वर्तमान में जीने से मिलता है सुख और कल्पनाएं देती हैं दुख
प्रसन्न जीवन का सीधा फार्मूला है कि हम वर्तमान में जीना सीखें। जो लोग अतीत में या भविष्य में जीते हैं, उनके ऐसे जीने के अपने खतरे हैं। वे अतीत से इतने गहरे जुड़ जाते हैं कि उससे अपना पीछा नहीं छुड़ा पाते। सोते-जागते, बीती बातों में ही खोए रहते हैं। उन्हें नहीं पता कि अतीत सुख से ज्यादा दुख देता है। स्मृतियां सुखद हैं तो कल्पना में हर समय वे ही छाई रहती हैं। बात-बात में आदमी जिक्र छेड़ देता है कि मैंने तो वह दिन भी देखे हैं कि मेरे एक इशारे पर सामने क्या-क्या नहीं हाजिर हो जाता था। क्या ठाट थे। खूब कमाया और खूब लुटाया। एक फोन से घर बैठे कितने लोगों के काम करा देता था- इस तरह की न जाने कितनी बातें। इससे उन्हें एक अव्यक्त सुख मिलता है, मगर उससे कहीं ज्यादा दुख मिलता है कि अब वैसे दिन शायद नहीं आएंगे।
हालांकि पीड़ा और दुख सार्वभौमिक घटनाएं हैं। इसका कारण है दूसरों का अनिष्ट चिंतन करना। इस तरह का व्यवहार स्वयं को भारी बनाता है और प्रसन्नता लुप्त कर देता है। किसी का बुरा चाहने वाला और बुरा सोचने वाला कभी प्रसन्न नहीं रह सकता। वह ईर्ष्या और द्वेष की आग में हर समय जलता रहता है। मलिनता हर समय उसके चेहरे पर दिखाई देगी। एक अव्यक्त बेचैनी उस पर छाई रहेगी। उद्विग्न और तनावग्रस्त रहना उसकी नियति है।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि प्रसन्नता को कायम रखना है तो दूसरों के लिए एक भी बुरा विचार मन में नहीं आना चाहिए। मन में एक भी बुरा विचार आया तो वह तुम्हारे लिए पीड़ा और दुख का रास्ता खोल देगा। दूसरे के लिए सोची गई बुरी बात तुम्हारे जीवन में ही घटित हो जाएगी।
।। जय गुरु महाराज ।।
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम