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शनिवार, 15 सितंबर 2018

मानव जीवन में आचरण का महत्व | Maanav Jeevan me aachran ka mahatva | Santmat-Satsang

मानव जीवन में आचरण का महत्व!
☘मानव जीवन में आचरण का बहुत महत्व है। शक्तिशाली इंसान भी निर्बल है, धनवान भी निर्धन है, महाज्ञानी भी अज्ञानी है, अगर जीवन में अच्छा आचरण अर्थात धर्म नही है। धर्म किसी व्यक्ति के आवरण से नहीं व्यवहार से प्रकट होता है।  मनुष्य जो  अपने लिए चाहता है, वही व्यवहार दूसरों के साथ भी करना चाहिए। धर्म जीवन में प्रवेश करता है तो शान्ति देता है। धनी होना सौभाग्य की बात है मगर परम सौभाग्य तब होगा जब हम धार्मिक बनेंगे। धार्मिक आदमी की पहचान है जो खुद भी सुख से जीता है और दूसरों को भी सुख से जीने देता है। दूसरों का सुख नहीं छीनता। अपने किये खोटे कर्मो के प्रति प्रायश्चित करता है हे इश्वर जो हो गया सो गया अब बदल रहा हूं। आदमी का कर्म ही धर्म तक जाने वाला रास्ता है। धर्म इंसानियत के विकास मे सहायक होता है।

जीवन में धार्मिकता लाने के लिए :-
ऐसा नही कमाना, पाप हो जाए
ऐसा नही बोलना, क्लेश हो जाए
ऐसा नही खर्चना, कर्ज हो जाए
ऐसा नही खाना, मर्ज हो जाए

"तन पवित्र सेवा किए, धन पवित्र कर दान।
मन पवित्र हरि भजन कर, होत त्रिविध कल्याण।।"

जय गुरु महाराज
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम, हरियाणा
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सत्संग का निवेदन व आमंत्रण | Request and invitation of Satsang | Santmat-Satsang | Maharshi-Mehi | SANTMEHI | SADGURUMEHI

सत्संग का निवेदन व आमंत्रण
हर मनुष्य चाहता है कि वह स्वस्थ रहे, समृद्ध रहे और सदैव आनंदित रहे, उसका कल्याण हो। मनुष्य का वास्तविक कल्याण यदि किसी में निहित है तो वह केवल सत्संग में ही है। सत्संग जीवन का कल्पवृक्ष है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है:-


बिनु सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।
सतसंगत मुद मंगल मूला।
सोई फल सिचि सब साधन फूला।।

'सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और श्रीरामजी की कृपा के बिना वह सत्संग सहज में नहीं मिलता। सत्संगति आनंद और कल्याण की नींव है। सत्संग की सिद्धि यानी सत्संग की प्राप्ति ही फल है। और सब साधन तो फूल हैं।'
सत्संग की महत्ता का विवेचन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास आगे कहते हैं-
एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आध।
तुलसी संगत साधु की हरे कोटि अपराध।।

आधी से भी आधी घड़ी का सत्संग यानी साधु संग करोड़ों पापों को हरने वाला है। अतः

करिये नित सत्संग को बाधा सकल मिटाय।
ऐसा अवसर ना मिले दुर्लभ नर तन पाय।।

हम सबका यह परम सौभाग्य है कि हजारो-हजारों, लाखों-लाखों हृदयों को एक साथ ईश्वरीय आनन्द में सराबोर करने वाले, आत्मिक स्नेह के सागर, सत्यनिष्ठ सत्पुरूष पूज्यपाद महर्षि हरिनंदन परमहंस जी महाराज  सांप्रत काल में समाज को सुलभ हुए हैं।
आज के देश-विदेश में घूमकर मानव समाज में सत्संग की सरिताएँ ही नहीं अपितु सत्संग के महासागर लहरा रहे हैं। उनके सत्संग व सान्निध्य में जीवन को आनन्दमय बनाने का पाथेय, जीवन के विषाद का निवारण करने की औषधि, जीवन को विभिन्न सम्पत्तियों से समृद्ध करने की सुमति मिलती है। इन महान विभूति की अमृतमय योगवाणी से ज्ञानपिपासुओं की ज्ञानपिपासा शांत होती है, दुःखी एवं अशान्त हृदयों में शांति का संचार होता है एवं घर संसार की जटिल समस्याओं में उलझे हुए मनुष्यों का पथ प्रकाशित होता है।

हमारे कर्म बंधनकारी भी हो सकते हैं और मुक्ति प्रदाता भी !
हमारा हर वो कर्म जो अहं भाव व स्वार्थ से प्रेरित होगा वह बंधनकारी होगा !
हमारा हर वो कर्म जो साक्षी भाव से, निस्वार्थ, बिना आसक्ति से अर्थात कर्तापन के अहंकार से मुक्त है वह मोक्षदायक होगा !
मोक्ष-परम आनंद में प्रवेश,संपूर्ण मानसिक शांति तथा विक्षेपों का अंत है!

।। जय गुरु ।।
प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

गुरुवार, 13 सितंबर 2018

कर्म भोग | Karma Bhog | Karmafal |

 कर्म भोग 

पूर्व जन्मों के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नि, प्रेमी-प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते हैं, सब मिलते हैं । क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है ।

सन्तान के रुप में कौन आता है ?

वेसे ही सन्तान के रुप में हमारा कोई पूर्वजन्म का 'सम्बन्धी' ही आकर जन्म लेता है । जिसे शास्त्रों में चार प्रकार से बताया गया है --

ऋणानुबन्ध  : पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो, वह आपके घर में सन्तान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा, जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो जाये ।

शत्रु पुत्र : पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में सन्तान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर माता-पिता से मारपीट, झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा । हमेशा कड़वा बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दुःखी रखकर खुश होगा ।

उदासीन पुत्र  : इस प्रकार की सन्तान ना तो माता-पिता की सेवा करती है और ना ही कोई सुख देती है । बस, उनको उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ देती है । विवाह होने पर यह माता-पिता से अलग हो जाते हैं ।

सेवक पुत्र  : पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा की है तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिए आपका पुत्र या पुत्री बनकर आता है और आपकी सेवा करता है । जो  बोया है, वही तो काटोगे । अपने माँ-बाप की सेवा की है तो ही आपकी औलाद बुढ़ापे में आपकी सेवा करेगी, वर्ना कोई पानी पिलाने वाला भी पास नहीं होगा ।

पाप का फल मनुष्य को कभी न कभी अवश्य मिलता है!

आप यह ना समझें कि यह सब बातें केवल मनुष्य पर ही लागू होती हैं । इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव आ सकता है । जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा की है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है । यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पालकर उसको दूध देना बन्द करने के पश्चात घर से निकाल दिया तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी । यदि आपने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा और आपसे बदला लेगा ।

इसलिये जीवन में कभी किसी का बुरा ना करें । क्योंकि प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे, उसे वह आपको इस जन्म में या अगले जन्म में सौ गुना वापिस करके देगी । यदि आपने किसी को एक रुपया दिया है तो समझो आपके खाते में सौ रुपये जमा हो गये हैं । यदि आपने किसी का एक रुपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रुपये निकल गये ।

ज़रा सोचिये, "आप कौन सा धन साथ लेकर आये थे और कितना साथ लेकर जाओगे ? जो चले गये, वो कितना सोना-चाँदी साथ ले गये ? मरने पर जो सोना-चाँदी, धन-दौलत बैंक में पड़ा रह गया, समझो वो व्यर्थ ही कमाया । औलाद अगर अच्छी और लायक है तो उसके लिए कुछ भी छोड़कर जाने की जरुरत नहीं है, खुद ही खा-कमा लेगी और औलाद अगर बिगड़ी या नालायक है तो उसके लिए जितना मर्ज़ी धन छोड़कर जाओ, वह चंद दिनों में सब बरबाद करके ही चैन लेगी ।"

मैं, मेरा, तेरा और सारा धन यहीं का यहीं धरा रह जायेगा, कुछ भी साथ नहीं जायेगा । साथ यदि कुछ जायेगा भी तो सिर्फ "नेकियाँ" ही साथ जायेंगी। इसलिए जितना हो सके "नेकी" कर, "सतकर्म" कर।

मंगलवार, 11 सितंबर 2018

धार्मिकता का बाहरी दिखावा ... Dharmikta ka bahri dikhawa | Maharshi Mehi Sewa Trust | SantMehi | SanatanMehi

जय गुरु!
   धार्मिकता का बाहरी दिखावा, जैसे गुदड़ी या गेरुआ वस्त्र पहनना, माला, तिलक या भस्म लगाना, केश मुंडाना या जटा बढ़ाना अथवा भिक्षा-पात्र लेकर भीख माँगते चलना आदि केवल आडंबर और पाखंड हैं। परमात्मा के सच्चे प्रेमी ऐसा कोई बाहरी दिखावा नहीं करते, क्योंकि दिखावा केवल दुनिया को दिखाने के लिए होता है। भक्तों का संपूर्ण अभ्यास अंतर्मुखी होता है। वे अंदर में उस नाम से जुड़े होते हैं जो एक मात्र सत्य है:

संत दादू दयाल जी महाराज कहते  हैं -

*माया कारणि मूँड मुँड़ाया, यहु तौ जोग न होई।*
*पारब्रह्म सूँ परचा नाहीं,  कपट न सीझै कोई।।*

*पीव न पावै बावरी, रचि रचि करै सिंगार।*
*दादू फिरि फिरि जगत सूँ, करेगी बिभचार।।*

*जोगी जंगम सेवड़े, बौद्ध सन्यासी सेख।*
*षटदर्शन दादू राम बिन, सबै कपट के भेख।।*

*बाहर का सब देखिये, भीतर लख्या न जाइ।*
*बाहरि दिखावा लोक का, भीतरि राम दिखाइ।।*

*सचु बिनु साईं ना मिलै, भावै भेष  बनाइ।*
*भावै करवत उरध-मुखि, भावै तीरथ जाइ।।*

*साचा हरि का नाँव है, सो ले हिरदे राखि।*
*पाखँड परपँच दूर करि, सब साधौं की साखि।।*

*निरंजन जोगी जानि ले चेला।सकल व्यापी रहै अकेला।।*

*खपर न झोली डंड अधारी। मठी माया लेहु बिचारी।।*

*सींगी मुद्रा विभूति न कंथा। जटा जप आसण नहिं पंथा।।*

*तीरथ बरत न बनखंड बासा।मांगि न खाइ नहीं जगह आसा।।*

*अमर गुरु अविनासी जोगी। दादू चेला महारस भोगी।।*
       जय गुरु!

जैसे-जैसे मेरी उम्र में वृद्धि होती गई... |

जैसे जैसे मेरी उम्र में वृद्धि होती गई, मुझे समझ आती गई कि अगर मैं Rs.3000 की घड़ी पहनू या Rs.30000 की दोनों समय एक जैसा ही बताएंगी.!

मेरे पास Rs.3000 का बैग हो या Rs.30000 का इसके अंदर के सामान मे कोई परिवर्तन नहीं होंगा। !

मैं 300 गज के मकान में रहूं या 3000 गज के मकान में, तन्हाई का एहसास एक जैसा ही होगा।!

आख़ीर मे मुझे यह भी पता चला कि यदि मैं बिजनेस क्लास में यात्रा करू या इक्नामी क्लास मे, अपनी मंजिल पर उसी नियत समय पर ही पहुँचूँगा।!

इसीलिए _ अपने बच्चों को अमीर होने के लिए प्रोत्साहित मत करो बल्कि उन्हें यह सिखाओ कि वे खुश कैसे रह सकते हैं और जब बड़े हों, तो चीजों के महत्व को देखें उसकी कीमत को नहीं....

फ्रांस के एक वाणिज्य मंत्री का कहना था,
*ब्रांडेड चीजें व्यापारिक दुनिया का सबसे बड़ा झूठ होती हैं जिनका असल उद्देश्य तो अमीरों से पैसा निकालना होता है लेकिन गरीब और मध्यम वर्ग इससे बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं*।

क्या यह आवश्यक है कि मैं Iphone लेकर चलूं फिरू ताकि लोग मुझे बुद्धिमान और समझदार मानें?

क्या यह आवश्यक है कि मैं रोजाना Mac या Kfc में खाऊँ ताकि लोग यह न समझें कि मैं कंजूस हूँ?

क्या यह आवश्यक है कि मैं प्रतिदिन friends के साथ उठक-बैठक Downtown Cafe पर जाकर लगाया करूँ ताकि लोग यह समझें कि मैं एक रईस परिवार से हूँ?

क्या यह आवश्यक है कि मैं Gucci, Lacoste, Adidas या Nike के पहनूं ताकि high status वाली कहलाया जाऊँ?

क्या यह आवश्यक है कि मैं अपनी हर बात में दो चार अंग्रेजी शब्द शामिल करूँ ताकि सभ्य कहलाऊं?

क्या यह आवश्यक है कि मैं Adele या Rihanna को सुनूँ ताकि साबित कर सकूँ कि मैं विकसित हो चुका हूँ?

_नहीं दोस्तों !!!

मेरे कपड़े तो आम दुकानों से खरीदे हुए होते हैं,
Friends के साथ किसी ढाबे पर भी बैठ जाता हूँ,

भुख लगे तो किसी ठेले से ले कर खाने मे भी कोई अपमान नहीं समझता,

अपनी सीधी सादी भाषा मे बोलता हूँ। चाहूँ तो वह सब कर सकता हूँ जो ऊपर लिखा है।।

_लेकिन ....

मैंने ऐसे लोग भी देखे हैं जो एक branded जूतों की जोड़ी की कीमत में पूरे सप्ताह भर का राशन ले सकते हैं।

मैंने ऐसे परिवार भी देखे हैं जो मेरे एक Mac बर्गर की कीमत में सारे घर का खाना बना सकते हैं।

बस मैंने यहाँ यह रहस्य पाया है कि पैसा ही सब कुछ नहीं है जो लोग किसी की बाहरी हालत से उसकी कीमत लगाते हैं वह तुरंत अपना इलाज करवाएं।

मानव मूल की असली कीमत उसकी _नैतिकता, व्यवहार, मेलजोल का तरीका, सहानुभूति और भाईचारा है_। ना कि उसकी मौजुदा शक्ल और सूरत. !!!

सूर्यास्त के समय एक बार सूर्य ने सबसे पूछा, मेरी अनुपस्थिति मे मेरी जगह कौन कार्य करेगा?
समस्त विश्व मे सन्नाटा छा गया। किसी के पास कोई उत्तर नहीं था। तभी  कोने से एक आवाज आई।
दीपक ने कहा "मै हूं  ना" मै अपना पूरा  प्रयास  करुंगा ।

आपकी सोच में ताकत और चमक होनी चाहिए। छोटा -बड़ा होने से फर्क  नहीं पड़ता,सोच  बड़ी  होनी चाहिए। मन के भीतर एक दीप जलाएं और सदा मुस्कुराते रहें।

आचार व्यवहार | Aachar Vyavhar |

आचार-व्यवहार

सुख भी नियम से दुख भी नियम से होना सिद्ध हुआ है !
१. बलवान दया पूर्वक सुखी होता है !
२. बुद्धिमान विवेक तथा विज्ञान पूर्वक सुखी होता है ! 

३. रूपवान सतचरित्रता पूर्वक सुखी होता है !
४. पदवान न्याय पूर्वक सुखी होता है !
५. धनवान उदारतापूर्वक सुखी होता है !
६. विद्यार्थी निष्ठापूर्वक सुखी होता है !
७. सहयोगी कर्तव्य पूर्वक सुखी होता है !
८. साथी दायित्व पूर्वक सुखी होता है !
९. तपस्वी संतोष पूर्वक सुखी होता है !
१०. लोकसेवक स्नेहपूर्वक सुखी होता है !
११. सह अस्तित्व में प्रेम पूर्वक मानव सुखी होता है !
१२. रोगी तथा बालक के साथ आज्ञापालन के रूप में सुख अनुभूतियां सिद्ध हुई है !

इसी प्रकार:-

१. पुरुष का जीवन व्यक्तित्व से सफल है !
२. स्त्री का जीवन सतीत्व से सफल है !
३. माता पिता का जीवन व्यक्तित्व से सफल है !
४. पुत्र का जीवन नैतिकता के प्रति निष्ठा से सफल है !
५. व्यवसाय न्यायपूर्ण नियम के समर्थन में पालन से सफल है !
६. प्रजा का जीवन समग्र व्यवस्था में भागीदारी से तथा अनुशासन एवं नियम को स्वीकारने से सफल है !
७. गुरु का जीवन अनुभव को प्रमाणिकता पूर्वक अध्ययन कराने से सफल है !
८. शिष्य का जीवन गुरु द्वारा कराए गए अध्ययन के श्रवण मनन और अर्थ बौध संपन्नता से सफल है !
९. सहयोगी का जीवन कर्तव्य का निर्वाह करने से सफल है !
१०. साथी का जीवन दायित्वों को निर्वाह करने से सफल है !
११. भाई या बहन का जीवन एक दूसरे के स्नेह सहित दायित्व वहन करने से सफल है !
१२. मित्र का जीवन परस्पर दिखावा रहित, उदारता पूर्वक समाधान (सहयोग) को प्रमाणित करने से सफल है !

अच्छा आचार-व्यवहार बनाएं. ...आपका सुखी जीवन रहे...इसी कामना के साथ... शुभप्रभात.... ....

ऐतिहासिक उद्बोधन | विश्व धर्म सम्मेलन भाषण! -स्वामी विवेकानंद। विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व | Swami Vivekanand

ऐतिहासिक उद्बोधन 

विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व 
स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। विवेकानंद का जब भी जि़क्र आता है उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है।
पढ़ें विवेकानंद का यह भाषण...

अमेरिका के बहनों और भाइयों!

आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्त्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था। और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है, जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं। वर्तमान सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है, जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।

सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं।

अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा। -स्वामी विवेकानन्द

सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...