजत जो दिन रैन।
लोग भरम हम पर करें, तासो नीचे नैन।।
मतलब देने वाला तो कोई और है वो मालिक है वो परमात्मा है वो दिन रात भेज रहा है। परन्तु लोग ये समझते हैं कि मैं दे रहा हूँ रहीम दे रहा है, ये विचार कर मुझे शर्म आ जाती है और मेरी आँखे नीचे झुक जाती है।
सच में मित्रो ये ना समझी ये मेरे पन का भाव यदि इंसान के अंदर से मिट जाये तो वो जीवन को और बेहतर जी सकता है।
सौजन्य: *महर्षि मेँहीँ सेवा ट्रस्ट*
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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