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शुक्रवार, 9 नवंबर 2018

अनमोल है सत्संग | एक संत से किसी ने पूछाः “आप सत्संग-समारोह तो करते हैं परंतु उस पर इतना खर्चा?" | Santmat-Satsang | SANTMEHI

अनमोल है सत्संग;
एक संत से किसी ने पूछाः “आप सत्संग-समारोह तो करते हैं परंतु उस पर इतना खर्चा ! आपको सत्संग-समारोह बहुत ही सादगी के साथ करना चाहिए।”

संत ने कहाः “मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इतने खर्चे के बाद अगर एक भी भाई के जीवन में, एक भी बहन के जीवन में जीवन की वास्तविक माँग जागृत हो जाये तो उस पर सारे विश्व की सम्पत्ति न्योछावर कर देना भी कम है। आपने सत्संग का महत्त्व नहीं समझा है। सत्संग के लिए हँसते-हँसते प्राण भी दिये जा सकते हैं। सत्संग के लिए क्या नहीं दिया जा सकता ! आप यह सोचें कि सत्संग जीवन की कितनी आवश्यक वस्तु है। अगर आपके जीवन में सफलता होगी तो वह सत्संग से ही होगी। अगर जीवन में असफलता है तो वह असत् के संग से है।”
उक्त प्रश्न वे ही कर सकते हैं जिनको सत्संग के मूल्य का पता नहीं है, जिनकी मति-गति भोगों से भटकी हुई है।
अगर दुनिया की सब सम्पत्ति खर्च करके भी सत्संग मिलता है तो भी सस्ता है। सत्संग से जो सुधार होता है, वह कुसंग से थोड़े ही होगा ! सत्संग से जो सन्मति मिलती है वह भोग संग्रह से थोड़े ही मिलेगी !
लाखों रूपये खर्च किये, व्यक्ति को पढ़ा दिया, डॉक्टर, बैरिस्टर बना दिया लेकिन सत्संग नहीं मिला तो बचा सकेगा अपने को कुसंग से ?… नहीं।
सत्संग व्यक्ति को भोग-संग्रह से बचाकर आंतरिक सुख का एहसास कराता है।
।। जय गुरु ।।
शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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मंगलवार, 6 नवंबर 2018

अनादि काल से ही मानव परम शांति, सुख व अमृतत्व की खोज में लगा हुआ है ... | कबीर, तीन लोक पिंजरा भया, पाप पुण्य दो जाल। सभी जीव भोजन भये, एक खाने वाला काल।। | Santmat-Satsang | SANTMEHI

।।श्री सद्गुरवे नमः।।

अनादि काल से ही मानव परम शांति, सुख व अमृत्व की खोज में लगा हुआ है। वह अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रयत्न करता आ रहा है लेकिन उसकी यह चाहत कभी पूर्ण नहीं हो पा रही है। ऐसा इसलिए है कि उसे इस चाहत को प्राप्त करने के मार्ग का पूर्ण ज्ञान नहीं है। सभी प्राणी चाहते हैं कि कोई कार्य न करना पड़े, खाने को स्वादिष्ट भोजन मिले, पहनने को सुन्दर वस्त्र मिलें, रहने को आलीशान भवन हों, घूमने के लिए सुन्दर पार्क हों, मनोरंजन करने के लिए मधुर-2 संगीत हों, नांचे-गांए, खेलें-कूदें, मौज-मस्ती मनांए और कभी बीमार न हों, कभी बूढ़े न हों और कभी मृत्यु न होवे आदि-2, परंतु जिस संसार में हम रह रहे हैं यहां न तो ऐसा कहीं पर नजर आता है और न ही ऐसा संभव है। क्योंकि यह लोक नाशवान है, इस लोक की हर वस्तु भी नाशवान है और इस लोक का राजा ब्रह्म काल है। उसने सब प्राणियों को कर्म-भर्म व पाप-पुण्य रूपी जाल में उलझा कर तीन लोक के पिंजरे में कैद किए हुए है। 

कबीर साहेब कहते हैं कि:--

कबीर, तीन लोक पिंजरा भया, पाप पुण्य दो जाल।
सभी जीव भोजन भये, एक खाने वाला काल।।

गरीब, एक पापी एक पुन्यी आया, एक है सूम दलेल रे।
बिना भजन कोई काम नहीं आवै, सब है जम की जेल रे।।

यहां हम सबने मरना है, सब दुःखी व अशांत हैं। हम सब काल ब्रह्म के लोक में आकर फंस गए और अपने निज घर का रास्ता भूल गए। कबीर साहेब कहते हैं कि :--

इच्छा रूपी खेलन आया, तातैं सुख सागर नहीं पाया।

इस काल ब्रह्म के लोक में शांति व सुख का नामोनिशान भी नहीं है। त्रिगुणी माया से उत्पन्न काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, राग-द्वेष, हर्ष-शोक, लाभ-हानि, मान-बड़ाई रूपी अवगुण हर जीव को परेशान किए हुए हैं। यहां एक जीव दूसरे जीव को मार कर खा जाता है, शोषण करता है, ईज्जत लूट लेता है, धन लूट लेता है, शांति छीन लेता है। यहां पर चारों तरफ आग लगी है। यदि आप शांति से रहना चाहोगे तो दूसरे आपको नहीं रहने देंगे। आपके न चाहते हुए भी चोर चोरी कर ले जाता है, डाकू डाका डाल ले जाता है, दुर्घटना घट जाती है, किसान की फसल खराब हो जाती है, व्यापारी का व्यापार ठप्प हो जाता है, राजा का राज छीन लिया जाता है, स्वस्थ शरीर में बीमारी लग जाती है अर्थात् यहां पर कोई भी वस्तु सुरक्षित नहीं। राजाओं के राज, ईज्जतदार की ईज्जत, धनवान का धन, ताकतवर की ताकत और यहां तक की हम सभी के शरीर भी अचानक छीन लिए जाते हैं। माता-पिता के सामने जवान बेटा-बेटी मर जाते हैं, दूध पीते बच्चों को रोते-बिलखते छोड़ कर मात-पिता मर जाते हैं, जवान बहनें विधवा हो जाती हैं और पहाड़ से दुःखों को भोगने को मजबूर होते हैं। विचार करें कि क्या यह स्थान रहने के लायक है? लेकिन हम मजबूरी वश यहां रह रहे हैं क्योंकि इस काल के पिंजरे से बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता और हमें दूसरों को दुःखी करने की व दुःख सहने की आदत सी बन गई। यदि हम अपने-आप को इस लोक में होने वाले दुःखों से बचाना चाहते हैं तो परम शक्ति से युक्त संत सद्गुरु की शरण लेनी पड़ेगी। वही हमे भवसागर से पार कर सकते हैं। हम सब बड़े भाग्यवान हैं कि हमलोगों को ऐसे संत सद्गुरु की शरण मिली हुई है, जरूरत है मनोयोग पूर्वक उनके आज्ञापालन करने की। 


"गुरु को सिर पर राखिए, चलिए आज्ञा माहिं।
कहै कबीर ता दास को, तीन लोक डर नाहिं॥’’
।।जय गुरु।।
सौजन्य: *महर्षि मेँहीँ सेवा ट्रस्ट*
शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम
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सोमवार, 5 नवंबर 2018

गुस्से पर काबू | Gusse par kabu | जीवन में हर चीज हमारे हिसाब से नहीं ढाली जा सकती | Santmat-Satsang | SANTMEHI | SADGURUMEHI

गुस्से पर काबू
क्रोधित होने वाला हर कोई यह तर्क देता है कि उसका क्रोध न्यायसंगत है। उसने गुस्सा करके कोई गलत नहीं किया। हम सभी अपने जीवन में कभी न कभी गुस्सा करते हैं और जब भी पीछे मुड़कर देखते हैं तो समझ जाते हैं कि उस वक्त हमारी प्रतिक्रिया बहुत अधिक थी, साथ ही न्यायसंगत भी नहीं थी। उस क्रोध पर काबू पाया जा सकता था। क्रोधित होना एक आम क्रिया है, लेकिन समस्या तब खड़ी होती है, जब इसका ठीक से प्रबंधन नहीं किया जाता।

लोग चेतन और अवचेतन दोनों ही तरीकों से क्रोध की भावनाओं का प्रबंधन करते हैं। पहला तरीका है क्रोध का इजहार कर देना, दूसरा है इसे दबा देना, जबकि तीसरा तरीका है क्रोध की भावनाएँ ही उत्पन्न न होने देना अर्थात शांत रहना। अपने क्रोध को बिना आक्रामक हुए निकाल बाहर करना सबसे अच्छा और कारगर तरीका माना गया है। इसके लिए जरूरी है कि हम यह पहचानें कि हम खुद क्या चाहते हैं।

जीवन में हर चीज हमारे हिसाब से नहीं ढाली जा सकती। दूसरों के प्रति आदर भाव रखते हुए भी आप उनसे अपनी बात मनवा सकते हैं। दूसरा तरीका है गुस्से को दबा देने का तथा उसे किसी और चैनल से निकालने का। ऐसा तभी हो सकता है जब क्रोध की स्थिति बने तब आप किसी तरह उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने से बचें।
।। जय गुरु ।।
शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम


रविवार, 4 नवंबर 2018

प्रभु, मैं समदर्शी हो जाऊं, शत्रु-मित्र में तुझको पाऊं | Prabhu mai samdarshi ho jaun | MAHARSHI-MEHI | SANTMAT-SATSANG | SANTMEHI | SADGURUMEHI

"प्रभु, मैं समदर्शी हो जाऊं,
शत्रु-मित्र में तुझको पाऊं !"

परमात्मा का अंश यह मनुष्य जब संसार में आता है तो उस ईश्वर से प्रार्थना करता है कि मुझे गहन अंधकार से मुक्ति दो। मैं दुनिया की चकाचौंध में न फंसकर तेरा ध्यान करूँगा। शायद दुनिया की हवा ही कुछ ऐसी है कि जिसके लगते ही वह अपने वचन भूल जाता है। तब दुनिया के आकर्षणों से घिरा वह प्राथमिकताओं से विमुख हो जाता है। फिर वह न तो सम रह पाता है और न समदर्शी।
         यदि मनुष्य ईश्वर की भाँति समदर्शी बन जाए तो सभी जीवों यानि पानी में रहने वाले जीवों (जलचर), आकाश में उड़ने वाले जीवों (खेचर) तथा पृथ्वी पर रहने वाले जीवों (भूचर) के साथ एक जैसा व्यवहार करेगा। किसी को मारकर खा जाने या हानि पहुँचाने के विषय में सोचेगा ही नहीं। उनके साथ वैसा ही व्यवहार करेगा जैसा वह अपने लिए चाहता है। सब जीव उसके लिए अपने जैसे ही हो जाएँगे। यदि मानव ऐसा सब कर सके तो वास्तव में समदर्शी बन सकता है।
।। जय गुरु ।।


हे मेरे गुरुदेव करुणा सिन्धु करुणा कीजिये।

हूँ अधम आधीन अशरण अब शरण में लीजिये।।
खा रहा गोते हूँ मैं भवसिन्धु के मझधार में।
आसरा है दूसरा कोई अब संसार में।।
मुझमें है जप तप साधन और नहीं कुछ ज्ञान है।
निर्लज्ता है एक बाकी और बस अभिमान है।।
पाप बोझे से लदी नैया भँवर में रही।
नाथ दौड़ो, अब बचाओ जल्द डूबी जा रही।।
आप भी यदि छोड़ देंगे फिर कहाँ जाऊँगा मैं।
जन्म-दुःख से नाव कैसे पार कर पाऊँगा मैं।।
सब जगह भटक कर, ली शरण प्रभु आपकी।
पार करना या करना, दोनों मर्जी आपकी।। हे।


शनिवार, 3 नवंबर 2018

जो चाहोगे सो पाओगे | Jo chahoge so paoge |

जो चाहोगे सो पाओगे!
☘एक साधु था, वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करता
था, ”जो चाहोगे सो पाओगे”, जो चाहोगे सो पाओगे।”
बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी
उसकी बात पर ध्यान नही देता था और
सब उसे एक पागल आदमी समझते थे।
एक दिन एक युवक वहाँ से गुजरा और उसने उस साधु
की आवाज सुनी, “जो चाहोगे सो पाओगे”,
जो चाहोगे सो पाओगे।”, और आवाज सुनते ही उसके
पास चला गया।

उसने साधु से पूछा “महाराज आप बोल रहे थे कि ‘जो चाहोगे
सो पाओगे’ तो क्या आप मुझको वो दे सकते हो जो मै जो चाहता
हूँ? ”साधु उसकी बात को सुनकर बोला – “हाँ बेटा तुम
जो कुछ भी चाहता है मै उसे जरुर दुँगा, बस तुम्हें
मेरी बात माननी होगी। लेकिन
पहले ये तो बताओ कि तुम्हे आखिर चाहिये क्या?”
युवक बोला” मेरी एक ही ख्वाहिश
है मै हीरों का बहुत बड़ा व्यापारी बनना
चाहता हूँ। “
साधू बोला, ”कोई बात नही मै तुम्हे एक
हीरा और एक मोती देता हूँ, उससे तुम
जितने भी हीरे मोती बनाना
चाहोगे बना पाओगे!” और ऐसा कहते हुए साधु ने अपना हाथ आदमी
की हथेली पर रखते हुए कहा, ”पुत्र,
मैं तुम्हे दुनिया का सबसे अनमोल हीरा दे रहा हूं,
लोग इसे ‘समय’ कहते हैं, इसे तेजी से
अपनी मुट्ठी में पकड़ लो और इसे
कभी मत गंवाना, तुम इससे जितने चाहो उतने
हीरे बना सकते हो।

युवक अभी कुछ सोच ही रहा था कि
साधु उसका दूसरी हथेली, पकड़ते हुए
बोला, ”पुत्र, इसे पकड़ो, यह दुनिया का सबसे
कीमती मोती है, लोग इसे
“धैर्य” कहते हैं, जब कभी समय देने के बावजूद
परिणाम ना मिलें तो इस कीमती
मोती को धारण कर लेना, याद रखना जिसके पास यह
मोती है, वह दुनिया में कुछ भी प्राप्त कर
सकता है।
युवक गम्भीरता से साधु की बातों पर
विचार करता है और निश्चय करता है कि आज से वह
कभी अपना समय बर्वाद नहीं करेगा और
हमेशा धैर्य से काम लेगा। और ऐसा सोचकर वह हीरों
के एक बहुत बड़े व्यापारी के यहाँ काम शुरू करता है
और अपने मेहनत और ईमानदारी के बल पर एक दिन
खुद भी हीरों का बहुत बड़ा
व्यापारी बनता है
- मित्रों ‘समय’ और ‘धैर्य’ वह दो हीरे-
मोती हैं जिनके बल पर हम बड़े से बड़ा लक्ष्य
प्राप्त कर सकते हैं। अतः ज़रूरी है कि हम अपने
कीमती समय को बर्वाद ना करें और
अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए धैर्य से काम लें।
जय गुरु महाराज
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम


शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

सतसंगति सदा सेवनीय | संतों का समाज आनंद और कल्याणमय है, जो जगत में चलता फिरता तीर्थराज है | Santmat-Satsang | Maharshi-Mehi | SANTMEHI |

सत्संगति सदा सेवनीय;
गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है:-
"मति कीरति गति भूति भलाई, जो जेहि जतन जहाँ लगि पाई।
सो जानब सत्संग प्रभाऊ, लोक न बेद न आन ऊपाऊ।।"

जिसने जिस समय, जहाँ कहीं भी, जिस किसी यत्न से बुद्धि, कीर्ति, सदगति, विभूति (ऐश्वर्य) और भलाई पायी है, सो सब सत्संग का ही प्रभाव समझना चाहिए। वेदों और लोक में इनकी प्राप्ति का दूसरा कोई उपाय नही है।
सत्संग सिद्धि का प्रथम सोपान है। सत्संगति बुद्धि की जड़ता नष्ट करती है, वाणी को सत्य से सींचती है। पुण्य बढ़ाती है, पाप मिटाती है, चित्त को प्रसन्नता से भर देती है, परम सुख के द्वार खोल देती है।
एक दासी पुत्र संतों की संगति पाकर देवर्षि नारद बन गये। एक तुच्छ कीड़ा महर्षि वेदव्यासजी की कृपा से मैत्रेय ऋषि बने। शबरी भीलन मतंग ऋषि की कृपा पाकर महान हो गयी। सत्संगति से महान बनने के ऐसे अनेकों उदाहरण शास्त्रों एवं इतिहास में भरे पड़े हैं।
प्रार्थना और पुकार से भावनाओं का विकास होता है, भावबल बढ़ता है। प्राणायाम से प्राणबल बढ़ता है, सेवा से क्रिया बल बढ़ता है और सत्संग से समझ बढ़ती है।
मनुष्य अपनी बुद्धि से ही प्रत्येक बात का निश्चय नहीं कर सकता। बहुत सी बातों के लिए उसे श्रेष्ठ मतिसम्पन्न मार्गदर्शक एवं समर्थ आश्रयदाता चाहिए। यह सत्संगति से ही सुलभ है।

संत कबीर साहब के शब्दों में:-

बहे बहाये जात थे, लोक वेद के साथ।
रस्ता में सदगुरु मिले, दीपक दीन्हा हाथ।।

सदगुरु भवसागर के प्रकाश-स्तम्भ होते हैं। उनके सान्निध्य से हमें कर्तव्य-अकर्तव्य का ज्ञान होता है। कहा भी गया है;

"सतां संगो हि भेषजम्।"
'संतजनों की संगति ही औषधि है।'

अनेक मनोव्याधियाँ सत्संग से नष्ट हो जाती हैं। संतजनों के प्रति मन में स्वाभाविक अनुराग-भक्ति होने से मनुष्य में उनके सदगुण स्वाभाविक रूप से आने लगते हैं। साधुपुरुषों की संगति से मानस-मल धुल जाता है, इसलिए संतजनों को चलता फिरता तीर्थ भी कहते हैं; तीर्थभूता हि साधवः।

मुदमंगलमय संत समाजू। जिमि जग जंगम तीरथराजू।।

'संतों का समाज आनंद और कल्याणमय है, जो जगत में चलता फिरता तीर्थराज है।'
सत्संगति कल्याण का मूल है और कुसंगति पतन का। कुसंगति पहले तो मीठी लगती है पर इसका फल बहुत ही कड़वा होता है।
पवन के संग से धूल आकाश में ऊँची चढ़ जाती है और वही नीचे की ओर बहने वाले जल के संग से कीचड़ में मिल जाती है यह संग का ही प्रभाव है। दुर्जनों के प्रति आकर्षित होने से मनुष्य को अंत में धोखा ही खाना पड़ता है। कुसंगति से आत्मनाश, बुद्धि-विनाश होना अनिवार्य है। दुर्जनों के बीच में मनुष्य की विवेकशक्ति उसी प्रकार मंद हो जाती है, जैसे अंधकार में दृष्टि।
बहुत से अयोग्य व्यक्ति मिलकर भी आत्मोद्धार का मार्ग उसी प्रकार नहीं ढूँढ सकते, जैसे सौ अंधे मिलकर देखने में समर्थ नहीं हो सकते। कुसंगति से व्यक्ति परमार्थ के मार्ग से पतित हो जाता है।

अंधे को अंधा मिले, छूटै कौन उपाय।

कुसंगति के कारण मनुष्य को समाज में अप्रतिष्ठा और अपकीर्ति मिलती है।
दुर्जनों की संगति से सज्जन भी अप्रशंसनीय हो जाते है। अतः कुसंगति का शीघ्रातिशीघ्र परित्याग करके सदा सत्संगति करनी चाहिए।
।। जय गुरु ।।
शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

महात्मा बनने के मार्ग में मुख्य विध्न | Mahatma banne ke marg me mukhya vighan | Santmat-Satsang | SANTMEHI | SADGURU MEHI

महात्मा बनने के मार्ग में मुख्य विघ्न!

ज्ञानी, महात्मा और भक्त कहलाने तथा बनने के लिए  तो प्राय: सभी इच्छा करते है, परन्तु उसके लिए सच्चे हृदय से साधन करने वाले लोग बहुत कम है। साधन करने वालों में भी परमात्मा के निकट कोई बिरले ही पहुँचता है; क्योकि राह में ऐसी बहुत सी विपद-जनक घाटियाँ आती है जिनमे फसकर साधक गिर जाते है। उन घाटियों में ‘कन्चन; और ‘कामिनी’ ये दो घाटियाँ बहुत ही कठिन है, परन्तु इनसे भी कठिन तीसरी घाटी मान-बड़ाई और ईर्ष्या की है। किसी कवि ने कहा है:-

कंच्चन तजना सहज है, सहज त्रिया का नेह।
मान बड़ाई ईर्ष्या, दुर्लभ तजना येह।।

इन तीनो में सबसे कठिन है बड़ाई। इसी को कीर्ति, प्रशंसा, लोकेष्णा आदि कहते है। शास्त्र में जो तीन प्रकार की त्रष्णा (पुत्रैष्णा, लोकैष्णा और वित्तेष्णा) बताई गयी है। उन तीनो में लोकैष्णा ही सबसे बलवान है। इसी लोकैष्णा के लिए मनुष्य धन, धाम, पुत्र, स्त्री और प्राणों का भी त्याग करने के लिए तैयार हो जाता है।

जिस मनुष्य ने संसार में मान-बड़ाई और प्रतिष्ठा का त्याग कर दिया, वही महात्मा है और वही देवता और ऋषियों द्वारा भी पूजनीय है। साधू और महात्मा तो बहुत लोग कहलाते है किन्तु उनमे मान-बड़ाई और प्रतिष्ठा का त्याग करने वाला कोई विरला ही होता है। ऐसे महात्माओं की खोज करने वाले भाइयों को इस विषय का कुछ अनुभव भी होगा।

हम लोग पहले जब किसी अच्छे पुरुष का नाम सुनते है तो उनमे श्रद्धा होती है पर उनके पास जाने पर जब हमें उनमें मान-बड़ाई, प्रतिष्ठा दिखलाई देती है, तब उन पर हमारी वैसी श्रद्धा नहीं ठहरती जैसी उनके गुण सुनने के समय हुई थी। यद्यपि अच्छे पुरुषों में किसी प्रकार भी दोषदृष्टि करना हमारी भूल है, परन्तु स्वभाव दोष से ऐसी वृतियाँ होती हुई प्राय: देखि जाती है और ऐसा होना बिलकुल निराधार भी नहीं है। क्योकि वास्तव में एक ईश्वर के सिवा बड़े-से-बड़े गुणवान पुरुषों में भी दोष का कुछ मिश्रण रहता ही है। जहाँ बड़ाई का दोष आया की झूठ, कपट और दम्भ को स्थान मिल जाता है तो अन्यान्य दोषों के आने को सुगम मार्ग मिल जाता है। यह कीर्ति रूप दोष देखने में छोटा सा है परन्तु यह केवल महात्माओं को छोड़कर अन्य अच्छे-से-अच्छे पुरुषों में भी सूक्ष्म और गुप्तरूप से रहता है। यह साधक को साधन पथ से गिरा कर उसका मूलोच्छेदन कर डालता है।
—श्रद्धेय जयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
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सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...