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रविवार, 23 मई 2021

जो भगवद्-भजन करेंगे, सत्संग करेंगे, वे चौरासी लाख योनियों में क्यों जाएंगे? | MAHARSHI-SANTSEVIJI-MAHARAJ | SANTMAT-SATSANG |

 जो भगवद्-भजन करेंगे, सत्संग करेंगे, वे चौरासी लाख योनियों में क्यों जाएंगे? 

वे तो अंततः प्रभु में ही मिलेंगे। एक अँगीठी थी। उसमें दहकते हुए सारे कोयले लाल-लाल हो रहे थे। उन कोयलों में से एक ने सोचा- एक साथ रहने से तो सभी लाल-ही-लाल हैं। क्यों ना अलग होकर हम अपना अलग प्रभाव डालें। वह अंगूठी से कूदकर नीचे आ गया। जब तक वह सब कोयले के साथ था, तब तक उसमें गर्मी थी और वह लाल था। जब वह अंगूठी से नीचे गिरा तो कुछ देर वह लाल रहा और उसमें गर्मी भी रही, लेकिन धीरे-धीरे लाली खत्म हो गई और गर्मी भी समाप्त हो गई। कोयला काला ही रह गया। उसी तरह जो अपने को सत्संग के माहौल में रखता है वह लाल-ही-लाल बन कर एक दिन परम लाल-परमात्मा को प्राप्त कर लेता है। 

पर जब कोई अपरिपक्व साधक अलग जाकर संस्था बनाता है, तो कुछ दिन तक तो लाली रहती है, लेकिन धीरे-धीरे वह माया में पड़ जाता है और उसका मन कोयले की तरह काला बनकर रह जाता है। संत तुलसी साहब ने कहा है:-

"सखी सीख सुनि गुनि गाँठि बाँधौं।                 

ठाठ ठट सत्संग करै।।

जब   रंग   संग   अपंग  आली  री।                

अंग सत मत मन मरै।।"

सत्संग करते-करते ही सत्संग का रंग लगेगा और जो मन विषयों में भागता है, वह मन मर जाएगा, उस ओर से मुड़ जाएगा। विषय की ओर से निर्विषय की ओर चला जाएगा। इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है-"सठ सुधरहिं सत्संगत पाई। पारस परसि कुधातु सोहाई।।"जो मूर्ख हैं वे भी सत्संग पाकर सुधर जाते हैं।(प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम)

🙏🌼🌿।। जय गुरु ।।🌿🌼🙏

दूसरे का दोष कभी नहीं देखना चाहिए | Dusre ke dosh ko nahi dekhna chahiye | One should not see the fault of the other | SELF-THINKING

दूसरे का दोष कभी नहीं देखना चाहिए! पर-दोष दर्शन नहीं, हम आत्म-सुधार करें! पर-दोष दर्शन में स्व-दोष दर्शन का सामर्थ्य व जीवन में भावी आत्म-सुधार की संम्भावना खो जाती है! 


 जहाँ आत्म-चिंतन व आत्म-सुधार की प्रवृति है, वहाँ से ही आत्म-मिलन की राह है!


कभी झूठ मत बोलिए | -महर्षि मेँहीँ | Kabhi jhooth mat boliye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

कभी झूठ मत बोलिये। 
झूठ सदाचारिक जीवन में प्रधान दूषण है। इस दूषण को हटाइये। मान-अपमान में सम रहिये, संतमत यही बतलाता है। गरीब-अमीर कोई रहो, दु:ख से रहित कोई नहीं है। दु:ख है जनमना और मरना। यह दु:ख भजन करने से, सदाचार का पालन करने से छूट जाता है।
विद्वान् होते हुए सदाचारी बनें, इन्द्रियों को वश में करके रखें, यह विशेष ऊँची बात है। विद्वान् होने से संसार में प्रतिष्ठित होते हैं और सदाचारी होकर रहने से ईश्वर के यहाँ प्रतिष्ठित होते हैं। हमारे यहाँ के ऋषियों ने इसी को विशेष प्रतिष्ठा दी है।

गुरुवार, 20 मई 2021

एक पौराणिक कथा : "नचिकेता" | Nachiketa | Nachiketa-Ek pauranik katha

 एक पौराणिक कथा : "नचिकेता"

बाजश्रवा ऋषि नचिकेता के पिता थे| उन्होंने अपनी सुख-समृद्धि हेतु यज्ञ किया तथा दान में उन बूढ़ी गायों को दिया जो दूध भी नहीं देती थी| नचिकेता को पिता का अपनी सम्पति के प्रति यह मोह तथा दान के नाम पर आडम्बर कतई पसंद नहीं आया| उन्होंने पिता से प्रश्न किए तथा सबसे प्रिय वस्तु को दान में देने की बात कही| 

बाजश्रवा ने क्रोधित होकर नचिकेता को यमराज को दान में दे दिया|नचिकेता पितृ आज्ञा का पालन करते हुए यम के द्वार पर आ पँहुचा| तीन दिनों तक यम की प्रतीक्षा के बाद उसकी भेंट यमराज से हुई| यमराज ने उसकी पितृ भक्ति से प्रसन्न होकर उसे तीन वरदान मांगने को कहा| पहले वरदान में उसने पिता की सुख-समृद्धि तथा क्रोध की शांति मांगी| दूसरे वरदान में नचिकेता ने स्वर्ग प्राप्ति का रहस्य को जानने की इच्छा व्यक्त की| यमराज ने नचिकेता को इन रहस्यों को जानने का मार्ग सुझाया और उसे वापिस भेज दिया|इस पौराणिक कथा को वर्तमान संदर्भों के प्रासंगिकता को निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:-

1. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं असहमति की स्वीकार्यता - नचिकेता अपने पिता को समझाते हुए कहता है कि यदि कोई व्यक्ति पूर्ण विवेक साथ आपके विचारों से भिन्न बात कर रहा हो तो उसकी बातों को सुनना ही सहिष्णुता की निशानी होती है| प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है तथा यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक के विचार आपके विचारों से मेल खाए| हो सकता है कि कोई आपके प्रति अपनी असहमति प्रकट करे | अतः उसकी असहमति को भी सहनशीलता के साथ स्वीकार करना ही विकसित विवेक का सूचक होता है| 

2. सत्य की खोज:-सत्य को प्राप्त करना सर्वाधिक कठिन कार्य है| नचिकेता सत्य की महत्ता प्रतिपादित करते हुए अपने पिता से कहता है कि जीवन सत्य को प्राप्त करने हेतु न जाने कितनी महान आत्माओं ने युगों तक संघर्ष किया है, तब जाके उन्हें सत्य का साक्षात्कार हुआ है| सच सदैव विद्रोही की तरह मनुष्य के विवेक को चुनौती देता रहा है| उसे पाने के लिए विवेक और साहस से काम लेना पड़ता है| मनुष्य का विवेक और साहस ही सबसे बड़ी पूंजी है जो उसे सत्य का साक्षात्कार करवाती है|

3. नई और पुरानी पीढ़ी का संघर्ष"-बाजश्रवा और नचिकेता का संघर्ष दो पीढ़ियों का संघर्ष है| बाजश्रवा की पीढ़ी पुरानी मान्यताओं पर आधारित है जो दैहिक सुखभोग की जीवन शैली को अंतिम सत्य मानती है और ऐसे ही सुखों की प्राप्ति हेतु स्वर्ग प्राप्ति की कामना करती है| नचिकेता नई पीढ़ी का प्रतिनिधि है जो वैचारिक स्वतंत्रता, आत्मशुद्धि और विवेकशीलता द्वारा हर चीज को जानने-परखने के बाद ही उसे जीवन में अपनाना चाहता है| वह खोखली मान्यताओं का विरोध करता है|

4. आस्था और तर्क का संघर्ष:-नचिकेता ऐसी आस्था को मानने से पूर्णतः इन्कार करता है जो विवेकहीन, रूढ़िवादी परंपराओं तथा स्वार्थ से प्रेरित हो| यह कैसी आस्था है जहाँ एक ओर उच्चतर जीवन मूल्यों की दुहाई दी जाती है दूसरी ओर अंधआस्था के सहारे लोग अपना स्वार्थ पूरा करने में लगे रहते है| नचिकेता स्वयं को नास्तिक सिद्ध करते हुए कहता है वह अपनी अनास्था में अधिक धार्मिक है क्योंकि वह तर्क के सहारे जीवन यापन करना चाहता है न कि धर्म का व्यापार करके| वह नहीं चाहता कि किसी प्रकार की अंध परंपराएं और कर्मकांड उसकी विवेकशीलता और तर्कशीलता की आवाज को दबा दे|

5. रूढ़िवादिता एवं धार्मिक आडंबरों का विरोध:-नचिकेता को रूढ़ियों का अंधानुकरण स्वीकार नहीं है| उसे लगता है कि धार्मिक अनुष्ठानों में जो भी सामग्री लाई जाती है, वे सब दिखावा मात्र के लिए है| अन्न, घी, पशु बलि और पुरोहित सभी दिखावा है, धर्म नहीं है| देवताओं को प्रसन्न कर स्वर्ग पाने की इच्छा मात्र धर्म का व्यापार है|“यह सब धर्म नहीं- धर्म सामग्रीका प्रदर्शन है|अन्न, घृत, पशु, पुरोहित,मैं”

6. पशु बलि का विरोध:-नचिकेता उस धार्मिक रूढ़ि को निरर्थक मानता है जहाँ किसी निरीह जीव की हत्या द्वारा मनोकामनाएँ पूरी की जाती है| वह अपने पिता से कहता है कि यदि स्वर्ग प्राप्ति का विश्वास पशु बलि पर टिका है तो उसे स्वर्ग नहीं चाहिए| जिस विश्वास का परिणाम हत्या है, उसे ऐसी आस्था, ऐसा विश्वास स्वीकार्य नहीं है| पशु बलि से प्रसन्न होने वाले देवता न जाने कब क्या मांग ले, यह सोचकर भी उसी से भय लगता है|“जो केवल हिंसा से अपने कोसिद्ध कर सकता है|नहीं चाहिए वह विश्वास,जिसकी चरम परिणतिहत्या हो|”

7. जीवन का एकमात्र सत्य मृत्यु :-नचिकेता इस परम सत्य को भली-भांति समझता है कि मनुष्य मरणशील है, मृत्यु उसके जीवन का अनिवार्य, अभिन्न सत्य है| मृत्यु का सामना मनुष्य को बिल्कुल अकेले रहकर करना होता है, उसके सामने वह निपट अकेला होता है| मृत्यु जीवन का अंतिम और एकमात्र सत्य है| इसके सामने कोई भी आडम्बर, कोई वरदान, कोई मोह नहीं ठहर सकता है:-“व्यक्ति मरता है और अपनी मृत्यु में वह बिल्कुल अकेला है, विवश असांतवनीय”अन्ततः कहा जा सकता है कि नचिकेता आधुनिक जिज्ञासु, तार्किक और सत्यानवेक्षी मनुष्य का प्रतीक है| आज मनुष्य पाप-पुण्य, स्वर्ग-नरक, जीवन-मृत्यु के प्रश्नों पर तर्क पूर्ण चिंतन करता है| वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को महत्त्व देता है तथा हर स्थिति- परिस्थिति को तर्क के आधार पर परखता है| वह चाहता है कि सच्चाई का निर्णय बल से नहीं तार्किक विश्लेषण एवं विवेक के आधार पर किया जाना चाहिए|

(प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम)

🙏🌼🌿जय गुरु🌿🌼🙏

पुण्य का फल मीठा लगता है | Punya Ka fal meetha lagta hai | -महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज | कोई पाप के फल से नहीं बच सकता है | केवल ध्यानयोग से ही पापों से बच सकते हैं। Santmat Satsang

यदि शैल समं पापं विस्तीर्ण बहुयोजनम्। 
भिद्यते ध्यानयोगेन नान्यो भेदः कदाचन।।   -ध्यानबिन्दु उपनिषद् 
मनुष्य अनिवार्य और वार्य दोनों तरह का कर्म करता ही रहता है। वह कर्म करने से बच नहीं सकता है। कर्म में पाप और पुण्य दोनों कर्म होते हैं। कोई पुण्य कर्म अधिक करते हैं और पाप कर्म कम। वही पुण्यात्मा कहलाते हैं। पाप कर्म का फल दुःख होता है और पुण्य कर्म का फल सुख होता है। बन्ध दशा में ही लोग पाप और पुण्य के फलों को भोगते हैं। पुण्य का फल मीठा लगता है और पाप फल कडुवा लगता है। केवल ध्यानयोग से ही पापों से बच सकते हैं। युधिष्ठिर जी झूठ बोले थे। उनको भी पाप का फल भोगना पड़ा। थोड़ा भी पाप किए हैं तो उसका फल भी भोगना ही पड़ेगा। सिर्फ तीर्थ-दान करने से ही कोई पाप के फल से नहीं बच सकता है। श्रद्धा चाहिए, परन्तु अन्धी श्रद्धा नहीं। -संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज
संकलन: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

मंगलवार, 18 मई 2021

श्रीराम का जीवन अनुकरणीय!🌼 ShreeRam ka Jeevan Anukarneey | Ramayan Pravachan | Santmat Satsang

अवध तहाँ जहँ राम निवासू। तहँइँ दिवसु जहँ भानु प्रकासू॥

जौं पै सीय रामु बन जाहीं। अवध तुम्हार काजु कछु नाहीं॥

श्रीराम का जीवन अनुकरणीय!🌼

भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे। अपनी मर्यादा के पालन में उन्होंने बहुत दुख सहे। पिता की आज्ञा का पालन हो या जनता की आवाज पर पत्‍‌नी का त्याग, उन्होंने मर्यादा का पालन कर समाज को अनुपम संदेश दिया है। आज लोग (खासकर युवक) अपने पथ से विचलित होता जा रहा है। माता पिता की अवज्ञा दिशा हीनता व जीवन में गलत लक्ष्यों का निर्धारण कर कुंठित व परेशान है। ऐसे में प्रभु श्रीराम का जीवन दर्शन युवाओं के लिए अनुकरणीय है। 

राम के चरित्र के कोटिवां अंश के श्रवण मात्र से तथा धारण कर लेने से पूरे समाज की दिशा परिवर्तन हो सकता है।राम जन-जन के थे, वे शबरी के राम थे, निषाद राज के राम थे तथा भाई के द्वारा तिरस्कृत विभीषण के लिए भी राम थे। समाज में ऊंच-नीच जाति धर्म का कोई बंधन व भेदभाव न रहे इसके लिए उन्होंने आम जनों की भांति जंगल में वास किया। गुरु के पैर दबाए तथा कुश पर शयन किया। अधर्म के नाश के लिए उन्होंने रावण जैसे महापापी का संहार भी किया। राम की कथा व राम का चरित्र वर्तमान में समाज के लिए उपयोगी ही नहीं अनिवार्य है।

🙏🌼🌿।। जय गुरु महाराज ।।🌿🌼🙏

रविवार, 16 मई 2021

मूर्ख | Murkh | जो व्यक्ति अपना काम छोड़कर दूसरों के काम में हाथ डालता है, वह वाकई में बुद्धिहीन कहलाता है। Santmat Satsang

🌼🌻मूर्ख🌻🌼

भगवान एक मूर्ख को उसके परिणाम भुगतने देता है। मूर्ख अपनी मूर्खता को प्रकट करता है। मूर्ख लोग अभिमानी होते हैं। मूर्खों ने हमेशा ज्ञान का तिरस्कार किया। 
मूर्ख लोग मूर्ख बनने में लगे रहते हैं। मूर्ख कभी संतुष्ट नहीं होता है वह दुष्ट और धोखेबाज होता है। 

बिना पढ़े ही स्वयं को ज्ञानी समझकर अंहकार करने वाले व्यक्ति, दरिद्र होकर भी बड़ी- बड़ी योजनाएं बनाने वाला व्यक्ति अज्ञानी और कम अक्ल वाला ही माना जाता है। जो व्यक्ति बिना पढ़े-लिखे, ज्ञान अर्जित किए घमंड रखने वाला, दरिद्र होकर भी जो व्यक्ति उसको दूर करने की बजाए बस बड़ी-बड़ी बातें करता है सिर्फ और सिर्फ मूर्ख व्यक्तियों की श्रेणी में आता है।

बिना मेहनत के धन की लालसा रखने वाला बैठे-बिठाए धन पाने की कामना करने वाला व्यक्ति मूर्ख कहलाता है। 


स्वमर्थ य: परित्यज्य परार्थमनुतिष्ठति।
मिथ्या चरति मित्रार्थे यश्च मूढ: स उच्यते।।

जो व्यक्ति अपना काम छोड़कर दूसरों के काम में हाथ डालता है, वह वाकई में बुद्धिहीन कहलाता है। यह संसार का नियम है कि मनुष्य को पहले खुद में समझदार और सक्षम होना चाहिए तब ही दूसरों के मामले में पड़ना चाहिए। हालांकि संसार में ऐसे लोग भी हैं जो अपना काम तो ठीक से पूरा कर नहीं पाते हैं बल्कि दूसरों के मामले में भी पड़ जाते हैं, अब ऐसे लोग मूर्ख के अलावा और क्या कहे जाएंगे।

मित्रता संसार में बहुत ही अनमोल रिश्ता होता है इसमें कोई दो राय नहीं है, लेकिन सही और गलत की पहचान होना अति आवश्यक है। एक अच्छे दोस्त की यही पहचान होती है कि अपने दोस्त को गलत मार्ग पर जाने से रोके, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मित्रता के चलते गलत काम में साथ देते हैं। ऐसे लोगों को भी मूर्ख कह सकते हैं। महाभारत में कर्ण समझदार होते हुए भी दुर्योधन के गलत कार्यों में भागी बने रहे परिणाम यह हुआ कि मित्र का पूरा विनाश हो गया और खुद भी मारे गए।

वालाअकामान् कामयति य: कामयानान् परित्यजेत्।
बलवन्तं च यो द्वेष्टि तमाहुर्मूढचेतसम्।।

जो व्यक्ति अपने हितैषियों को त्याग देता है तथा अपने शत्रुओं को गले लगाता है, उसके जितना मूर्ख तो कोई और हो ही नहीं सकता है। व्यक्ति अपने शुभचिंतक और दुश्मन में भेद करना नहीं जानता। यदि कोई व्यक्ति अपना भला सोचने वाले को छोड़ दे और उसकी जगह अपने दुश्मन का दामन थाम ले तो वह परममूर्ख माना जाएगा।
(प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार, गुरुग्राम)
🙏🌼🌿।। जय गुरु ।।🌿🌼🙏

सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...