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शुक्रवार, 8 जून 2018

ईश्वर भक्ति में प्रधानता | Eshwar bhakti me pradhanta | महर्षि संतसेवी परमहंस | Maharshi Santsevi Paramhans | Santmat-Satsang

संतमत-सत्संग के द्वारा ईश्वर-भक्ति का प्रचार होता है। ईश्वर भक्ति में तीन बातों की प्रधानता होती है - स्तुति, प्रार्थना और उपासना। स्तुति कहते हैं यश-गान करने को। ईश्वर के यश-गान से उनकी महिमा-विभूति जानी जाती है। महिमा-विभूति जानने से उनके प्रति श्रद्धा होती है। श्रद्धा होने से उनकी भक्ति करने की प्रेरणा मिलती है। गो० तुलसीदासजी महाराज ने बतलाया -

जाने बिनु न होइ परतीती।
बिनु परतीति होइ नहिं प्रीति।।
प्रीति बिना नहीं भक्ति दृढ़ाई।
जिमि खगेस जल के चिकनाई।।

जिनकी हम भक्ति या सेवा करना चाहें, जब तक उनके गुणों को हम नहीं जानते हैं, तो उनके ऊपर हमारा विश्वास नहीं होता है। जब विश्वास नहीं होता है, तो उनके साथ प्रेम भी नहीं होता। प्रेम जब नहीं होगा, तो उनकी हम सेवा क्या कर सकेंगे? तब अगर हम सेवा भी करेंगे, तो वह दिखावटी सेवा होगी। जिस तरह से जल की चिकनाई नही ठहरती, उसी तरह वह भक्ति भी नहीं ठहर सकती। इसीलिए आवश्यक है, पहले हम ईश्वर-स्वरूप को समझ लें।

-महर्षि संतसेवी परमहंसजी महाराज

गुरुवार, 7 जून 2018

सत्संगति और कुसंगति में भेद | Satsangati aur kusangati me bhed | हमारा जीवन सुखमय और सुसंस्कृत हो | Santmat Satsang

आध्यात्मिक दौर से गुजरते परिवेश में ऐसे बहुत सी बातें हैं जो कि हम लोग अनजाने में ही अपना लेते हैं और पता भी नहीं चलता कि किस तरह और कब हम सुसंगती से कुसंगति में कदम रखते चले जाते हैं और बाद में पाश्चाताप के सिवा कुछ भी नहीं रहता है।


    कुसंगत दीमक की तरह है जो अंदर ही अंदर इंसान को खोखला बना देता है और उसे अपने लक्ष्य तक पहुंचने नहीं देता। आध्यात्मिक जीवन में इसका सर्वथा त्याग है नहीं तो आध्यामिक जीवन में सफलता मिलना अत्यंत कठिन है।
         हमें सत्संगति और कुसंगति का भेद जानकर इसका सर्वथा त्याग करना ही चाहिए। इसके लिए संत महात्माओं का शरण लेना और उनके बताये मार्ग पर चलना अति आवश्यक है इसी में हमारा उद्देश्य छुपा है और इसी में हमारा उद्धार है।

सत्संगति और कुसंगति में भेद:-

सत्संगति कल्याण का मूल है और कुसंगति पतन का। कुसंगति पहले तो मीठी लगती है पर इसका फल बहुत ही कड़वा होता है।
पवन के संग से धूल आकाश में ऊँची चढ़ जाती है और वही नीचे की ओर बहने वाले जल के संग से कीचड़ में मिल जाती है यह संग का प्रभाव ही है।।
   दुर्जनों के प्रति आकर्षित होने से मनुष्य को अंत में धोखा ही खाना पड़ता है। कुसंगति से आत्मनाश, बुद्धि-विनाश होना निश्चित है। दुर्जनों के बीच में मनुष्य की विवेकशक्ति उसी प्रकार मंद हो जाती है, जैसे अंधकार में दृष्टि। बहुत से अयोग्य व्यक्ति मिलकर भी आत्मोद्धार का मार्ग उसी प्रकार नहीं ढूँढ सकते, जैसे सौ अंधे मिलकर देखने में समर्थ नहीं होते। कुसंगति से व्यक्ति परमार्थ के मार्ग से पतित हो जाता है।

अंधे को अंधा मिले, छूटै कौन उपाय।

कुसंगति के कारण मनुष्य को समाज में अप्रतिष्ठा और अपकीर्ति मिलती है। दुर्जनों की संगति से सज्जन भी अप्रशंसनीय हो जाते है। अतः कुसंगति का शीघ्रातिशीघ्र परित्याग करके सदा सत्संगति करनी चाहिए।

सत्संगति:-
सत्संग सिद्धि का प्रथम सोपान है। सत्संगति बुद्धि की जड़ता नष्ट करती है, वाणी को सत्य से सींचती है। पुण्य बढ़ाती है, पाप मिटाती है, चित्त को प्रसन्नता से भर देती है, परम सुख के द्वार खोल देती है।
प्रार्थना और पुकार से भावनाओं का विकास होता है, भावबल बढ़ता है। प्राणायाम से प्राणबल बढ़ता है, सेवा से क्रिया बल बढ़ता है और सत्संग से समझ बढ़ती है। मनुष्य अपनी बुद्धि से ही प्रत्येक बात का निश्चय नहीं कर सकता। बहुत सी बातों के लिए उसे श्रेष्ठ मतिसम्पन्न मार्गदर्शक एवं समर्थ आश्रयदाता चाहिए। यह सत्संगति से ही सुलभ है।
संत कबीर जी के शब्दों में-

बहे बहाये जात थे, लोक वेद के साथ।
रस्ता में सदगुरु मिले, दीपक दीन्हा हाथ।।


सदगुरु भवसागर के प्रकाश-स्तम्भ होते हैं। उनके सान्निध्य से हमें कर्तव्य-अकर्तव्य का ज्ञान होता है। कहा भी गया हैः

सतां संगो हि भेषजम्।

'संतजनों की संगति ही औषधि है।' अनेक मनोव्याधियाँ सत्संग से नष्ट हो जाती हैं। संतजनों के प्रति मन में स्वाभाविक अनुराग-भक्ति होने से मनुष्य में उनके सदगुण स्वाभाविक रूप से आने लगते हैं। साधुपुरुषों की संगति से मानस-मल धुल जाता है, इसलिए संतजनों को चलता फिरता तीर्थ भी कहते हैं।
        ‌‌ हमारा देश अन्य देशों की अपेक्षा ज्यादा सुसंस्कृत कहलाती है साथ-ही-साथ साधु-संतों महात्माओं का देश कहलाता है और संतजन हमारे देश की गरीमा है।।
     इसलिए जब भगवान राम ने माता शवरी को नवधा भक्ति बताई थी तो सबसे पहले संतजन का संग करने को कहा था।।
            हमारा जीवन सुखमय और सुसंस्कृत हो आध्यात्मिकता की चरम सीमा तक जाये इसी शुभकामनाएँ के साथ गुरु महाराज जी के श्रीचरणों में मेरा शत-शत नमन वंदन!🙏

प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार, गुरुग्राम 

एक विद्या मिलती है पण्डितों-अध्यापकों के पास | दूसरी विद्या होती है, जो साधु-संतों के संग में मिलती है | महर्षि मेँहीँ | Maharshi Mehi | Santmat-Satsang

“एक विद्या है कि पण्डितों-अध्यापकों के पास मिलती है | दूसरी विद्या होती है, जो साधु-संतों के संग में मिलती है | स्कूल-कॉलेज की विद्या में संसार के प्रबन्ध का ख्याल ज्यादे होता है | और साधु-संतों के पास जाने से जो विद्या आती है, उसमें संसार का प्रबन्ध तो रहता ही है, लेकिन यह भी रहता है कि शरीर छोड़ने के बाद तुम्हारी क्या हालत होगी, यह भी सोचो | संसार में रहने के लिए बहुत अच्छा प्रबन्ध किया | कुछ दिन वा कुछ वर्ष रहे, चले गए | कहाँ चले गए, इसका कोई ठिकाना नहीं | शरीर छोड़ने पर तुम दु:ख में नहीं जाओ, इसका प्रबन्ध कर लिया तब तो ठीक है | लेकिन नहीं किया तो, अभी तुमको कुछ करना चाहिए | जाना ज़रूर है, लेकिन शरीर के बाद का जीवन बहुत लम्बा है, इसका प्रबन्ध करो | संसार का प्रबन्ध करना ही है और शरीर छूटने के बाद का भी प्रबन्ध सोचो, नहीं तो अपनी बहुत बड़ी हानि करते हो | बड़ी हानि से बचो और दूसरों को भी बचाओ |

ईश्वर के भजन से जीवन सुखमय होगा | अपने को भला बनाना ईश्वर-भजन से होगा | बहुत पढ़-लिख लिए; इससे अपनी पूरी भलाई हो, ऐसी बात नहीं | संसार में तुम अपने को सँभाल कर रखो कि तुम्हारी कोई निन्दा न करे | यदि तुम्हारा आचरण ठीक है और लोग तुम्हारी निन्दा करें, तो परवाह मत करो | और यदि तुमसे किसी तरह का काम हो गया है, तब जो तुमको कोई कुछ कहे, तो उसको अपना मित्र मानो | ईश्वर की ओर चलने के लिए पवित्र भाव से रहना होगा | संसार की कमाई में पाप-पुण्य का विचार नहीं होता, लेकिन ईश्वर-भजन में पाप-पुण्य का विचार करके चलना होगा | कोई चाहे कि ईश्वर भजन भी करेंगे और पाप भी करेंगे, तो उससे ईश्वर का भजन नहीं होगा | ईश्वर का भजन आजकल-आजकल कहकर मत टालो |” - महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज

मंगलवार, 5 जून 2018

यह मानव शरीर बारम्बार मिलने को नहीं है | Yah maanav sharir barambar milne ko nahi hai | -महर्षि संतसेवी | Maharshi Santsevi | Santmat Satsang |

यह मनुष्य शरीर बारंबार मिलने को नहीं है। तुम्हारे किसी पुण्य के कारण प्रभु की कृपा हो गयी और तुमको उन्होंने मनुष्य का शरीर दे दिया। इस मनुष्य शरीर को पाकर तुम्हारी स्थिति क्या है? विचारो- सोचो,
'घटत छिन छिन बढ़त पल पल, जात न लागत बार।'  वे कहते हैं - एक ओर तो घट रहा है और दूसरी ओर बढ़ रहा है। यानी क्षण-क्षण घटने और बढ़ने का कार्य चल रहा है। अर्थात् जिस दिन किसी का जन्म होता है, वह उसका प्रथम दिन होता है। मान लीजिए कि कोई सौ वर्ष की आयु लेकर इस संसार में आया। जिस दिन उसकी उम्र 5 साल की हो गई तो उसके माता-पिता कहने लगे कि हमारा बच्चा 5 साल का हो गया लेकिन समझने की बात यह है कि जो बच्चा सौ साल का जीवन लेकर आया था उसमें उसके 5 साल घट गए, 95 साल ही बाकी बचे। जिस दिन उसकी उम्र 10 साल की हुई तो उसके माता-पिता समझने लगे कि हमारा बच्चा 10 साल का हो गया, लेकिन 100 में से 10 साल घट गए। जब वह 25 साल का हुआ, तो उसके जीवन के 75 साल बाकी बचे, 25  साल घट गए। इसी तरह आयु घटती जाती है है और उम्र बढ़ती जाती है। इसीलिए गुरु नानक देव जी महाराज कहते हैं- 'घटत छिन-छिन बढ़त पल-पल, जात न लागत बार'

जो समय बीत जाता है, कितना भी प्रयत्न करने पर वह फिर लौटकर नहीं आता है। हम एक बार जिस नदी के जल में डुबकी लगा लेते हैं, उस जल में हम दूसरी बार डुबकी नहीं लगा सकते, क्योंकि वह जल तो निकलकर आगे चला जाता है। तुरंत दूसरा जल वहाँ आता है जिसमें हम डुबकी लगाते हैं। उसी तरह हमारे जीवन के क्षण बीते चले जा रहे हैं ,बीतते चले जा रहे हैं। जो बीत गया वह वक्त फिर आने को नहीं है। गुरु नानक देव जी कहते हैं कि जिस वृक्ष से कोई फल टूटकर नीचे गिर जाता है किसी भी उपाय से वह उस डाल में नहीं लग सकता है। उसी तरह जीवन के जितने क्षण बीत गए हैं, वह फिर दोबारा आने को नहीं है। इसलिए हमारा जो बचा हुआ जीवन है, इसके लिए हम सोचें, विचारें और जो कर्तव्य करना चाहिए, वह करें। प्रभु ने कृपा करके हमको मानव तन दिया है। मानव किसको कहते हैं? मननशील प्राणी को मानव कहते हैं। -पूज्यपाद महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज

आदमी को स्वाभाविक रूप से शाकाहारी होना चाहिए | Aadmi ko swabhavik rup se shakahari hona chahiye | Santmat Satsang

आदमी को, स्वाभाविक रूप से, एक शाकाहारी होना चाहिए, क्योंकि पूरा शरीर शाकाहारी भोजन के लिए बना है। वैज्ञानिक इस तथ्य को मानते हैं कि मानव शरीर का संपूर्ण ढांचा दिखाता है कि आदमी गैर-शाकाहारी नहीं होना चाहिए। आदमी बंदरों से आया है। बंदर शाकाहारी हैं, पूर्ण शाकाहारी। अगर डार्विन सही है तो आदमी को शाकाहारी होना चाहिए।

अब जांचने के तरीके हैं कि जानवरों की एक निश्चित प्रजाति शाकाहारी है या मांसाहारी: यह आंत पर निर्भर करता है, आंतों की लंबाई पर। मांसाहारी पशुओं के पास बहुत छोटी आंत होती है। बाघ, शेर इनके पास बहुत ही छोटी आंत है, क्योंकि मांस पहले से ही एक पचा हुआ भोजन है। इसे पचाने के लिये लंबी आंत की जरूरत नहीं है। पाचन का काम जानवर द्वारा कर दिया गया है। अब तुम पशु का मांस खा रहे हो। यह पहले से ही पचा हुआ है, लंबी आंत की कोई जरूरत नहीं है। आदमी की आंत सबसे लंबी है: इसका मतलब है कि आदमी शाकाहारी है। एक लंबी पाचनक्रिया की जरूरत है, और वहां बहुत मलमूत्र होगा जिसे बाहर निकालना होगा।

शाकाहार हमें कई सारी खतरनाक बीमारियों जैसे कैंसर, दिल की बीमारी व टाईप-2 डायबिटीज से बचाता है और मष्तिष्क के स्वास्थ्य को बल देता है। ये बात उन लोगों के लिए सत्यपरक तथ्य है , जो मांसाहार की वकालत करते नहीं थकते। शोध अध्ययनों के क्रमों में लगातार प्राप्त प्रमाण कुछ ऐसा ही संकेत दे रहे हैं। 1970 एवं 1980 में अमेरीका केलीफोर्निया स्थित लोमा लिंडा विश्वविद्यालय ने लगभग दस हजार ऐसे लोगों की जीवनशैली में खान-पान को गहराई से देखा और परिणाम कुछ ऐसा मिला की शाकाहारी लोग मांसाहारी की तुलना में लम्बी आयु जीने वाले पाए गए।
अध्ययन के अंत तक लगभग 96,000 लोगों को इस शोध में शामिल किया जा चुका था। इस शोध को एकेडमी ऑफ न्यूट्रीशन एंड डायटिक्स के 2012 के कांफ्रेंस में प्रस्तुत किया जा चुका है। इस अध्ययन के अनुसार शाकाहारी पुरुषों में औसत आयु 83.3 एवं महिलाओं में आयु 85.7 वर्ष पाई गई।यह मांस भक्षण करने वाले पुरुषों और महिलाओं की तुलना में क्रमश: 9.5 एवं 6.1 वर्ष अधिक है।इस अध्ययन में यह भी पाया गया की मांसाहारी लोगों का मोटापे को मापने का स्केल बी.एम.आई .शाकाहारियों की अपेक्षा तीस पाउंड कम पाया गया। इतना ही नहीं आगे के परिणाम तो कुछ और भी चौकाने वाले थे,मांसाहारियों की अपेक्षा शाकाहारियों में इंसुलिन प्रतिरोध की संभावना भी कम पायी गयी तो मांसाहारी हो जाएं सावधान अब फल और सब्जियां ही करेंगी हमारा कल्याण।

मांसाहार बहुत ही बड़ा अधर्म है | Maansahaar bahut bara adharm hai | पश्चिमी देशों के मांसाहारी लोग अब दुबारा शाकाहारी हो रहे हैं | The people of western countries keep on becoming vegetarian again.

मांसाहार बहुत ही बड़ा अधर्म है। भारत में लगभग बहुतायत संख्या में लोग अब मांसाहार करने लगे है। मांसाहार के कुछ नुकसान आपके सामने है:

१. मांसाहार करने के लिए निर्दोष जीवो की हत्या करनी पड़ती है।
२. एक बहुत बड़ी खोज के अनुसार शाकाहारी लोग मांसाहारियों से ज्यादा जीवित रहते हैं।
३. उसी खोज के अनुसार मांसाहार करने वाले लोग अधिक बीमार पड़ते हैं।
४. मांसाहार पोषण में शाकाहार से आगे नहीं है, दुनिया के सबसे बड़े खिलाडी अपनी सेहत बनाए रखने के लिए शाकाहार का रास्ता अपना रहे हैं।
४. मांसाहार के कारण पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है।
५. मांसाहार के लिए बहुत सारी जमीन और पैसा खर्च होता है। मांसाहार दुनिया मैं भुखमरी का सबसे बड़ा कारण है।
६. मांसाहार खाने से व्यक्ति क्रूर हो जाता है। मारे जाने वाले जानवर के तड़पते हुए मांस को खाएँगे तो ऐसा ही होगा।

जाकिर नाइक जैसे कुछ लोग मांसाहार को सही साबित करने के लिए कहते है की पौधों में भी जीवन होता है। इस कुतर्क को देने से पहले जाकिर नाइक ये नहीं सोचते की पौधों में उनका दिमाग नहीं होता परन्तु किसी जीव को आप जब मारते है तो उसे, दुःख, दर्द, पीड़ा होती है और उसको मारकर खाना बहुत ही बड़ा पाप है। जाकिर नाइक जैसे कुछ लोग हमारे पैने वाले दातों का हवाला भी देते है और कहते है की भगवान् ने इंसान को पैने दांत मांस खाने के लिए ही दिए है लेकिन अगर ईश्वर की दी हुई हर चीज का प्रयोग करना जरूरी है तो नाखून क्यों काटे जाते है ??

एक सबसे बड़ा कुतर्क ये है की अगर जानवरों को नहीं मरेंगे तो उनकी संख्या बहुत बढ़ जाएगी......अरे भाई कुछ जानवर ऐसे हैं जिनको कोई नहीं खाता लेकिन फिर भी वो विलुप्ति की कगार पर है.....खाने वाले जानवरों को सिर्फ खाने के लिए फॉर्मों में पाला जाता है और कृत्रिम रूप से बड़ा किया जाता है। अगर मांसाहार बंद हो जाएगा तो ये मांस उद्योग भी बंद हो जाएगा।

भारत के सभी सबसे महान लोग जैसे श्री अब्दुल कलाम जी भी शाकाहारी ही थे। हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी शाकाहारी है। इसीलिए मैं सबसे विनती करूंगा की मांसाहार को छोड़ दें। अगर आप एक दिन में नहीं छोड़ सकते हो मांसाहार को धीरे धीरे कम करते जाएं और शाकाहारी बन जाएं।

हम तो उस महान भारतीय सभ्यता से हैं जहां 'चींटी को मारना' भी पाप है।
॥ जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन ॥ 
PROUD TO BE A VEGETARIAN

मांस खाने से हानि (HARM BY TAKING MEAT)

परिचय-
    मनुष्य मांसाहारी जीव नहीं है। मनुष्य के दांतों का आकार, उसके मुंह की रस ग्रंथियां, छोटी आन्त एवं पाचनतंत्र में से कोई भी मांसाहारी जीवों की तरह के नहीं होते।
Introduction–
            The human is not non-nonvegetarian creature. Teeth shape, juice glands of his mouth, small enlargement, digestive system etc. any part of human is not like non-vegetarian creatures.
जानकारी-
Knowledge-

मनुष्य बिना मांस खाये सारा जीवन बिता सकता है लेकिन केवल मांस के सहारे अपना पूरा जीवन नहीं बिता सकता है।
The human can live his whole life without eating meat but he also cannot live his life on the meat.
मांस खाने वाले व्यक्ति की उम्र कम हो जाती है। जबकि शाकाहारी की उम्र लंबी होती है।
The age of non-vegetarian person is reduced whenever vegetarian person has long age.
मांस खाने वाले व्यक्ति शक्तिशाली और स्वस्थ नहीं रहते। बल्कि रोगी और कमजोर हो जाते हैं। मांस खाने वाले व्यक्ति जल्द ही थक जाते हैं और शाकाहारी व्यक्ति देरी से थकते हैं।
Non-vegetarian people are not stayed strong and healthy rather they become patient and weak. These types of people feel tiredness soon and vegetarian person feels tiredness from delay.
फल खाने वाले व्यक्ति के शरीर में जितनी फुर्ती, कार्य करने की इच्छा, लगन, और निष्ठा रहती है। उतने मांस खाने वाले व्यक्ति में संभव नहीं होती है। मांस अम्लधर्मी (खट्टापन बढ़ाने वाला) होता है। इससे रोगों से लड़ने की शक्ति में कमी आ जाती है। जिससे कई तरह के रोग हो जाते हैं।
As much energy, desire of work, inclination and loyalty stay in the vegetarian person as strength is not stayed in non-vegetarian person. The meat is about to increase sourness. Resistant power is reduced by it and many types of diseases take birth.
मांसाहार में यूरिक एसिड अधिक पाया जाता है। जो हमारे शरीर के अन्दर जमा होकर गठिया आदि कई रोगों को पैदा करता है।
Uric acid is found in the non-vegetarian food, which generates rheumatismetc. many types of diseases after gathering in the body.
मांसाहारी व्यक्ति को दिल के रोग और कैंसर के रोग होने के ज्यादा चांस होते हैं।
The person, who takes meat, can suffer from heart problems and cancer.
एक सर्वेक्षण के द्वारा पता चला है कि अपराधियों में मांस खाने वालों की संख्या अधिक पाई गई है। मांसाहारी व्यक्तियों में अधिक रोग पाए जाते हैं। उसकी सहनशक्ति कम हो जाती है, उसके अन्दर गुस्सा व चिड़चिड़ापन ज्यादा बढ़ जाता है, वासना और उत्तेजना की सोच बढ़ जाती है। मनुष्य क्रूर व निर्दयी हो जाता है,उसकी अपराधिक सोच बढ़ जाती है। मांस गलत सोच को जन्म देता है जिससे समाज में आपसी मनमुटाव, घर का तनाव, लड़ाई झगड़े, लूटमार, आदि की वारदातें बढ़ जाती हैं।
It has found by a survey that more numbers about to eat meat have found in culpable. Many types of diseases are found in non-vegetarian person. His tolerating power is reduced by which anger and irritation increase in this person. His passion and excitement thinking are increased. The human becomes ruthless and his criminal thinking is increased. Meat gives birth to wrong thinking by which house depression, altercation, snatching etc. crimes are increased.
अंडा भी मांसाहार है। इसमें कोलेस्ट्राल बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह बहुत ही नुकसानदायक होता है। इससे दिल के रोग होने की ज्यादा संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
The egg is also non-vegetarian food. It contains more quantity of cholesterol, which is more harmful. The possibility of heart diseases is also increased.
मांस या अंडा किसी का हो यह आपके शरीर के लिए बहुत ही हानिकारक है।
Egg or meat of any animal is very harmful for our body.
पश्चिमी देशों के मांसाहारी लोग अब दुबारा शाकाहारी हो रहे हैं।
The people of western countries keep on becoming vegetarian again.

प्रस्तुति: शिवेन्द्र कुमार मेहता, गुरुग्राम

सोमवार, 4 जून 2018

काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार नहीं है पूर्ण विकार | Kaam | Krodh | Lobh | Moh | Ahankaar | Santmat Satsang

काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार नहीं हैं पूर्ण विकार;

हमारे धर्म ग्रंथों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पाने के लिए काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार-इन पांच विकारों के त्याग को बहुत महत्व दिया गया है। लेकिन क्या ये विकार पूरी तरह त्याज्य हैं? या मानव क्या सचमुच इन विकारों का पूरी तरह से त्याग करने में सक्षम है?

ध्यान से सोचें तो ये पांच-काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार-पूरी तरह से विकार की श्रेणी में नहीं आते। जब ये अपनी सीमा का उल्लंघन करते हैं या यों कहें जब इनकी अति होती है, तभी ये विकार बनते हैं। अन्यथा इनके बिना मानव अपना सांसारिक जीवन ही नहीं चला पाता। अति तो भोजन की भी दु:खदाई होती है। फिर ये पाँच क्यों पहले से ही विकार की श्रेणी में मान लिए गए हैं?

काम या शक्ति के अभाव में पितृ ऋण से मुक्ति संभव नहीं है। क्रोध वह शक्ति है जो आवश्यकता पड़ने पर मानव को सुरक्षा प्रदान करता है। घर या किसी व्यवस्था में एक नियम-अनुशासन स्थापित करता है। लोभ एक आवश्यकता है, जिसके बिना पारिवारिक और सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह कठिन है। मोह मानव को पितृत्व व मातृत्व के साथ-साथ अन्य रिश्तों के दायित्व को निभाने की प्रेरणा देता है।

मनुष्य की जिस वृत्ति को हम अहंकार कहते हैं, उसके लिए 'अहंकार' शब्द का प्रयोग तब किया जाता है, जब वह अपनी सीमा का उल्लंघन करती है, अन्यथा इससे पूर्व तो वह स्वाभिमान होता है, जिसका प्रत्येक मानव में होना आवश्यक है। स्वाभिमान के बिना जीवन कोई जीवन नहीं रह जाता।

चार पदार्थ-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए एक और मार्ग भी बतलाया गया है, और वह है अध्यात्म का मार्ग। अर्थात ध्यान और साधना का मार्ग। ध्यान-साधना ही वह मार्ग है, जो अध्यात्म के लक्ष्य तक पहुँचाता है। अपने मूलरूप की और प्रभु की अनुभूति कराता है। प्रकृति प्रदत्त सोई शक्तियों को जागृत करता है।

इस कार्य में चार सद्गुण यथा ज्ञान, सहज, निर्दोष और सम सदा सहायक होते हैं। किसी भी कार्य /साधना के प्रारम्भ में सबसे पहले उसके प्रति ज्ञान का होना आवश्यक है, अन्यथा उस कार्य का आरम्भ व संचालन ही संभव नहीं। दूसरे, यदि कार्य का कर्ता/ साधक स्वयं में सहज नहीं रहता तो वह कार्य का संचालन या निष्पादन ठीक ढंग से नहीं कर पाता। तीसरे, कर्ता और कार्य का पूरी तरह से निर्दोष होना जरूरी है, क्योंकि दोषी व्यक्ति गलत साधन का प्रयोग करता है और दोषपूर्ण कार्य गलत लक्ष्य पर ले जाता है। चौथे, कार्य संपन्न होने के बाद उससे होने वाले लाभ-हानि की चिन्ता न करते हुए हर हाल में समभाव में बने रहना ही मानव की श्रेष्ठ उपलब्धि है। ये ही चार गुण मानव को अध्यात्म मार्ग पर ले जाते हैं और धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष की प्राप्ति में सहायक बनते हैं।

किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति निर्विघ्न संभव नहीं होती। मार्ग में अवरोध न आएं तो वह मार्ग ही क्या। हमें श्रम के महत्व की अनुभूति तो ये अवरोध ही कराते हैं। अपनी श्रेष्ठता विषम परिस्थिति में ही सिद्ध की जा सकती है। इसलिए भगवान ने चार अवगुण यथा राग, द्वेष, निन्दा और असत्य को भी इस मानव मन में डाल दिया। इसीलिए सभी धर्मग्रंथों में इन चार अवगुणों से अपने को पूर्णतया मुक्त रखने का उपदेश दिया गया है।

सच मानिए, यदि मानव अपने जीवन में उपरोक्त चार सद्गुणों को अपना ले व उपरोक्त चार अवगुणों को त्याग दे, तो मानव मन निर्मल हो जाएगा। मन के निर्मल हो जाने से आध्यात्मिक उन्नति सहज हो जाएगी। आध्यात्मिक उन्नति का अर्थ है मानव की चेतना के स्तर का ऊपर उठना। चेतना का स्तर ऊपर उठ जाने से उपरोक्त चार पदार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति स्वत: ही सहज हो जाएगी। इसीलिए जिसका मन निर्मल है, वही इन चार तत्वों को पाने का अधिकारी है- बस यही है अध्यात्म की कुंजी!

सब कोई सत्संग में आइए | Sab koi Satsang me aaeye | Maharshi Mehi Paramhans Ji Maharaj | Santmat Satsang

सब कोई सत्संग में आइए! प्यारे लोगो ! पहले वाचिक-जप कीजिए। फिर उपांशु-जप कीजिए, फिर मानस-जप कीजिये। उसके बाद मानस-ध्यान कीजिए। मा...